राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि अपने देश के नाम का संबंध सिंध से है. सिंधी समाज का योगदान प्राचीन समय से अब तक देश में बराबरी का रहा है. भारत की स्वतंत्रता का 75वां वर्ष चल रहा है. देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदानियों ने ऐसा इतिहास रचा कि स्वयं जाकर मौत का सामना किया. बलिदानी हेमू कालाणी जानते थे कि वे जो कर रहे हैं, अगर पकड़े गए तो उसके परिणाम क्या होंगे? 19 वर्ष की आयु में उन्हें उम्रकैद की सजा हुई थी, लेकिन मिलिट्री एडमिनिस्ट्रेटर ने उम्रकैद को फांसी की सजा में बदल दिया. हेमू कालाणी जी को बहुत लोगों ने कहा कि साथियों के नाम बता दो तो हम तुमको छोड़ देंगे. हम तुम्हारी सजा कम कर देंगे. लेकिन वे अड़े रहे. मौत के सामने भी उनका निश्चय नहीं डिगा. अपने जीवन की सार्थकता देश के लिए बलिदान होने में है. ऐसा मानकर हेमू कालाणी ने अपना प्राणार्पण किया. तरुण आयु में उनके जाने का दुःख तो होता है, लेकिन उनसे प्रेरणा भी मिलती है. हम लोगों को जीवन की राह बताकर उन्होंने अपना जीवन दे दिया.
सरसंघचालक जी शुक्रवार को दशहरा मैदान भेल में आयोजित अमर बलिदानी हेमू कालाणी जन्मशताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि तब जो तंत्र था, वह विदेशी तंत्र था. विदेशी लोगों का राज नहीं चाहिए, अपने लोगों का राज चाहिए. वह अच्छा राज्य होना चाहिए, सुराज होना चाहिए. इसलिए उस राज्य में इन बलिदानियों जैसा ही समर्पण रखने वाले, प्रामाणिकता रखने वाले, अपने देश, बांधवों के दुख के प्रति संवेदना रखने वाले ऐसे लोग होने चाहिए. यह जो तंत्र चलता है, उसकी जो दिशा है, उसके पीछे जो विचार है वह हमारे अपने लोगों की प्रकृति, संस्कृति से मेल खाने वाला होना चाहिए. ऐसी इच्छा रखकर उन्होंने अपने प्राण दे दिए. इस विश्वास के साथ कि हम तो चले जाएंगे, लेकिन हमारे जाने से और स्वतंत्रता नजदीक आएगी, करते-करते एक दिन स्वतंत्रता मिल जाएगी, हम रहेंगे नहीं लेकिन भारत रहेगा.
उन्होंने कहा कि मैं विचार करता हूँ कि अपने स्व को बचाने के लिए सभी बलिदान हुए हैं. स्वतंत्रता के बाद दुर्भाग्य से दो में से एक चुनने की बारी आई तो आप पराक्रमी लोगों ने भारत को नहीं छोड़ा. आप भारत से भारत में आये. जब आप वहाँ थे, तब वहाँ भारत था. उस भारत को छोड़ने के बजाय उस भारत सहित आप इस भारत में आए. हमने उस जमीन को भौतिक दृष्टि से छोड़ दिया, लेकिन पहले वह क्या था? ऐसा दुनिया में कोई कुछ पूछेगा तो बताना पड़ेगा कि वह भारत था. सृष्टि में जब दूसरा कुछ नहीं था, तब सारी दुनिया में सनातन का प्रभाव था. उस समय वहाँ क्या था? वहाँ भारत था, सिंधु संस्कृति थी. वेदों के उच्चारण होते थे. भारतीय संस्कृति के त्याग के मूल्यों वाला जीवन चलता था. हमको उस भारत को बसाना है. महाभारत, रामायण में सिंध के उल्लेख मिलते हैं. वहाँ के राजा, वहाँ की प्रजा सबका वर्णन मिलता है. सिंधु नदी के सूक्त वेदों में हैं. ये नाता हम कैसे तोड़ सकते हैं? हम उस सिंधु को नहीं भूलेंगे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि यह विभाजन कृत्रिम है. जिसने तीन महीने में सीमांकन किया, उसने भी कहा – मैं इसका विशेषज्ञ नहीं हूं. मैं नहीं जानता मैंने क्या किया. ऐसा ही विभाजन है. आज पाकिस्तान के लोग भी कहते हैं, यह गलती हो गई. सब कह रहे हैं, सब मानते हैं. जो अपनी गलती के कारण भारत से अलग हो गए. वे आज दुखी हैं. अगर यह गलत है तो गलती का सुधार करने में क्या लज्जा है. इसलिए मैं कहता हूँ कि आप तैयार रहिये. मेरे कहने का कतई ये मतलब नहीं है कि भारत आक्रमण करे. यह गलत है. हम उस संस्कृति से हैं, जिसने जीजान से मुंहतोड़ जवाब देकर अपनी रक्षा तो की है, लेकिन हम आक्रमणकारी नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि बलिदानी हेमू कालाणी का हम स्मरण करते हैं तो उनके जीवन की प्रामाणिकता और देशभक्ति को ध्यान में रखना चाहिए. अपने देश, समाज के हित में छोटे संकुचित स्वार्थों को छोड़कर सारे देश के साथ तन्मय एकाकार होते हुए सर्वस्व त्याग के लिए उनकी जो तैयारी थी, उसको ध्यान में रखकर वैसा होने का प्रयास करें. भारत केवल जमीन का नाम नहीं है. हमारी हस्ती कभी मिटी नहीं. उसका कारण है कि हम अपने स्वार्थों के साथ नहीं रहते. हम अपने अहंकार के साथ नहीं रहते.
सरसंघचालक जी ने सिंधी समाज से आह्वान किया कि नई पीढ़ी को उसके इतिहास और संस्कृति का भान हो. वह अपना रास्ता छोड़कर भटकें नहीं. इसकी चिंता करके उनका प्रबोधन करें.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि विभाजन के बाद सिंधी समाज सबकुछ छोड़कर आ गया. लेकिन यहां खुद को पुन: खड़ा किया. उन्होंने घोषणा की कि सिंधी समाज की मांग पर राजा दाहिर, बलिदानी हेमू कालाणी, भगत राम कंवर के जीवन परिचय को पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया जाएगा. सिंधु दर्शन योजना के अंतर्गत प्रत्येक तीर्थयात्री को 25 हजार रुपये अनुदान दिया जाएगा. सिंधी साहित्य अकादमी का बजट भी बढ़ाकर 5 करोड़ रुपए किया जाएगा. मनुआभान पर हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की जाएगी. सिंधी संस्कृति, महापुरुषों, क्रांतिकारियों के जीवन चरित दर्शाने के लिए एक संग्रहालय भी बनाया जाएगा.
महामंडलेश्वर महंत स्वामी हंसराम जी ने कहा कि सिंध के लोगों ने स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया है. हेमू कालाणी ने जो बलिदान दिया, वह सर्वसमाज के लिए था. कार्यक्रम की प्रस्तावना सिंधु महासभा के सदस्य प्रहलाद सबनानी ने रखी. संचालन राजेश वाधवानी ने किया. कार्यक्रम में देश भर से आये कलाकारों ने प्रस्तुतियां दीं.
सिंधी समाज के 10 विशिष्ट व्यक्तियों को किया सम्मानित
कार्यक्रम के प्रारंभ में अलग-अलग क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान देने वाले सिंधी समाज के विशिष्टजनों को सम्मानित किया गया. इनमें पद्मश्री डॉ सुरेश आडवाणी, टेक महिन्द्रा के सीईओ सीपी गुरनानी, व्यवसायी एवं समाजसेवी मनोहर फेरवानी, पॉलीकैब इंडस्ट्रीज के चेयरमैन इंदर जयसिंघानी, राम बख्शनी दुबई, गायक संगीतकार मास्टर चंदर, युवा फिल्म निर्देशक सतराम रामानी, साहित्यकार डॉ. राम जवालानी, महेश जेठमलानी, सामाजिक संगठन तितलियां की संस्थापक अनीता गुरनानी को सम्मानित किया गया.
पुस्तक विमोचन और प्रदर्शनी लगी
कार्यक्रम में अतिथियों ने तीन पुस्तकों का विमोचन किया. इनमें सुधीर आजाद का नाटक शेर ए सिंध हेमू कालाणी, मप्र सिंधी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित हेमू कालाणी की गौरव गाथा के साथ ही लेखक राजेंद्र प्रेमचंदानी की पुस्तक सिंध के क्रांतिकारी का विमोचन किया गया. कार्यक्रम स्थल पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी, जिसमें सिंध के इतिहास, संस्कृति, धर्म और महापुरुषों के जीवन की झलक देखने मिली.