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विश्व के लोग भारत की रीति-नीति, परंपरा व संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं

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कानपुर प्रांत के अपने प्रवास के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने आज कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की तथा प्रान्त में गतिविधि के कार्यों की जानकारी प्राप्त की।

सरसंघचालक जी ने कहा कि कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि का कार्य छह बिन्दुओं के आधार पर चलता है – भजन, भोजन,  भवन, भाषा, भूषा, भ्रमण। हमारी संस्कृति दुनिया में मार्गदर्शन का केंद्र बिंदु रही है। भारत दुनिया में विश्वगुरु के स्थान पर रहा है और आज फिर विश्व में लोग भारत की रीति नीति परंपरा संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अभी कुम्भ में हमने यह दृश्य देखा कि हमारी संस्कृति संवेदना की है। हमारे परिवार की जो कल्पना है, वह सुरक्षित रहे, संस्कृति सुरक्षित रहे। इसलिए परिवार की आत्मीयता की परंपरा बनी रहनी चाहिए। परिवार के लोग दिन में एक बार साथ मिलकर भोजन करें, परिवार के अंदर अपनी मातृभाषा का प्रयोग हो, हमारी वेशभूषा हमारे संस्कारों को प्रदर्शित करने वाली हो, हमारा भवन ऐसा हो जो लगे यह एक आदर्श हिन्दू घर है। हम स्वयंसेवक इन विषयों को लेकर समाज में बढ़ रहे हैं, समाज को आज इन विषयों की जानकारी की, जागरूकता की आवश्यकता है। परिवार के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति दायित्व की अनुभूति रहे। धीरे-धीरे या विषय समाज में बढ़ता जाए और एक आदर्श परिवार की संकल्पना साकार हो।

पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए सरसंघचालक जी ने पहले पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के कार्यों की जानकारी प्राप्त की। पर्यावरण संरक्षण गतिविधि का नारा है – वृक्ष लगाओ, पानी बचाओ, पॉलिथीन हटाओ। पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के मुख्य उपक्रम पेड़, पानी और पॉलिथीन हैं। घर की जैसी भी बनावट हो, उसके अनुसार बालकनी में, छत में पेड़-पौधों को गमले में लगाना, जल संरक्षण अपने दैनिक कार्यों के द्वारा करना, हानिकारक रसायन युक्त सामग्रियों का कम से कम उपयोग करना, जैव विविधता का संरक्षण, घर में ऊर्जा का संरक्षण।

पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के छह कार्य विभाग हैं – पहला शैक्षणिक संस्थान, दूसरा धार्मिक संस्थान, तीसरा नारी शक्ति, चौथा स्वयंसेवी संस्थान, पांचवा जन संवाद और छठा जनसंपर्क। सरसंघचालक जी ने कहा कि हमारे दैनिक जीवन में राष्ट्रभक्ति का भाव आना चाहिए। समाज में यह भाव निर्माण हो कि यह मेरा देश है। यहां पर उत्पन्न होने वाली बिजली हमारे देश की बिजली है, यहां का जल हमारे देश का जल है। जब अपने देश के प्रति अपनत्व का भाव होगा, राष्ट्र प्रथम का भाव होगा तो हम छोटी-छोटी बातों पर भी विचार करेंगे। व्यर्थ में पानी बर्बाद तो नहीं हो रहा, व्यर्थ में बिजली का उपयोग तो नहीं हो रहा, सड़क पर जा रहे हैं और कोई नल खुला है तो यह मेरा देश है इसमें पानी बर्बाद नहीं होना चाहिए। जब यह भाव हमारे मन में रहेगा तो हम रुक कर नल की टोटी को बंद करेंगे। हमारे घर में आने वाली सामग्री स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है या नहीं, यह विचार होना चाहिए। हमारे घर में स्वदेशी वस्तुएं आ रही हैं या नहीं, यह विचार होना चाहिए। समाज में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है, परंतु अभी और आवश्यकता है। पर्यावरण गतिविधि के कार्यकर्ता स्वयं के साथ-साथ समाज के लिए प्रेरणा बनें। संपूर्ण समाज के अंदर राष्ट्र प्रथम का विचार स्थापित हो जाएगा तो यह सब होना स्वाभाविक हो जाएगा, हमें यही करना है।