दीपावली का स्वरूप और वैशिष्ट्य
ऊर्जा, सृष्टि के संचालन का आधार है। इसके आद्य, आधारभूत नियामक और सौर मंडल के अधिष्ठाता देव सूर्य हैं। सूर्य देव की इस नैसर्गिकता का मानवीय प्रकटीकरण है ‘दीप’। जिसको हम आज अनेक रूपों यथा- मिट्टी के दीये, मोमबत्ती या बल्ब आदि में भी प्रकट करते हैं। दीपक की लौ ही ऊर्जा का प्रस्फुटन है। यही लौ जीवन में उत्साह, उमंग और प्रकाश का सर्जन करती है। स्कन्द पुराण में दीपक को सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला कहा गया है। सनातन संस्कृति में कार्तिक मास की अमावस्या को दीपों की श्रृंखला अर्थात दीपावली से जुड़े अनेक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक तथ्य हैं। क्योंकि माता लक्ष्मी एवं भगवान धन्वंतरि का प्रकट होना, त्रेतायुग में रावण का वध कर भगवान राम का 14 वर्ष बाद अयोध्या आगमन, भगवान कृष्ण द्वारा असुर वध से उपजा उल्लास, राजा बलि को पाताल का राज प्रदान करना आदि दीपावली से आधिकारिक एवं आध्यात्मिक रूप से जुड़े हैं। इसलिए इस दिन दीप जलाकर शक्तियों का आह्वान कर हम सनातनता का निर्वाह कर रहे हैं। इसके अलावा इसी दिन जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में, सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। देश के कुछ हिस्सों में दीपावली यम और नचिकेता की कथा (कठोपनिषद्) के साथ जुड़ी है। नचिकेता की कथा सत्य बनाम असत्य और सच्चे धन के बारे में प्रेरणादायी है।
दीपावली पर्व से कुछ ऐतिहासिक घटनाएं भी जुड़ी हैं। इसी क्रम में गुप्त वंश के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के समय पूरे राज्य में दीपोत्सव मनाया गया था। दीपावली के ही दिन महान समाज सुधारक आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने निर्वाण प्राप्त किया था। परम संत स्वामी रामतीर्थ का जन्म कार्तिक मास की अमावस्या को और उनका देह त्याग भी इसी दिन होने का अनूठा उदाहरण भी हमें मिलता है। इस तरह दीप पर्व अपने वैशिष्ट्य और वैविध्यता का संगम है।
दीपावली के विविध स्वरूप वाराणसी, उत्तर प्रदेश: यहां पर्व को देव दीपावली के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार इस दौरान देवी-देवता गंगा में डुबकी लगाने के लिए धरती पर आते हैं। गंगा नदी में प्रार्थना और दीये जलाएं जाते हैं। देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा में आती है और दिवाली के 15 दिन बाद।
काली पूजा, पश्चिम बंगाल: दीपावली पर्व पर विशेषकर पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में, देवी दुर्गा की अवतार मां काली पूजन का विधान है। यहां के निवासी तीन दिनों तक मां काली की पूजा करते हैं। कुछ हिस्सों में लोग व्रत रखते हैं और धन की देवी मां लक्ष्मी का पूजन भी करते हैं। पश्चिम बंगाल में ही अगमबागिश द्वारा पूजा का विधान है। यह काली पूजा का एक प्रकार है। मां काली के सबसे प्रतिष्ठित तांत्रिक या पुजारी अगमबागिश, देवी को प्रसन्न करने के लिए एक कठिन अनुष्ठान करते हैं।
कौरिया काठी, ओडिशा: यहां दीप पर्व के अवसर पर, लोग कौरिया काठी (एक अनुष्ठान) करते हैं। इसमें लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। वे अपने पूर्वजों को बुलाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जूट की लकड़ियां जलाते हैं। इस दौरान, उड़िया देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी काली की पूजा करते हैं।
दुनिया भर में दिवाली: भारत के बाहर भी कई देशों में, भारतीय आबादी का एक बड़ा समूह वहां वर्षों से रह रहा है। इसलिए, आइए कुछ देशों पर नजर डालते हैं कि कैसे वहां दीपावली को भारत से थोड़ा अलग तरीके से मनाया जाता है।
नेपाल: पड़ोसी देश नेपाल में दीपावली को ‘तिहार’ के रूप में मनाया जाता है। यह दशहरा के बाद देश में दूसरा सबसे ज्यादा मनाया जाने वाला त्यौहार है, जिसे वहां ‘दशईं’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन, स्थानीय लोग भगवान यम की पूजा करते हैं। पांच दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में, एक दिन को ‘कुकुर तिहार’ के नाम से जाना जाता है, जहां कुत्तों और इंसानों के बीच के अनमोल रिश्ते की पूजा की जाती है। यह त्यौहार पूरी दुनिया में भी बेहद लोकप्रिय हो गया है।
सिंगापुर: इस दिन को लोकप्रिय रूप से दीपावली के रूप में जाना जाता है। ‘लिटिल इंडिया’ नामक क्षेत्र के हर गली को रोशनी से खूबसूरती से सजाया जाता है। दीपावली की सभी आवश्यक खरीदारी करने के लिए ‘टेकका मार्केट’ नामक क्षेत्र लोकप्रिय है। हिंदू भी श्री मरिअम्मन मंदिर जाते हैं जो चाइनाटाउन में स्थित है।
मलेशिया: मलेशिया में भी सिंगापुर की तरह जहां हिंदू आबादी है वहां, इसे ‘हरि दीवाली’ के रूप में मनाया जाता है। करीब-करीब भारत की तरह यहां भी इस पर्व को धूमधाम और रोशनी के साथ मनाया जाता है।
फिजी: देश में बड़ी संख्या में हिंदुओं के रहने के चलते, फिजी भी दीपावली को उत्साह से मनाता है। यहां एक राष्ट्रीय अवकाश भी है। इस महापर्व को धूमधाम से मनाने के लिए घरों में सामूहिक रूप से एकत्र होकर बड़ा आयोजन किया जाता है।
मॉरीशस: पर्यटन के लिए लोकप्रिय इस द्वीप की लगभग 50 प्रतिशत आबादी हिंदू है। इसलिए यहां दीप पर्व एक ऐसा त्यौहार है जो सभी परंपराओं के साथ बड़ी भव्यता और दिव्यता से मनाया जाता है। भारत की तरह यहां भी पटाखे, दीपक, सजावट आदि शामिल हैं।
त्रिनिदाद और टोबैगो: उन्नीसवीं सदी के अंत में, भारतीय राज्यों ओडिशा और बिहार से लाखों लोगों त्रिनिदाद गये। बाद में, इन भारतीयों ने स्वतंत्रता प्राप्त कर स्थानीय आबादी के साथ घुलमिल गए। इसलिए भारत के रीति-रिवाजों को वहां जीवित रखा है। त्रिनिदाद सरकार ने 1966 में दीवाली को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया। यहां दीपावली नौ दिनों तक मनाई जाती है।
इसी तरह अन्य देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, गुयाना, मलेशिया, श्रीलंका और कई अन्य देश जहां बड़ी संख्या में भारतीय हैं, दीप पर्व को बहुत ही उत्साह से मनाते हैं। इस तरह दीपावली सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाया जाने वाला विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। कुल मिलाकर दीपावली अलौकिक उत्स का लौकिक रूप में लोक एवं जीवन दोनों के उन्नयन, संयम, नियम, प्रेम, हर्ष के प्रतीक स्वरूप इस त्यौहार का अस्तित्व बनाता है। यह त्यौहार देवी आराधना एवं साधना से सूक्ष्म एवं स्थूल, अलौकिक एवं लौकिक, सुख एवं शान्ति, यश एवं वैभव आदि सभी भावों को प्रकट करने की मानव में सामर्थ्य और शक्ति पैदा करता है।