- देश में कई ऐसे सांसद और विधायक हैं, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं
सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीति के अपराधीकरण को लेकर अहम टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा कि कोई अपराधी सरकारी नौकरी नहीं कर सकता है, लेकिन सांसद, विधायक और मंत्री बन सकता है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने केंद्र सरकार व चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
देश में कई ऐसे सांसद और विधायक हैं, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसी पर सर्वोच्च न्यायालय ने प्रश्न किया कि आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद कोई व्यक्ति संसद में कैसे लौट सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इस मुद्दे पर भारत के अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी है। केंद्र और भारत के निर्वाचन आयोग से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
न्यायालय ने कहा कि एक बार जब उन्हें दोषी ठहराया जाता है और दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है तो लोग संसद और विधानमंडल में कैसे वापस आ सकते हैं? इसमें हितों का टकराव भी स्पष्ट है, वे कानूनों की पड़ताल करेंगे।
पीठ ने कहा कि हमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 के बारे में जानकारी होनी चाहिए। यदि कोई सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता का दोषी पाया जाता है तो उसे सेवा के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता, लेकिन मंत्री बन सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, 543 लोकसभा सांसदों में से 251 पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। उनमें से 170 पर ऐसे अपराध हैं, जिनमें 5 या अधिक साल कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा कई ऐसे विधायक हैं जो केस होने के बाद भी MLA बने हुए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि एक पूर्ण पीठ (तीन न्यायाधीशों) ने सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे पर फैसला सुनाया था, इसलिए खंडपीठ (दो न्यायाधीशों) द्वारा मामले को फिर से खोलना अनुचित होगा। इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ के विचार करने के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखने का निर्देश दिया।