• अनुवाद करें: |
संघ दर्शन

हैदराबाद की मुक्ति में संघ का योगदान

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

हैदराबाद रियासत, हिन्दू और सत्याग्रह में संघ की भूमिका

अगस्त 1946 में निजाम (Nizam) के लोगों का केन्द्र वारंगल किला (Warangal Fort) अद्भुत दृश्य समेटे था। वहां न सिर्फ तिरंगा फहराया जा रहा था, अपितु लोग देश भक्ति के सागर में गोते लगा रहे थे। पूरा क्षेत्र वन्दे मातरम की गूंज से गुंजायमान हो रहा था।

 

हैदराबाद (Hyderabad) की मुक्ति से एक वर्ष पूर्व निजाम के केन्द्र पर तिरंगा (Flag) फहराने वाले ये लोग कौन थे और क्रूर रजाकारों से बिना डरे साहस और देशभक्ति से ओतप्रोत यह तरुण कहां से आए थे? यह जानने से पूर्व हैदराबाद (Hyderabad) रियासत की तत्कालीन स्थिति को जानना अत्यन्त आवश्यक है।

 

हैदराबाद रियासत में 85 प्रतिशत हिन्दू जनता थी जबकि उनका शासक मुस्लिम। निजाम के रजाकार आए दिन हिन्दुओं पर अत्याचार करते और धर्म परिवर्तन के लिए उकसाते।

 

वर्ष 1938 में जब RSS के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को यह बात पता चली तो उनके निर्देश पर सैकड़ों स्वयंसेवक हैदराबाद (Hyderabad) के हिन्दुओं की रक्षा के लिए आगे आए। स्वयंसेवक तरुण जनता का मनोबल बढ़ाने, प्रचार करने और सत्याग्रहियों को सुरक्षित पहुंचाने का कार्य करते। वहीं कुछ कार्यकर्ता सत्याग्रह में प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होते।

 

RSS के प्रमुख कार्यकर्ता और निष्ठावान स्वयंसेवक भैयाजी दाणी सहित कितने ही स्वयंसेवकों ने निहत्थे विरोध प्रदर्शन करते हुए जेल की सजा स्वीकार की। इन घटनाओं ने वहां की जनता में साहस भरने का काम किया।

 

 

वारंगल किले पर देश भक्ति की शक्ति

अगस्त 1946 में जब वारंगल नगर (Warangal) में रजाकारों ने मारकाट मचाई तो स्वयंसेवकों ने वारंगल किले के उत्तर क्षेत्र में पंक्तिबद्ध होकर विरोध प्रदर्शन किया और तिरंगा फहराकर नारे लगाए। स्वयंसेवकों ने हैदराबाद की जनता के साथ शपथ ली कि ‘’अपनी जान दे देंगे किन्तु तिरंगे को नहीं झुकने देंगे।‘’

 

भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय जब जनता ने भारत में विलय की मांग उठाई तो निजाम (Nizam) की सेना ने क्रूरता की हद पार कर दी। ऐसे में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी (Guru ji) के आवाहन पर सैकड़ों स्वयंसेवक (Svyamsevak) सड़क पर उतर आए।

 

 

निजाम के अत्याचारों पर संघ प्रहार

15 अगस्त 1947 के बाद स्थानीय हिन्दुओं ने संघ के स्वयंसेवकों की सहायता से निजाम (Nizam) के विरुद्ध जन संघर्ष तेज कर दिया। निजाम की सेना, रजाकार सत्याग्रहियों पर अत्याचार कर रहे थे और जेलों में डाल रहे थे।

 

क्रूर शासक का इतने से भी मन न भरा तो उसने जनवरी 1948 में बाहर से भाड़े के गुण्डे बुलवाकर सत्याग्रहियों पर जेल के भीतर भी हमले करवाए। परन्तु न तो जनता झुकी और न ही स्वयंसेवक। धीरे-धीरे वहां के युवा और किसान भी सत्याग्रह को मजबूती देने में जुट गए।

 

हैदराबाद को मिली मुक्ति

राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मिलित होने के लिए निजाम (Nizam) के अत्याचारों के विरुद्ध यह सत्याग्रह वहां की जनता में राष्ट्रीयता की भावना का अनुपम उदाहरण है। हैदराबाद (Hyderabad) के क्रूर शासन के अन्त का स्वर्णिम अध्याय है, जिसे बिदार क्षेत्र के किसान आज भी लोकगीत के माध्यम से याद करते हैं।