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इतिहास

अपने आचरण से संतानों को श्रेष्ठ जीवन के संस्कार देना माता-पिता का दायित्व – श्री गुरुजी

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अपने आचरण से संतानों को श्रेष्ठ जीवन के संस्कार देना माता-पिता का दायित्व – श्री गुरुजी

जनवरी 1953 के 'कल्याण' मासिक के 'बालक-अंक' में 'अभ्युदय व निःश्रेयस तथा उनकी प्राप्ति के उपाय' नामक लेख में श्री गुरुजी लिखते हैं, "माता-पिता को यह जानना चाहिये कि उनके ऊपर बहुत बड़ा दायित्व उसी समय है। जिस समय उन्होंने किसी जीव को जगत् में प्रविष्ट कराया, उसी समय से उनके ऊपर यह भार है कि वह जीव अपना आत्यन्तिक कल्याण कर सके, ऐसा ही वायुमण्डल उसके चारों ओर रख कर उसे सुयोग्य संस्कारों से पूर्ण करें। इसलिए प्रत्येक गृह में कुछ नियमों का पालन अनिवार्य होना चाहिए। उनका कुछ निर्देश करने का प्रयत्न करता हूँ। "सर्वप्रथम सूर्योदय के पूर्व निद्रा त्याग कर, शारीरिक शुद्धि कर, चराचर सृष्टि के स्वपिता, स्वामी, नियन्ता परमेश्वर का, जो कोई ध्यान अपनी श्रद्धा का विषय हो, उसका मनःपूर्वक स्मरण करें। अनेक भावपूर्ण स्तोत्र सगुण एवं निर्गुण स्वरूप की आराधना के निमित्त निर्मित हैं। उनको कण्ठस्थ कर पठन करना और साथ ही हृदय की शुद्धि भावना से उस परमात्मा का कुछ समय तक समाहित चित्त से चिन्तन करना चाहिए। स्नानादिक क्रिया, सूर्य नमस्कार जैसा पवित्र व्यायाम, सात्विक आहार-विहार, कुलाचार- पालन, प्रतिदिन कुछ-न-कुछ दान, समाजसेवा इत्यादि कार्य, कर्तव्य का निरलस पालन, सायंकाल तथा निद्रा के पूर्व ईश-चिन्तन इत्यादि श्रेष्ठ व्यवहार अत्यन्त नियमपूर्वक करना आवश्यक है। माता-पिता को स्वयं इन नियमों का पालन कर घर का वातावरण शुद्धि संस्कार करने के लिए समर्थ रखना तथा केवल शाब्दिक उपदेश मात्र से नहीं तो अपने प्रत्यक्ष आदर्श से बालकों को सत्वगुण प्राप्ति द्वारा सत्तत्व साक्षात्कार के लिए सिद्ध करना अत्यन्त आवश्यक है।"

।। कल्याण मासिक, ‘बालक अंक’; वर्ष 27, अंक-1, जनवरी -1953, पृष्ठ – 286 ।।