विशेष अवसरों पर स्वयंसेवकों द्वारा किए गए कार्य
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाया। संघ आज न केवल भारत में बल्कि विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में गिना जाता है। संघ ने हमेशा राष्ट्र निर्माण, सामाजिक एकता और सेवा कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसका उद्देश्य समाज से बुराइयों को दूर कर लोगों को जोड़ना और राष्ट्रप्रेम की भावना फैलाना है। संघ का मानना है कि किसी राष्ट्र की शक्ति उसके संगठित समाज में निहित होती है। यही कारण है कि संघ व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ने और समाज को सशक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहा है। संघ की असली ताकत उसके स्वयंसेवक हैं, जो बिना किसी स्वार्थ या मान्यता की अपेक्षा के समाजसेवा में लगे रहते हैं। ये स्वयंसेवक गांव-गांव और बस्ती-बस्ती में शाखाओं के माध्यम से संगठन, अनुशासन और सेवा की भावना का प्रसार करते हैं। आज संघ के करोड़ों स्वयंसेवक भारत ही नहीं, विदेशों में भी समाजकार्य में सक्रिय हैं। संघ की परंपरा रही है कि विपत्ति और विशेष अवसरों में यह देशवासियों के लिए संबल बनकर खड़ा रहता है। स्वयंसेवक हर कठिन समय में अग्रणी भूमिका निभाते आए हैं।
विशेष अवसरों पर संघ स्वयंसेवकों का योगदान-
1) त्यौहारों और मेलों की सुव्यवस्था: 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। अगले वर्ष 1926 में उन्होंने स्वयंसेवकों को रामनवमी यात्रा के अवसर पर रामटेक भेजा। वहां देवदर्शन के लिए जुटी भारी भीड़ को स्वयंसेवकों ने व्यवस्थित किया, जिससे दर्शन सभी के लिए सुगम और व्यवस्थित हो गया। इस प्रकार संघ में तीर्थ स्थानों, मेलों और पर्वों में सुव्यवस्था बनाए रखने की परंपरा स्थापित हुई, जो आज भी जारी है।
2) भय-निवारण का कार्य: 1927 में नागपुर में उपद्रव की एक बड़ी योजना सामने आई। संघ के स्वयंसेवकों ने दृढ़ प्रतिरोध दिखाया और उपद्रव को रोका। इससे समाज में भय समाप्त हुआ और लोगों में आत्मविश्वास लौट आया। इससे पहले केरल में मोपला दंगे और अन्य स्थानों पर हुए सांप्रदायिक दंगे समाज में भय और असुरक्षा का वातावरण पैदा कर चुके थे।
3) विभाजन पीड़ितों की रक्षा और सहायता: स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हुए विभाजन ने देश को दंगों की आग में झोंक दिया। ऐसे समय में स्वयंसेवकों ने दंगा-पीड़ितों की सुरक्षा और सहायता में अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान के पंजाब, सिंध और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में संघ का प्रभाव था। वहां स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर लोगों को सुरक्षित भारत लाया। भारत में लगभग 3000 राहत शिविर बनाए गए, जहां शरणार्थियों को भोजन, वस्त्र और सुरक्षा प्रदान की गई। स्वयंसेवकों की यह सेवा पूरी निष्ठा और मनोयोग से की गई।
4) कश्मीर सीमा की निगरानी: अक्टूबर 1947 से स्वयंसेवकों ने कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर लगातार नजर रखी। कई स्वयंसेवकों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण भी दिये। इस समय सरसंघचालक माधवराम गोलवलकर जी श्रीनगर पहुंचे और महाराजा हरिसिंह से मुलाकात की। इसी मुलाकात के बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय की सहमति दी।
5) राज्यों के मुक्ति संग्राम में योगदान: आरएसएस स्वयंसेवक दादरा, नगर हवेली और गोवा मुक्तिकरण आंदोलन (1954-1961) में निर्णायक भूमिका में रहे। दादरा नगर हवेली के पुर्तगाली शासन से मुक्त होने पर स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 को तिरंगा फहराया और प्रशासन भारत सरकार को सौंपा । गोवा मुक्ति संग्राम में जगन्नाथ राव जोशी और उनके साथियों ने गिरफ्तारी देकर देशभक्ति का उदाहरण पेश किया, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने अंततः दिसंबर 1961 में सैन्य हस्तक्षेप कर गोवा को स्वतंत्र किया ।
6) युद्धकालीन योगदान: सन् 1962 में चीन के साथ और फिर सन् 1965 में पाकिस्तान के साथ देश को युद्ध का सामना करना पड़ा। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान स्वयंसेवकों ने सीमा क्षेत्रों में सेना की सहायता की, रसद व्यवस्था और शहीदों के परिवारों की सेवा का भार संभाला। युद्ध में स्वयंसेवकों के योगदान को देखते हुए नेहरू सरकार को भी 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में आरएसएस को औपचारिक रूप से आमंत्रित करना पड़ा था। मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए। पाकिस्तान से युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने भी संघ से सहायता ली थी। शास्त्री जी ने कानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके। घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे। युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ हटाने का भी काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था।
7) आपातकाल में लोकतंत्र की रक्षा में योगदान: भारत में आपातकाल 25 जून 1975 को लगाया गया था जो 21 मार्च 1977 तक चला। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में ‘आंतरिक अशांति’ के कारण राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी। आपातकाल में नागरिक स्वतंत्रताएं निलंबित कर दी गई थीं और चुनावों को रद्द कर दिया गया था। इसे भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय माना जाता है। आपातकाल के दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, किंतु इसके स्वयंसेवक भूमिगत होकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए सक्रिय रहे। तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस जी को गिरफ्तार किया गया, पर अनेक स्वयंसेवक गिरफ्तारी से बचते हुए ‘लोक संघर्ष समिति’ से जुड़कर गुप्त प्रचार, साहित्य वितरण और संगठन संचालन का कार्य करते रहे। आरएसएस से जुड़े हजारों स्वयंसेवकों को जेल में रखा गया जबकि शेष भूमिगत रहकर समाचार पत्र, पर्चे और संदेशों के माध्यम से जनता को जागरूक करते रहे । प्रत्येक प्रांत में संघ ने संपर्क केंद्र बनाए, और जनसंघ, समाजवादी दल तथा जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलनों को सूचनात्मक व जनसमर्थन प्रदान किया अंततः जब 1977 में आपातकाल समाप्त हुआ और चुनाव हुए, तो संघ की यह भूमिगत भूमिका लोकतंत्र की पुनर्स्थापना में निर्णायक सिद्ध हुई ।
8) 1984 के दंगों में लोगों की सहायता: 1984 के सिख विरोधी दंगों के समय बड़ी संख्या में सिख परिवारों को संघ के स्वयंसेवकों ने अपने घरों में शरण दी। दंगों के दौरान सिख परिवारों को आश्रय और सुरक्षा प्रदान की गई।
9) प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्यों में योगदान: 1971 और 1977 के चक्रवातों के समय सेवा भारती और संघ के स्वयंसेवकों ने राहत व पुनर्वास कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई। 1971 में ओडिशा में आए चक्रवात और 1977 में आंध्र प्रदेश में आया तूफान बड़ी प्राकृतिक आपदा साबित हुए थे। उस वक्त स्वयंसेवक घर-घर जाकर भोजन व दवाइयां पहुंचाने में जुटे रहे। 2001 के गुजरात भूकंप के बाद संघ कार्यकर्ताओं ने मलबे से लोगों को बचाया, शवों का अंतिम संस्कार किया और पुनर्वास शिविर चलाए। 2013 में भी उत्तराखंड बाढ़ आपदा में सेवा भारती के 5,000 स्वयंसेवकों ने भारतीय सशस्त्र बलों के साथ मिलकर राहत कार्य किए। साथ ही लगभग एक लाख से अधिक तीर्थयात्रियों को सुरक्षित निकाला। इसी तरह केरल और असम में 2018-2020 की बाढ़ के समय भी स्वयंसेवक राहत शिविरों, दवा वितरण और पुनर्वास योजनाओं में सक्रिय रहे।
10) महामारी/स्वास्थ्य विपत्तियों के समय स्वयंसेवकों का योगदान: सन् 2020-2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान स्वयंसेवकों ने देशभर में ऑक्सीजन, भोजन और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराईं। कई स्थानों पर निरंतर कार्य करने वाले सहायता केंद्र स्थापित किए गए। महामारी में भी स्वयंसेवकों ने देशभर में भोजन वितरण, रक्तदान, और स्वास्थ्य सहायता जैसी सेवाएं प्रदान की, जिससे संघ का सेवा स्वरूप और प्रबल हुआ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने प्रत्येक विशेष अवसर चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम का अध्याय हो, युद्धकाल हो या प्राकृतिक आपदा में राष्ट्रहित को सर्वाेपरि रखा है। उनकी सेवा का स्वरूप निःस्वार्थ, अनुशासित और संगठित रहा है। यह परंपरा आज भी आरएसएस के शताब्दी वर्ष (2025) में उसी जीवंत भावना के साथ जारी है, जो भारत को आत्मनिर्भर और एकजुट बनाने की दिशा में कार्यरत है।




