पुणे, 20 दिसंबर.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि भारत का विभाजन विश्व के इतिहास की एकमात्र घटना है. ऐसी घटना फिर न हो, इसके लिए देश की एकता व एकात्मता को लेकर कोई भी भ्रांति नहीं होनी चाहिए. यह बात सभी धर्मों व विचारधाराओं के लोगों को समझाने की आवश्यकता है. इतिहास का विस्मरण हो चुके लोगों को पुनः पुनः इतिहास बताना पड़ेगा.
सुनील आंबेकर मंगलवार को पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा फर्ग्युसन कालेज मैदान पर आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक प्रदर्शनी के दौरान भारतीय विचार साधना प्रकाशित तथा डॉ. गिरीश आफले लिखित ’व्यथा हिंदुस्थानच्या विभाजनची’ पुस्तक का विमोचन किया. मंच पर लेखक व विचारक प्रशांत पोल, अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के अध्ययनकर्ता प्रा. डॉ. केदार नाइक, वरिष्ठ लेखिका प्रतिभा रानडे तथा भाविसा के कार्यवाह राजन ढवलीकर उपस्थित थे.
सुनील आंबेकर ने कहा कि “इतिहास को लेकर हमारे यहां कई भ्रांतियां हैं. इतिहास की इस दुविधा से बाहर निकलना आवश्यक है. यह राष्ट्रीय कार्य है और अत्यंत आवश्यक है. इस देश का विभाजन विश्व के इतिहास की एक अनोखी घटना है. यह बड़े दुख की बात है कि ऐसा बाहरी लोगों ने नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों ने किया. इस घटना को हमें न कभी भूलना चाहिए और न कभी भूलने देना चाहिए. विभाजन से जुड़ी कई बातें न जानने के कारण आज भी कई लोग भ्रमित हैं. इस भ्रम के परिणाम तब भी महसूस किये गये थे और आज भी महसूस किये जा रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि राष्ट्र का निर्माण किसी मसीहा या विचार के आधार पर नहीं होता है. एक राष्ट्र का विचार हजारों वर्षों की साधना व आत्मीयता से आकार लेता है. देश की एकता और अखंडता को लेकर कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए.
पुस्तक के लेखक डॉ. गिरीश आफले ने कहा, “स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया था. लेकिन स्वतंत्रता के बाद आए शासकों ने इस इतिहास को दबा दिया. यह पुस्तक उसी दबाए गए इतिहास को सामने लाने के लिए लिखी गई है”.
'विभाजन, भारत और भवितव्य’ विषय पर कार्यक्रम में परिचर्चा की गई. प्रतिभा रानडे, प्रशांत पोल और केदार नाइक सहभागी हुए. इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि भारत का विभाजन अटल नहीं था, बल्कि तत्कालीन नेतृत्व की गलतियों के कारण विभाजन हुआ. इस विभाजन से किसी का भला नहीं हुआ.