महाकुम्भ नगर,
-त्रिवेणी में स्नान, दान और गंगा मैया का आशीर्वाद ले अपने-अपने घरों के लिए किया प्रस्थान
- सभी कल्पवासी स्नान, दान और मां गंगा का आशीर्वाद लेकर महाकुम्भ की आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ अपने-अपने गंतव्य की तरफ प्रस्थान कर गए
संगम तट में लगे आस्था के सबसे बड़े धार्मिक और सांस्कृतिक समागम महाकुम्भ में एक महीने से प्रवाहित हो रही जप, तप और साधना की त्रिवेणी की धारा के साक्षी माघ पूर्णिमा स्नान के साथ कल्पवासी वापिस लौट रहे हैं। पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ त्रिवेणी की रेत पर शुरू हुए कल्पवास का माघ पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ समापन हो गया। सभी कल्पवासी स्नान, दान और मां गंगा का आशीर्वाद लेकर महाकुम्भ की आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ अपने-अपने गंतव्य की तरफ प्रस्थान कर गए।
महाकुम्भ अध्यात्म और संस्कृति का सबसे बड़ा आयोजन है। महाकुम्भ का हर सेक्टर, हर स्थान ज्ञान, भक्ति और साधना के विविध रंगों से गुलजार है। महाकुम्भ में अखाड़ों के वैभव के अलावा जप, तप और साधना की त्रिवेणी के प्रवाह के साक्षी कल्पवासी ब्रह्म मुहूर्त में त्रिवेणी में माघ पूर्णिमा की डुबकी लगाकर अपने शिविर पहुंचे। कल्पवासियों ने तीर्थ पुरोहितों के सान्निध्य में विधि विधान से दान और हवन का अनुष्ठान पूरा किया।
तीर्थ पुरोहित राजेंद्र पालीवाल बताते हैं कि वैसे तो शास्त्र में 84 तरह के दान का उल्लेख है, लेकिन जिसकी जो श्रद्धा होती है, उसका दान तीर्थ पुरोहित स्वीकार कर लेते हैं। शैय्या दान, अन्न दान, वस्त्र दान और धन दान आदि का अनुष्ठान माघ पूर्णिमा को किया जाता है। किसी कारण वश अगर कोई कल्पवासी माघ पूर्णिमा को यह अनुष्ठान पूरा नहीं कर पाता तो वह अगले दिन त्रिजटा का स्नान कर यहां से विदा हो जाता है।
मेला क्षेत्र से कल्पवासियों की सकुशल घर वापसी के लिए महाकुम्भ प्रशासन ने अलग योजना बनाई है। डीआईजी महाकुम्भ वैभव कृष्ण माघ पूर्णिमा के पहले कल्पवासियों से अपील कर चुके थे, जिसके अनुसार ही महाकुम्भ से कल्पवासियों की रवानगी की योजना पर अमल किया गया। मेला क्षेत्र में पहले से ही आ चुके श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए कल्पवासियों के वाहनों की मेला क्षेत्र से निकासी मेला में भीड़ छंटने के बाद सुनिश्चित की गई। श्रद्धालुओं के स्नान के सकुशल सम्पन्न होने के बाद कल्पवासी अपने वाहनों से अपना सामान लेकर विदा हो गए।
महाकुम्भ से विदा होते भावुक हुए कल्पवासी
महाकुम्भ का आयोजन देश के चार स्थानों प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में होता है, लेकिन कल्पवास की परम्परा केवल प्रयागराज में है। इस वर्ष महाकुम्भ के आयोजन ने भी कल्पवास को विशिष्ट बना दिया। सरकार की तरफ से प्रयागराज महाकुम्भ को दिव्य, भव्य और स्वच्छ महाकुम्भ का स्वरूप दिए जाने पर कल्पवासियों का अनुभव भी अलग रहा। प्रतापगढ़ जिले से कल्पवास करने आए राम अचल मिश्रा का कहना है कि कल्पवास के उनके इस वर्ष 18 साल पूरे हो गए। वैसे तो संयम और नियम के साथ पूजा पाठ और जप-तप के साथ संतों की वाणी का श्रवण ही उनका उद्देश्य रहता है, लेकिन इस बार कल्पवासियों के शिविरों को गंगा के घाट के नजदीक स्थान देकर प्रशासन ने अच्छा काम किया है। 76 बरस की उम्र में भी त्रिवेणी के तट में कपकपाती ठंड में रेत में तंबुओं में कल्पवास करने आये सतना के शिवनाथ गहमरी अपने 23वें कल्पवास का अनुभव बताते हुए भावुक हो जाते हैं। त्रिवेणी के तट पर मिली शांति और आध्यात्मिक वातावरण की अनुभूति लेकर वह गंगा मैया की गोद से विदा हो रहे हैं।