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संगठित समाज ही राष्ट्र को परम वैभव पर ले जा सकता है – दत्तात्रेय होसबाले जी

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जोधपुर

संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में जोधपुर महानगर के भाग क्रमांक-2 में आयोजित ‘प्रमुख जन गोष्ठी’ में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि करवट ले रहे भारत में समाज के मन और इच्छाशक्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। संस्कार से संगठन का संघ-कार्य ही राष्ट्र के परम वैभव को साकार करने का मार्ग है। अपने प्रवास के दूसरे दिन काजरी (CAZRI) सभागार में आयोजित गोष्ठी में उन्होंने कहा कि संघ अपने शताब्दी वर्ष के निमित्त समाज से संवाद करते हुए, इस प्राचीन राष्ट्र को आधुनिक काल में ‘परम वैभव’ पर ले जाने हेतु प्रयत्नशील है।

उन्होंने डॉ. हेडगेवार जी के विचारों को रेखांकित करते हुए स्पष्ट किया कि केवल व्यक्ति का अच्छा होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसमें ‘राष्ट्रबोध’ और ‘समाज बोध’ होना भी आवश्यक है। ‘व्यक्तिगत चरित्र’ से ‘राष्ट्रीय चरित्र’ को लक्ष्य बनाकर ही संघ और शाखा की संकल्पना की गई है। गोष्ठी की अध्यक्षता महानगर संघचालक प्रकाश जीरावला ने की।

सरकार्यवाह जी ने समाज के समक्ष ‘पंच परिवर्तन’ के विषयों – सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब प्रबोधन, स्वदेशी और नागरिक कर्तव्य – को रखते हुए इन्हें जीवन में उतारने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जीवंत समाज में समस्याएं होती हैं, जिनके समाधान के लिए केवल सरकार पर्याप्त नहीं है, बल्कि एक ‘संगठित समाज’ आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारत की सांस्कृतिक जड़ें एक हैं; उपासना पद्धति अलग हो सकती है, परंतु हमारे पूर्वज और मूल एक ही हैं। यहाँ राष्ट्र की रक्षा ही धर्म की रक्षा है, क्योंकि धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, अपितु एक जीवन पद्धति है।


‘जिज्ञासा समाधान’ सत्र में उपस्थित महानुभावों ने संघ कार्य और समसामयिक विषयों पर अपनी जिज्ञासाएं रखीं। ‘विकसित भारत में आम नागरिक की भूमिका’, ‘शिक्षा व स्वास्थ्य में संघ के प्रयास’ तथा ‘राष्ट्र व धर्म में प्राथमिकता’ जैसे प्रश्नों का उत्तर देते हुए सरकार्यवाह जी ने जिज्ञासाओं का समाधान किया। उन्होंने बताया कि विकसित भारत के लिए आर्थिक विकास के साथ-साथ ‘नागरिक कर्तव्य’ (Civic Sense) और संयमित जीवनशैली भी आवश्यक है। संघ समाज को जाग्रत करने और जोड़ने का कार्य कर रहा है, और समाज के सहयोग से ही बड़े परिवर्तन संभव हैं।