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एक विराट संगठन का छठा महा अभियान

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एक विराट संगठन का छठा महा अभियान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 100 वर्षों की यात्रा में कई घुमावदार अवरोधों को बड़े कौशल से पार किया है। इस यात्रा में पांच बड़े अभियान बडी कुशलता से पूरे किये हैं। इन सभी को आज महा अभियान माना जा रहा है। इसी कड़ी को आगे जोड़ते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में पंच परिवर्तन के उद्देश्य से  पांच सूत्रीय छठवां बड़ा महा अभियान 2025 की विजयादशमी से शुरू करने की तैयारी कर रहा है। यह अभियान भारतीय समाज को नया सबेरा दिखाने वाला सिद्ध होगा। इस अभियान के पांच सूत्र हैं। यह सभी समाज के संकल्प बनें यही उद्देश्य है। इन्हें पंच परिवर्तन नाम मिला है। इनमें प्रथम है हिन्दु समाज में सामाजिक समरसता।दूसरा है कटुम्ब प्रबोधन, तीसरा पर्यावरण संरक्षण, चौथा स्वदेशी जीवन शैली। शताब्दी वर्ष के लिए पांचवां सूत्र है नागरिक कर्तव्यों के प्रति समाज को जाग्रत करना।  संघ के विरोधी भी कहते हैं कि सौ वर्षों में संघ कठिन राहों से सफलता पूर्वक अवरोधों को पार करते आगे बढ़ा है। अब ऐसी स्थिति में खड़ा है कि शताब्दियों से विश्रृंखलित  भारतीय समाज को सशक्त क्षमता वाला आदर्श समाज बना सके। संघ कहता रहा है कि भारत का मूल सनातन संस्कृति को समर्पित समाज बंटा तो देश को बांटने वाले सफल होते रहेंगे। संघ ने 100 वर्षों की अपनी यात्रा में इस बात को मिथक सिद्ध कर दिया है कि भारत का हिन्दू समाज अपनी जड़ों से कटता जा रहा है। हिन्दू समाज के रीति रिवाज मान्यताएं और नैतिक सिद्धान्तों के बन्धन ढीले पड़ते जा रहे हैं। ऐसे लोग यह भी कहते हैं कि हिन्दुओं की प्रतिरोधक क्षमता कुन्द पड़ चुकी है। क्योंकि हिन्दू निजी स्वार्थ की सीमाएं बहुत मुश्किल से लांघते हैं। हिन्दुओं को सदा संरक्षण की कमी खटकती रहती है। कुछ समूहों को छोड़कर कोई शक्ति समग्र रूप से हिन्दू समाज का चिन्तन करने की दक्षता का निर्माण नहीं कर सकी। हिन्दू समाज की इन्हीं दुर्बलताओं का उत्तर है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। दुर्बलता की इन बातों की अनदेखी संघ ने कभी नहीं की। आर एस एस की स्थापना विजयादशमी के दिन 27 सितम्बर 1925 को नागपुर में हुई थी। सूत्रधार बने थे डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार। जो स्वतंत्रता के लिए देश में चल रहे आन्दोलनों से जुड़े थे। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में उनकी भागीदारी थी। साथ ही क्रान्तिकारी संगठनों के साथ उनके गहरे सम्बन्ध थे, स्वयं भी सक्रिय रहे।। डॉक्टर हेडगेवार के संगठन कौशल के प्रति कांग्रेस और क्रान्तिकारियों के सभी प्रमुख नेताओं को पूरा भरोसा था। सभी उनसे सहमत थे। एक दिन डॉ. हेडगेवार ने मोहनदास गांधी से कहा- बापू देश तो अब स्वतन्त्र होकर रहेगा। तनिक विचार कीजिए कि स्वतन्त्र भारत की रीति नीति क्या होगी। क्या भारत को अपने मूल स्वरुप में लौटाने के लिए कोई योजना बनाने की आवश्यकता नहीं  पड़ेगी। भारत को सनातन संस्कृति की धारा में लौटाने के लिए पूरा रोडमैप तैयार नहीं किया गया तो नया भारत कहीं भटकाया जा सकता है। वास्तविक नीति के अभाव में नयी सरकार के रथ के अश्व बहक सकते हैं। डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार से बापू ने कहा था आपकी बात तो पते की है। पर अभी यह चिन्तन करने की जल्दी नहीं दिखानी चाहिए। नये भारत का सूरज उगने दीजिए तभी सब कुछ तय हो जाएगा। समय ने सिद्ध कर दिया कि डॉक्टर हेडगेवार की बात बहुत महत्वपूर्ण थी। गांधी का यह चिन्तन सही नहीं था कि बाद में दिशा तय कर लेंगे। स्वतन्त्रता मिलते ही बाजी गांधी के हाथ से फिसल गयी। जवाहर लाल नेहरु ने गांधी जी को पक्ष में लेकर देश की बागडोर लपक ली। नेहरु ने सनातन संस्कृति से दुराव की नीति अपनायी। नेहरू इस्लाम और ईसाइयत को सनातन संस्कृति की तुलना में अग्रेसर मानने वाले थे। नेहरु प्रारम्भ से ही पश्चिमी जीवन शैली के पोषक नेता थे। हिन्दू चिन्तन से चिढ़ते थे। पश्चिमी जीवन शैली और चिन्तन पर गर्व की अनुभूति करते थे। नेहरु स्वयं को हिन्दू कहने पर लज्जित  अनुभव करते थे। शताब्दी वर्ष 2025 का  अद्वितीय महा अभियान: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जगह कोई और संगठन होता तो सौ वर्षों की उपलब्धियां दर्शाने के लिए उतावलेपन में क्या करता। बहुत बड़ी रैली करके शक्ति प्रदर्शन करता। अपने नेतृत्व के गुणगान गाने में करोड़ों रुपये व्यय करता। जो सो सब कहता और कहता। जिसका उद्देश्य केवल इतना होता कि हमसे बड़ा कोई नहीं। पर इससे क्या होता? वस्तुतः लोग इतना भर कहते कि चलो, इस या उस पार्टी और नेता के भी पंख निकल आये हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रखर नेतृत्व ने बड़ा संयत और दूरदर्शी निर्णय किया। देश भर में कहीं कोई बड़ी रैली या यात्रा का रेला नहीं, प्रचण्डता दर्शाने वाला कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं और देश के सिवाय किसी का महिमा गान नहीं होगा। इस अप्रत्याशित निर्णय से सभी चकित रह गये।  शताब्दी वर्ष 2025 का महा अभियान ग्राम, मण्डल, खण्ड़, जिला केंन्द्रों से प्रान्त, क्षेत्र और सम्पूर्ण देश तक पहुंचाया जाना है। करोड़ों कार्यकर्ताओं ,विस्तारकों,प्रचारकों की तपश्चर्या का यह सबसे विराट अभियान है। इस अभियान का तात्पर्य केवल यह नहीं है कि स्वयंसेवक इन्हें अपनाएंगे। अपितु समाज को सचेत करके इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जाग्रत करेंगे। इस महा अभियान के अन्तर्गत पाँच सूत्र संघ ने सुनिश्चित किये हैं। पहला सामाजिक समरसता, दूसरा कुटुम्ब प्रबोधन, तीसरा पर्यावरण, चौथा स्वदेशी जीवन शैली, पांचवां संकल्प है नागरिक कर्तव्यों के प्रति सजगता ।

 (1) सामाजिक समरसता: शताब्दी वर्ष 2025 के अपूर्व अभियान के लिए पंच प्रण  सबसे पहला सूत्र है। सामाजिक समरसता। इस प्रण की पूर्ति से आर. एस. एस. की बड़ी अपेक्षा जुड़ी है। संघ चाहता है कि भारत का मूल हिन्दू समाज समरसता की जीवन शैली अपनाते हुए विकास यात्रा पर आगे बढ़े। हिन्दुओं के मध्य सामाजिक विषमता के सारे मिथक ध्वस्त हों। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सामाजिक समरसता का पहला प्रण या कहें संकल्प कार्यकर्ताओं को थमाया गया है।

(2)कुटुम्ब प्रबोधन- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि परिवार राष्ट्र संवर्धन की महत्वपूर्ण कड़ी है। भारत में ऋषियों विज्ञजनों द्वारा प्रतिपादित सनातन संस्कृति को परिवार संस्था द्वारा पोषित किया गया। संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने सभी स्वयंसेवकों को जिन पांच संकल्पनाओं से जोड़ा है उनमें कुटुम्ब प्रबोधन भी सम्मिलित है। स्वस्थ संस्कार सम्पन्न समाज का निर्माण परिवार करते हैं। सुव्यवस्थित, सशक्त परिवार ही पुष्ट समाज के आधार होते हैं। कुटुम्ब व्यवस्था के चलते सदा राष्ट्र बलवान बनता है। यह सन्देश सनातन संस्कृति का है। संघ 2025 के विजय दशमी उत्सव के साथ पूरे वर्ष भारत के जन जन तक इस विचार को पहुंचाएगा।  प्रबोधन का अर्थ जाग्रत करने से है। किसी सत्य की ओर सचेष्ट करने को प्रबोधन कहते हैं। भारत में सामाजिक व्यवस्था सदा सुदृढ रही है। इस व्यवस्था को अनिवार्य मानते हुए समाज को जाग्रत करने की संकल्पना संघ की है। समाज सचेत होगा तो परिवार कुटुम्ब सशक्त होंगे। जन जन की जागृति से इस व्यवस्था में आने वाले रोड़े हट जाएंगे। यह बदलते परिवेश के लिए भी अनिवार्य और उपयोगी है। सभी कुटुम्बी जन दूरस्थ स्थानों पर रहते हुए अपने पारिवारिक सूत्रों में गुम्फित रह कर सशक्त बने रह सकते हैं। यही चेतना जगाने को संघ उद्यत है। संघ के विचारकों का कहना है कि भारत की समाजिक संरचना का विवेचन करने वाले विज्ञ जनों का यह निष्कर्ष सही है कि मूल्यों में गिरावट आने से परिवार और समाज को कई तरह के दबावों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। संघ ने 2016 में भी पूरे वर्ष कुटुम्ब प्रबोधन पर ध्यान आकृष्ट किया था। जाग्रति का अभियान चलाकर सामाजिक चेतना को पुष्ट करना होगा।

(3) पर्यावरण संवर्धन: पर्यावरण संवर्धन कोई नयी संकल्पना नहीं है। संघ के स्वयंसेवक पर्यावरण संवर्धन की चेतना को जगाने के लिए मुखर होने के साथ स्वयं भी शताब्दी वर्ष में इस प्रण को निभाएंगे। मनुष्य का स्वभाव है कि जब कभी संकल्प को अपने प्रण से जोड़ लेता है तो सारे तर्क वितर्क समाप्त हो जाते हैं। तब कर्तव्य पथ स्पष्ट दिखने लगता है। यह जागरण संघ के समस्त स्वयंसेवक समाज से मिलकर शताब्दी वर्ष में करेंगे।    

(4) नागरिक कर्तव्य:  नागरिक कर्तव्य सभी के आचरण और जीवन शैली का अंग बनने चाहिए। समाज की जागरूकता से नागरिक व्यवस्थाएं सुदृढ होती हैं। तनिक सोचिये कि गाँव नगर बस्ती का कोई सदस्य जब कभी बाहर निकले मार्ग पर चलने के नियमों का पालन करे तो कितना अच्छा लगेगा। हर व्यक्ति स्वच्छता की अनिवार्यता से स्वयं को जोड़कर व्यवहार करें, स्वयं की सुविधा के लिए किसी को कष्ट पहुंचाने से बचे तो कैसा लगेगा। ऐसा नहीं कि लोगों को नागरिक कर्तव्यों की जानकारी नहीं होती। बस मन का आग्रह सुदृढ नहीं होता। इसके प्रति सचेत करने से बात बनेगी।

(5) स्वदेशी जीवन शैली: स्वदेशी जीवन शैली अपनाने का आग्रह कोई नया विषय नहीं है। जब संसार के अन्य भूभागों में विकास का सूर्य ठीक से उगा भी नहीं था तब भारत समुन्नत था। विज्ञान तकनीक, व्यापार, कृषि, उद्यम हर क्षेत्र में अग्रणी था। संसार के लोग चमत्कृत थे कि भारत ने हर क्षेत्र में इतनी उन्नति कैसे कर ली। भारत के 140 करोड़ नागरिको में जिस दिन स्वदेशी जीवन शैली का भाव जाग उठेगा भारत के महाशक्ति बनने के सारे अवरोध हट जाएंगे। स्वदेशी जीवन शैली का अर्थ केवल स्वदेशी उत्पादों की ग्राह्यता भर नहीं है। यह भी एक सोपान है। इसके साथ अपनी संस्कृति, सभ्यता, संस्कारों को जीवन पद्धति में सम्मिलित करना उद्देश्य होगा तब राष्ट्र की शक्ति को संसार पहचानेगा।

संघ कहता है संगठित रहो, शुद्ध आचरण से बंधकर चलो। शौर्य के सुबल को धारण किये रहो। देव शक्तियों की यही प्रेरणा रही है। को कभी नहीं ऐसे मंत्रों को कभी भूलना नहीं चाहिए। भारत के समस्त घटक राष्ट्र प्रथम के संकल्प से जुड़े रहें साथ ही पांच सूत्रों को सदा सुमिरन में बनाये रहें। यही उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है। संघ के सदस्य जगाने निकलेंगे। देश का जन मानस इन संकल्पों को अपनाएगा। इसी पुनीत धारणा को संघ ने मंत्र माना है। इस माह अभियान का यही प्राण तत्व है।