प्रयागराज।
- यह आयोजन केवल महाकुंभ तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि इसकी विराटता और अनंतता इसे एक नए स्वरूप में स्थापित करती है
- स्वामी अवधेशानंद गिरि के अनुसार, कुंभ का आशय विशालता और विराटता से है। भारतीय समाज हर चीज को भावनात्मक रूप से जीता है
महाकुंभ में उमड़ रही श्रद्धालुओं की अपार भीड़ को देखते हुए पंच दशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने इसे 'सनातन कुंभ' कहने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन केवल महाकुंभ तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि इसकी विराटता और अनंतता इसे एक नए स्वरूप में स्थापित करती है।
महाकुंभ से भी बड़ा है यह आयोजन-
स्वामी अवधेशानंद गिरि के अनुसार, कुंभ का आशय विशालता और विराटता से है। भारतीय समाज हर चीज को भावनात्मक रूप से जीता है, यही कारण है कि अर्द्धकुंभ को भी कुंभ कहा गया था। उन्होंने बताया कि 144 वर्षों के बाद किसी विशेष संयोग के कारण इसे महाकुंभ कहा जा रहा है। लेकिन इस महाकुंभ में अब तक 50 करोड़ से अधिक श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं, जो इसे महाकुंभ से भी बड़ा बना देता है।
सनातन परंपरा का प्रतीक है कुंभ-
स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कुंभ के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आयोजन सतयुग के समय से चला आ रहा है। समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं, तभी से कुंभ की परंपरा चली आ रही है। यह सनातन धर्म की महनीयता का प्रतीक है, जहां हर कोई स्वतः खिंचा चला आता है।
वैश्विक स्तर पर कुंभ की मान्यता-
उन्होंने इस आयोजन की वैश्विक मान्यता की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि यूनेस्को ने कुंभ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया है। यह केवल भारत का नहीं, बल्कि समस्त मानवता का कुंभ है। यहां जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता और एकता के दर्शन होते हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस भव्य आयोजन के लिए धन्यवाद दिया।
युवाओं में बढ़ता आकर्षण-
इस महाकुंभ में युवाओं की बड़ी संख्या को देखकर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि आज का युवा अत्यधिक सचेत और जिज्ञासु है। वे सत्य को जानने की प्यास रखते हैं। विदेशी श्रद्धालुओं में भी योग, आयुर्वेद और उपनिषदों के प्रति बढ़ता आकर्षण देखा गया है। उन्होंने इसे सनातन संस्कृति का विस्तार और पुनर्जागरण बताया।
संभावनाओं से भरा है जीवन-
अंत में, उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति में अपार संभावनाएं होती हैं। सफलता के लिए ऊर्जा, योग्यता, पात्रता और विचार आवश्यक हैं। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करना सीखना चाहिए।
इस प्रकार, महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा की एक महान विरासत है, जो पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।