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अनोखा कुटुंब: महेन्द्र रावल जी का परिवार

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परिवार समाज की मूल इकाई है, हमारी सामाजिक संरचना की रीढ़ है। यह एक संघ के साथ-साथ एक संस्था दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। हिन्दू परिवार का केंद्र स्त्री और धर्म है। हिन्दू सनातन धर्म संयुक्त परिवार को श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान मानता है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि जो घर संयुक्त परिवार का पोषक नहीं है उसकी शांति और समृद्धि सिर्फ एक भ्रम है। घर संयुक्त परिवार से ही होता है। आज के बदलते सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं, लेकिन बदलती जीवनशैली और प्रतिस्पर्धा के दौर में तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं से निपटने में अपनों का साथ अहम भूमिका निभा सकता है। संयुक्त परिवार में जहां बच्चों का लालन-पालन और मानसिक विकास अच्छे से होता है वहीं वृद्धजन का समय भी शांति और खुशी से गुजरता है। बच्चे संयुक्त परिवार में दादा-दादी, काका-काकी, बुआ आदि के प्यार की छांव में खेलते-कूदते, संस्कारों को सीखते हुए बड़े होते हैं। संयुक्त परिवार संस्कारों की जननी है। सनातन धर्म, या जीवन का शाश्वत तरीका, एक ऐसा शब्द है जो हिन्दू धर्म की विविध और बहुलवादी परंपराओं को समाहित करता है। यह उन कालातीत सिद्धांतों और प्रथाओं पर आधारित है जो हिन्दू धर्म के अनुयायियों को उनके व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक कार्यों में मार्गदर्शन करते हैं। सनातन धर्म के प्रमुख पहलुओं में से एक संयुक्त परिवार प्रणाली की अवधारणा है, जहाँ कई पीढ़ियाँ एक साथ एक ही छत के नीचे रहती हैं।

ऐसा ही सयुंक्त परिवार की मिसाल है महेन्द्र रावल जी का परिवार जिनके ऐतिहासिक अभिलेख के अनुसार राजा जयसिंह ने 1496 से 1588 तक जैसलमेर पर शासन किया। उसके 9 पुत्र थे। उनके नाम 1. करण सिंह, 2. कर्म सिंह, 3.महीराबाद, 4.राजू, 5.मंडलीक, 6.नरसिंह दास, 7.जय सिंह देव, 8.रावल राम और 9.त्रिलोक सिंह उर्फ भैरू सिंह। राजा जैत सिंह के दूसरे पुत्र कर्म सिंह 15 जनवरी 1528 को गंगा स्नान के लिए जैसलमेर से पश्चिम उत्तर प्रदेश की ओर चले गए। उनके दो छोटे भाई रावल राम और त्रिलोक सिंह उर्फ भैरू सिंह उर्फ बरिल सिंह उनके साथ गए रास्ते में उनकी आचार गढ़ के राजा लूथ वर्मा से लड़ाई हुई इस लड़ाई में राजा लूथ वर्मा हार गए। हालांकि करम सिंह और रावल राम शहीद हो गए। आमका का रावल परिवार धूम मानिकपुर गांव से संबंधित था जो इसके उत्तर में लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर है। रावल परिवार के पूर्वजों में से एक ठाकुर रणजीत सिंह धूम मानिकपुर के निवासी थे। वह वेरी विशाल सिंह के प्रत्यक्ष वंशज थे। उनके पांच बेटे थे। उनके नाम थे - 1.ठाकुर मोहर सिंह, 2. ठाकुर झूठ सिंह, 3. ठाकुर सिपाही सिंह, 4. ठाकुर रामदयालु सिंह, और 5.ठाकुर धर्म सिंह। ठाकुर रणजीत सिंह के सबसे बड़े बेटे ठाकुर मोहर सिंह ने 1818 में इस गांव की स्थापना की। इस गांव की सारी जमीन रावल परिवार की थी। अब कुछ वंशज अपनी जमीन बेच कर दूसरी जगह पर चले गए हैं। ठाकुर मोहर सिंह के तीन बेटे थे- ठाकुर रामजस सिंह, ठाकुर मोती राम सिंह और ठाकुर मुखराम सिंह। आमका का रावल परिवार इन तीनों पूर्वजों की संतान है। 2018 में आमका गांव में इस परिवार ने अपने अस्तित्व के 200 साल पूरे कर लिए हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले 500 वर्षों में बेरीसाल जी के वंशज पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गांवों और कश्मीर तक फैल गए हैं। रावल राजपूत के प्रमुख निवास वाले कुछ प्रमुख गांव हैं। धूम मानिकपुर, गोरी, बछेड़ा, आमका, दादरी, जैतपुर, बाडपुरा, हाजीपुर, समुद्दीनपुर बड़ा, दीपपुर, भमेला, रामखेड़ी, छुटमलपुर, रामपुर (मुजफ्फरनगर), परमावली (खतौली)। बेहतर जीवन स्तर, सुरक्षा, चिकित्सा और अन्य सुविधाओं के लिए अब रावल परिवार के कई सदस्य गांव से गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम जैसे अन्य स्थानों पर भी चले गए हैं। कुछ तो इंग्लैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसी जगह पर भी चले गए हैं। आमका के रावल परिवार के सदस्यों को पीढ़ीवार समूहीकृत किया गया है। पहली पीढ़ी (ठाकुर मोहर सिंह) से लेकर सातवीं पीढ़ी के श्री सत्यम पुत्र श्री माधव सिंह तक परिवार में कुल 146 सदस्य हैं। पिछले दो सौ सालों में परिवार में 146 सदस्य (जीवित और मृत दोनों) हुए हैं। एक परिवार की सात पीढ़ियों की तस्वीरों के सबसे बड़े संग्रह के लिए, रावल फैमिली ऑफ आमका का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है।