डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार अक्सर यह सोचा करते थे कि प्राचीन भारत में सैन्य पौरुष, ज्ञान विज्ञान, अतुलनीय समृद्धि, गौरवशाली संस्कृति इत्यादि सब कुछ होते हुए भी भारत कालांतर में परतंत्र क्यों हुआ। इस प्रशन्न का उत्तर उन्होंने तात्कालीन विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक संस्थाओं एवं स्वतंत्रता आंदोलनों में अपनी भागीदारी के दौरान खोजने का प्रयास किया। इस संदर्भ में उन्होंने अपने विचारों का निष्कर्ष स्वतंत्रता सेनानियों, नेताओं, संत-महात्माओं समेत सभी भारतवासियों के सामने इस प्रकार रखा “हमारे समाज और देश का पतन मुस्लिम हमलावरों या अंग्रेजों के कारण नहीं है। अपितु, राष्ट्रीय भावना के शिथिल हो जाने पर व्यक्ति और समष्टि के वास्तविक संबंध बिगड़ गये तथा इस प्रकार की असंगठित व्यवस्था के कारण ही एक समय दिग्विजय का डंका दसों दिशाओं में बजाने वाला हिन्दू (भारतीय) समाज सैकड़ों वर्षों से विदेशियों की आसुरिक सत्ता के नीचे पददलित है।” डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना भी इसी उद्देश्य को लेकर की थी कि संघ न केवल राष्ट्र की सर्वांग स्वतंत्रता एवं सर्वांग सुरक्षा के लिए देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों का शक्तिशाली संगठन बने बल्कि भारत की सनातन राष्ट्रीय पहचान ‘हिन्दुत्व’ का सुरक्षा कवच भी बने। डॉ. हेडगेवार का स्पष्ट मत था कि भारत के वैभव, पतन, संघर्ष और उत्थान का इतिहास हिन्दुओं के सामाजिक उतार चढ़ाव के साथ जुड़ा हुआ है। अतः भारत को स्वतंत्र करने एवं बाद में स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए देश के बहुसंख्यक प्राचीन राष्ट्रीय समाज हिन्दू को संगठित, शक्तिशाली, चरित्रवान, स्वदेशी, स्वाभिमानी बनाना अति आवश्यक है। डॉ. हेडगेवार के इसी चिंतन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जन्म दिया था।
दरअसल, मुगलों एवं अंग्रेजों के शासनकाल में भारत में हिंदुओं को विभिन्न जाति, धर्म, पंथ एवं सम्प्रदाय में अलग अलग बांटने की पुरजोर कोशिश की गई थी, ताकि भारत एक राष्ट्र के रूप में उभर ही न सके। इसके लिए अंग्रेजों ने तीन सूत्रीय कार्यक्रम पर कार्य किया। (1) हिंदू समाज का गैरराष्ट्रीयकरण अर्थात भारतीय नागरिकों को राष्ट्रवाद की भावना से भटकाना; (2) हिंदू समाज का गैर सामाजीकरण अर्थात भारतीय नागरिकों को विभिन्न समाजों के बीच बांटना; एवं (3) हिंदू समाज का गैरहिंदुत्ववादीकरण अर्थात भारतीय नागरिकों को महान भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति से दूर ले जाना। इस एजेण्डा पर कार्य करते हुए उन्होंने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक अपना शासन सफलतापूर्वक चलाया। डॉ० हेडगेवार ने बीमारी की सही पहिचान कर उसका इलाज भी ठीक तरीके से किया। एक, भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, यह विषय देश में पुनर्स्थापित किया। दूसरा, देश का समाज स्वयं को हिंदू कहने में हीनता अनुभव करता था। भारतीय समाज को हीनता के भाव से निकालकर स्वयं को हिन्दू कहने में गौरवान्वित अनुभव करवाया। आज देशभर में बना हिंदुत्व का वातावरण इसका परिचायक है। तीसरा, ‘संघ शाखा’ नाम की अभिनव पद्धति का अविष्कार किया जिसमें नित्य-नियमित शारीरिक व बौद्धिक कार्यक्रमों से संस्कार ग्रहण कर राष्ट्रभक्ति व देशभक्ति से परिपूर्ण व्यक्ति निर्मित होता है।
सनातन हिन्दू धर्म में वर्ष प्रतिपदा का विशेष महत्व होता है। वर्ष प्रतिपदा यानी वर्ष का पहला दिन। यह भारतीय तिथि के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिवस है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि इसी तिथि को (चैत्र मास की प्रतिपदा को) सृष्टि का प्रारंभ हुआ और इसी दिन से काल गणना का क्रम शुरू हुआ। प्राचीन भारतीय इतिहास में इस दिन अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई हैं और इसी दिन वर्ष 1889 में चैत्र मास के शुक्ल प्रतिपदा के दिन महान देशभक्त और संगठन-शिल्पी डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी हुआ था। आपका जन्म नागपुर में एक साधारण से परिवार में हुआ था। पिता का नाम श्री बलिराम पंत और माता का नाम श्रीमती रेवती बाई था। उस समय बालक केशव को देखकर शायद ही किसी को आभास हुआ होगा कि यह बालक आगे चलकर भारत के भविष्य और समाजिक जीवन में एक नई क्रांति का संचार करेगा।
बचपन में ही बालक केशव में राष्ट्रीय भावना कूट कूट कर भरी थी। यह उनकी बचपन की कुछ घटनाओं से स्पष्ट रूप से सिद्ध होता है। पहली घटना 22 जून 1897 की है। इस समय बालक केशव की आयु मात्र 8 वर्ष थी। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का जन्म दिन पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा था। मिठाइयां बांटी जा रही थी। स्कूल में एक मिठाई का दोना बालक केशव को भी मिला। किंतु जैसे ही बालक केशव को पता चला कि यह मिठाई ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के जन्म दिन के खुशी में बांटी जा रही है, उन्होंने मिठाई के दोने को कूड़े के ढेर पर फेंक दिया और कहा कि मैं उन्हें अपने देश की महारानी नहीं मानता।
डॉ. हेडगेवार के बालजीवन की एक और घटना पर ध्यान दिया जाना चाहिए। नागपुर में सीताबार्डी किले पर अंग्रेजों का झंडा यूनियन जैक लहराता रहता था। बालक केशव को यह अच्छा नहीं लगता था। उनकी चाहत थी कि इसके स्थान पर हिंदवी स्वराज का प्रतीक भगवा-ध्वज होना चाहिए। बालक केशव ने इसे कार्यरूप देने के लिए अपने साथी मित्रों के साथ मंत्रणा कर एक योजना बनाई। योजना यह बनी कि सुरंग खोदकर किले तक पहुंचा जाए और वहां पहुंच कर किले से विदेशी ‘यूनियन-जैक’ को उतार कर उसके स्थान पर अपना ‘भगवा-ध्वज’ फहरा दिया जाए। केशव ने अपने साथियों के साथ मिलकर सुरंग खोदने का काम शुरू भी कर दिया था परंतु जब इस घटना की जानकारी बालक केशव के गुरु को हुई तो उन्होंने समझा-बुझा कर बालक केशव को इसे करने से रोक दिया था।
डॉ. हेडगेवार, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, विपिनचन्द्र पाल, क्रांतिकारी नेता त्रलोक्यनाथ, सरदार भगत सिंह, वीर सावरकार, सुभाषचंद्र बोस, रासबिहारी बोस, श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों की श्रेणी के महापुरुष थे तथा आप आजाद हिंद फौज, अभिनव भारत, गदर पार्टी, अनुशीलन समिति, हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना, हिन्दू महासभा, आर्यसमाज आदि जैसे संगठनों के सम्पर्क में आए और आपने आगे चलकर भारतीय नागरिकों में राष्ट्रभाव जगाने एवं सामाजिक समरसता स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी और यही संघ आज पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ है। संघ शक्ति का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। संघ के स्वयंसेवकों द्वारा समाज जागरण व परिवर्तन के लिए किए गए कार्यों का परिणाम समाज, देश व विश्व के सामने एक प्रतिमान के रूप में खड़ा हो रहा है। इसी कारण आज संघ विश्व में सर्वत्र सर्वाधिक चर्चित है। डॉ हेडगेवार ने कहा था कि “संघ का कार्य व्यक्तियों को जोड़ने का है, तोड़ने का नहीं। अतः इसमें द्वेष की भावना, स्वार्थ, लोकेष्णा आदि का कोई स्थान नहीं है।” संघ के स्वयंसेवक आज भी इसी भावना के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
डॉ. हेडगेवार ने कांग्रेस के भीतर रहकर अखंड भारत, सर्वांग स्वतंत्रता और शक्तिशाली हिन्दू संगठन की आवश्यकता का वैचारिक आधार तैयार करने का पूरा प्रयास किया था तथा वे कांग्रेस के मंचों पर अंग्रेजों के विरुद्ध धुआंधार भाषण भी देने लगे थे। इन भाषणों से समस्त देश ने डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य जाना और उधर डॉ. हेडगेवार के इन तेवरों से अंग्रेजों के मन में भय भी उत्पन्न हुआ था। ऐसे ही एक उग्र भाषण पर डॉ. हेडगेवार को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। उन पर मई 1921 में राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया और एकतरफा फैसले में डॉ. हेडगेवार को एक वर्ष के कठोर सश्रम कारावास की सजा दी गई थी। राष्ट्रवाद के मुद्दे पर डॉ. हेडगेवार के क्रांतिकारी विचार कांग्रेस के नेताओं को असहज कर देते थे, अतः अंततः आपने कांग्रेस छोड़ दी थी एवं पूर्ण रूप से राष्ट्रवादी संगठनों के साथ जुड़ गए थे।
संघ के स्वयंसेवक अपने आद्य सरसंघचालक परम पूजनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार के उन शब्दों को सदैव याद रखे हुए हैं जो उन्होंने अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले बीमारी की हालत में अपनी आंखों में आंसू भर कर कहे थे – “द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ होने जा रहा है, बहुत शीघ्र शक्ति को अर्जित करो ताकि अंग्रेजों को भारत भूमि से उखाड़ा जा सके, समय अनुकूल है” और इस प्रकार डॉ. हेडगेवार अखण्ड भारत – अखण्ड भारत और पूर्ण स्वतंत्रता – पूर्ण स्वतंत्रता कहते हुए जोर जोर से रोने लगे और उनका नश्वर शरीर 21 जून 1940 को ब्रह्मलीन हो गया। उनकी इस पीड़ा में उनके भीतर एक महामानव और राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता सेनानी के दर्शन होते हैं तथा उनका जीवन व्यक्तित्व व विचार आज भी हम सभी भारतीयों के लिए प्रेरणादायक है।