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बनारस की देवरानी-जेठानी ने संवारी हजारों महिलाओं की जिंदगी

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 वाराणसी, उत्तर प्रदेश

क्या आपने सोचा है कि कांच के छोटे-छोटे मोतियों से करोड़ों का कारोबार खड़ा हो सकता है? और वो भी उस घर से जहाँ पहले दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल था। बनारस के आदित्य नगर की देवरानी नेहा और जेठानी सुनीता ने ये कर दिखाया। ये सिर्फ कारोबार नहीं, ये जज्बे की कहानी है, संघर्ष की मिसाल है और आत्मनिर्भरता की मशाल है। करीब दस साल पहले रात के अंधेरे में घर की जिम्मेदारियों के बीच बैठकर दोनों ने कांच के मोतियों से गहने बनाने की शुरुआत की थी। आज वही गहने अमेरिका-यूरोप में छा गए हैं। बनारस के 4000 से अधिक परिवारों का जीवन संवर गया है और कारोबार 100 करोड़ रुपये के पार पहुंच चुका है। जी हाँ, यह वही महिलाएँ हैं जिनकी कहानी सुनकर हर लड़की कहेगी हमे भी कुछ अपना करना है, आत्मनिर्भर बनना है। जब नेहा इस घर में आई थीं, तब घर की हालत ऐसी थी कि सिर्फ पुरुषों की आमदनी से खर्च नहीं चल पाता था। लेकिन हार मानना इनके बस की बात नहीं थी। उन्होंने अपने हुनर और मेहनत से साबित कर दिया कि 'औरत अगर ठान ले तो दुनिया बदल सकती है'। रात के 10 बजे से काम शुरू कर कई महीनों की मेहनत के बाद उन्होंने अपने गहनों की पहचान बनाई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। ग्लास बीड्स यानी कांच के मनके बनारस की पहचान हैं। 100 साल पुरानी इस कला ने अब नया रूप लिया है। चमकते मोती, डिजाइनदार झुमके, हार ये सब इतना आकर्षक कि विदेशों में भी इसकी डिमांड है। 2016 में जीआई टैग मिलने के बाद इसकी चमक चार गुना बढ़ गई। अब ये न सिर्फ बनारस की कला है अपितु  महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता का रास्ता भी। सुबह-शाम चार-चार घंटे काम करके ये महिलाएँ डेढ़ दिन में 7000 मोती बना देती हैं। महीने में 60-70 हजार रुपये तक की कमाई होती है। इन महिलाओं ने घर, बच्चों की पढ़ाई, शादी, सब कुछ संभाल लिया। अब ये महिलाएँ अपने पैरों पर खड़ी हैं। सुनीता कहती हैं 'ये सिर्फ हमारी कहानी नहीं, आदित्य नगर की हर महिला की कहानी है।' अमेरिका, यूरोप और कई देशों में इनके बनाए गहनों की धूम मची है। ये भारत की हस्तकला को वैश्विक पहचान दिला रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कला विदेशी उत्पादों को चुनौती देती है और भारतीय महिलाओं की ताकत का प्रतीक बन चुकी है। हालाँकि कच्चे माल की कीमतें बढ़ रही हैं, लेकिन अगर सरकार मदद करे तो ये कारोबार और आगे जाएगा। इन महिलाओं का सपना है की हर घर में आत्मनिर्भरता की रोशनी पहुंचे, हर लड़की खुद का सपना पूरा करे और बनारस की कला दुनिया भर में चमके। ये वो महिलाएँ हैं जिन्होंने साबित कर दिया कि मेहनत, विश्वास और साथ मिलकर कोई भी मंजिल हासिल की जा सकती है। बनारस की ये देवरानी-जेठानी आज हर महिला की प्रेरणा हैं।

बनारस की नेहा और सुनीता लोगों के लिए मिसाल बनी हैं.

कांच के मोती के साथ झुमके भी खूब लुभाते हैं.