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जहां शिव-पार्वती ने लिए थे सात फेरे, वहीं अब बंध रहे हैं युगल पवित्र विवाह सूत्र में

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  • त्रियुगीनारायण मंदिर बना विवाह का वैश्विक केन्द्र, चार महीनों में 500 से अधिक विवाह संपन्न
  • रुद्रप्रयाग के इस पौराणिक स्थल पर देश-विदेश से आ रहे हैं नवयुगल, सनातन रीति-रिवाजों के अनुसार रचा रहे हैं विवाह
  • इसरो वैज्ञानिक, लोकगायक और फिल्मी कलाकार भी ले चुके हैं पवित्र अग्नि के समक्ष फेरे

रुद्रप्रयाग : कल्पना कीजिए एक ऐसा स्थान, जहां पावन अग्निकुंड के सामने वेद मंत्र गूंज रहे हों, चारों ओर हिमालय की निस्तब्धता और दिव्यता फैली हो और प्रेमी युगल सप्तपदी के साथ आजीवन साथ निभाने का संकल्प ले रहे हों। यह स्थान कोई कल्पना नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड का त्रियुगीनारायण मंदिर है। वह स्थान जहां भगवान शिव और पार्वती का दिव्य विवाह हुआ था। आज यही स्थल नवयुगलों की पहली पसंद बन चुका है, जो जीवन की नयी शुरुआत सनातन परंपराओं के साथ करना चाहते हैं। 

उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर, एक पवित्र विवाह स्थल के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध हो चुका है। जहां प्राचीन काल में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, आज यहाँ आधुनिक युग के नवयुगल परिणय सूत्र में बंधने आ रहे हैं। साल 2025 के शुरुआती चार महीनों में ही यहां 500 से अधिक शादियां संपन्न हो चुकी हैं। जबकि पूरे वर्ष 2024 में कुल 600 विवाह हुए थे। यह वृद्धि दर्शाती है कि अब यह स्थल केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।

प्रधानमंत्री की अपील से बढ़ा आकर्षण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई अवसरों पर उत्तराखंड को डेस्टिनेशन विवाह के लिए बढ़ावा देने की बात कह चुके हैं। इसी का परिणाम है कि अब त्रियुगीनारायण मंदिर देश-विदेश से आने वाले नवयुगलों की सूची में सबसे ऊपर है। त्रियुगीनारायण में अब तक इसरो के एक वैज्ञानिक, अभिनेत्री चित्रा शुक्ला, कविता कौशिक, निकिता शर्मा, गायक हंसराज रघुवंशी, यूट्युबर आदर्श सुयाल, गढ़वाली लोकगायक सौरभ मैठाणी सहित कई नामचीन हस्तियां विवाह कर चुकी हैं।

पंजीकरण अनिवार्य, विधिपूर्वक सम्पन्न होता है विवाह

मंदिर के पुजारी सच्चिदानंद पंचपुरी बताते हैं कि यहां वैदिक परंपरा के अनुसार ही विवाह होते हैं। विवाह से पहले युगल को पंजीकरण कराना अनिवार्य है। विवाह वेदी मंदिर परिसर में ही बनाई जाती है, जहां अग्निकुंड के सामने सप्तपदी होती है। विवाह के बाद नवविवाहित जोड़ा मंदिर में स्थित अखंड ज्योति के समक्ष पग फेरा करता है।

स्थानीय लोगों को मिला आजीविका का साधन

इस परिवर्तन का लाभ स्थानीय लोगों को भी मिल रहा है। होटल व्यवसायी, पूजन-पाठ करने वाले पंडित, वाद्य यंत्र बजाने वाले कलाकार, मांगलिक दल और विवाह आयोजक सभी को रोजगार प्राप्त हो रहा है। निकटवर्ती सीतापुर क्षेत्र तक के होटल और अतिथि गृह विवाह समारोहों से भरे रहते हैं।

मंदिर का पौराणिक महत्व

  • त्रियुगीनारायण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि शिव-पार्वती के विवाह में स्वयं विष्णु जी ने भाई बनकर माता के कन्यादानकर्ता का धर्म निभाया था।
  • मंदिर परिसर में स्थित अग्निकुंड आज भी अखंड जलता है जहां शिव-पार्वती ने फेरे लिए थे।
  • इसकी वास्तुशिल्पीय शैली केदारनाथ मंदिर से मेल खाती है।

जहां प्रेम पवित्रता में ढलता है, वहां समय रुक जाता है। त्रियुगीनारायण मंदिर आज उसी ठहराव का प्रतीक है जहां हर जोड़ा चाहता है कि उसकी कहानी भी शिव-पार्वती जैसी अमर हो जाए। यह केवल शादी का स्थल नहीं, बल्कि सनातन परंपरा, आस्था और शाश्वत प्रेम का संगम है।