शिमला
जीवन में शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है। एक सच्चा गुरु हमारे जीवन की नींव रखता है। वे केवल हमें किताबों का ज्ञान नहीं देते, बल्कि सही संस्कार, सही सोच और जीवन जीने की दिशा भी सिखाते हैं। वही समय बीत जाने के बाद भले ही शिक्षक अपने छात्रों को भुल जाएँ, लेकिन एक सच्चे विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने गुरु को हमेशा याद रखे और उनके दिए हुए ज्ञान और संस्कारों को जीवनभर जीवित रखे। यही असली और सच्ची शिक्षा का प्रमाण होता है। इस दिशा में ऐसा ही एक वाक्य हुआ शिमला में जहां एक शिक्षिका की मुलाकात हुई अपने विद्यार्थी से जिसे वो तो भुल चुकी थी। लेकिन उनके दिए गए संस्कार उनका विद्यार्थी नही भूला सका। शिक्षिका ने अपने इस अद्भुत वाक्य को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए बताया की लगभग 15 साल पहले, शादी से पहले, मैं अपने मायके में सरस्वती विद्या मन्दिर, शिकरोहा नामक एक छोटे से विद्यालय में बच्चों को पढ़ाया करती थी। उस समय मेरी कक्षा में एक बच्चा था – सुमित भारद्वाज, जो बहुत चंचल और तेज दिमाग वाला था। मैंने उसे ABC सिखाई, कभी उसकी शरारतों पर डांट लगाई, तो कभी उसकी तारीफ की। शादी के बाद जीवन की जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई। साल दर साल घर, परिवार और कामकाज में समय गुजरता गया। लेकिन जब मैं अपनी सासु माँ को लेकर IGMC शिमला के अस्पताल गई, तो एक अप्रत्याशित और अविस्मरणीय पल सामने आया। अचानक एक डॉक्टर ने वार्ड में आकर मेरे पैर छुए और गले लगा लिया। मैं हैरान रह गई। उसने मुस्कुराते हुए कहा– “मैम, मैं सुमित भारद्वाज हूँ, आपका पुराना स्टूडेंट।” उस पल जो गर्व का भाव मेरे दिल में उमड़ा, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। जिस बच्चे को मैंने 15 साल पहले अक्षरज्ञान सिखाया था, आज वही एक सफल डॉक्टर बनकर मेरे सामने खड़ा था। यह मेरे लिए किसी उपलब्धि या पुरस्कार से कम नहीं था। उसके माता-पिता को भी मैं दिल से बधाई देना चाहती हूँ जिन्होंने उसे इतने अच्छे संस्कार दिए। आज के समय में अक्सर देखा जाता है कि थोड़ी सी सफलता पाने के बाद लोग अपने माता-पिता और शिक्षकों को भूल जाते हैं, लेकिन सुमित ने यह सिद्ध किया कि असली सफलता वही है जिसमें इंसान विनम्रता और आभार बनाए रखे। गुरु हमारे जीवन की सच्ची नींव हैं। उनका ज्ञान और दिए हुए संस्कार जीवनभर हमें दिशा देते हैं। एक सच्चे विद्यार्थी का सबसे बड़ा धर्म है कि वह अपने गुरु को कभी न भूले और उनके सिखाए गए आदर्शों को अपने जीवन में अपनाए। यही असली शिक्षा की पहचान और गुरु के प्रति सच्चा सम्मान है।