मेरठ, उत्तर प्रदेश
सुबह के सात बज रहे हैं। गांव की गलियों में कहीं पराठों की खुशबू उठ रही है, तो कहीं बच्चों की स्कूल यूनिफार्म पर इस्त्री चल रही है और जल्दी-जल्दी काम निपटाकर उन्हीं घरों से निकलती हैं वो महिलाएं — सिर पर पल्ला, हाथ में झोला, लेकिन आंखों में तेज और चाल में भरोसा लेकर। क्योंकि अब वो घर संभालने के साथ ही कारोबार संभाल रही हैं। उत्तर प्रदेश के इस गांव में जब को ही मिनी फैक्ट्री में बदला गया — तो वहां सिर्फ सामान नहीं बनने लगा अपितु इतिहास गढ़ा जाने लगा। अचार, मसाले, चप्पल, पैकेजिंग हर काम में हुनर, हर पैक में उम्मीद और हर महिला में छुपा एक उद्यमी। अपनी उत्साह और लगन से इन महिलाओं ने लाखों की इकॉनमी खड़ी कर दी है-। कहानी वहीं से बदली, जब मेरठ की महिलाओं को मिला तकनीकी प्रशिक्षण और एक प्लेटफॉर्म , ‘कर्मणि’ नामक ब्रांड। अब उनके बनाए सामान को स्टॉल, ऑनलाइन ऑर्डर और आयोजनों के माध्यम से बाजार तक पहुंचाया जा रहा है। और कमाई? 10,000 से 15,000 रुपये महीने की आमदनी अब उनके अपने हाथ में है। पर असली कमाई क्या है? असली कमाई है सम्मान, पहचान, वो मुस्कान - जो आत्मनिर्भरता से ही आती है। अब ये महिलाएं न किसी की मोहताज हैं, न समाज के पुराने खांचों में फिट होने को मजबूर। अब पंचायत भवन मात्र फैसलों की जगह नहीं नारी शक्ति का कार्यस्थल है। ‘कर्मणि’ अब सिर्फ एक ब्रांड नहीं अपितु हर उस महिला की आवाज है जो कहना चाहती है - "मैं कुछ भी कर सकती हूं, अपनी हौंसलों से, अपनी मर्जी से।"