काशी
संस्कृत भारती के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष दिनेश कामत जी को अन्नपूर्णा श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार में अपने जीवन को समर्पित कर 51 वर्षों से पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में भारत में ही नहीं, अपितु विश्व में संस्कृत भाषा का मान बढ़ाया है। अखिल भारतीय संस्कृत साहित्योत्सव एवं विश्व संस्कृत पुस्तक मेला को अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया है। भारत के राजनीतिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक, न्यायिक अधिकारियों द्वारा संस्कृत में शपथ ग्रहण, प्रशासनिक पत्रों का लेखन एवं उद्बोधन में संस्कृत भारती का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके दृष्टिगत संस्कृत भारती के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष दिनेश कामत जी को अन्नपूर्णा श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के महामना सभागार में विद्वत् सम्मान समारोह आयोजित हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने सभी विद्वानों को सम्मानित किया। सभी को सम्मान-पत्र, अंगवस्त्र, रुद्राक्ष माला तथा 51 हजार रु की राशि प्रदान की गई। असम के राज्यपाल ने कहा कि आज भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का काल है। काशी की अतिप्राचीन शास्त्रार्थ परम्परा को उत्तरप्रदेश नागकूप शास्त्रार्थ समिति ने जीवन्त उत्सव बना दिया है। आज महनीय विद्वानों की उपस्थिति इस बात का बोध कराती है कि काशी शास्त्रार्थ की भूमि है, सत्य को प्रतिष्ठित करने के लिए शास्त्रों की रक्षा के लिए काशी में प्राचीन काल से शास्त्रार्थ होते रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम आभारी हैं श्री काशी विद्वत्परिषद् के, जिनके मार्गदर्शन में काशी की शास्त्रार्थ परम्परा देश- दुनिया में नजीर बनकर उभरी है। आज पुनः काशी के मठ-मन्दिरों, गुरुकुलों तथा संस्कृत विद्यालयों में शास्त्रार्थ गूंजायमान हो रहा है। कार्य का आरम्भ वैदिक मंगलाचरण तथा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामन्त्री स्वामी जितेन्द्रानन्द जी ने कहा कि आज जिन विद्वानों का सम्मान हुआ है, वे सभी विद्वान भारतीय सनातन विद्याओं के मार्गदर्शक आचार्य हैं। अति-विशिष्ट अतिथि महन्त शंकरपुरी जी ने कहा कि काशी की शास्त्रार्थ परम्परा को जीवन्त रखने को काशी के सभी सन्त एकजुट हों। सारस्वत अतिथि जगद्गुरु संतोषाचार्य सतुआ बाबा ने कहा कि काशी का वैभव काशी की शास्त्रार्थ परम्परा है। श्री काशी विद्वत्परिषद् काशी के पारम्परिक शास्त्रों की संरक्षिका है। जिनके मार्गदर्शन में सनातन संस्कृति सुरक्षित है। बालकदेवाचार्य जी पातालपुरी पीठाधीश्वर ने कहा कि विद्वानों का सम्मान शास्त्रों का सम्मान है। का.हि.वि.वि. के कार्यपरिषद् सदस्य दिलीप सिंह पटेल ने कहा कि आज का ये सम्मान सनातन धर्मावलम्बियों के लिए उदाहरण है। संस्कृत भारती के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष दिनेश कामत ने कहा कि भारत की मातृभाषा संस्कृत भाषा होनी चाहिए। संस्कृत भाषा के उच्चारण के अनेकों लाभों पर उन्होंने प्रकाश डाला तथा अनेक अनुभवों को विद्वानों के समक्ष साझा किया। कार्यक्रम अध्यक्ष श्री काशी विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष पद्मभूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा है, इसके बिना भारत के विश्वगुरुत्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए सभी को पारम्परिक शास्त्रों की रक्षा करनी चाहिए। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन तथा संयोजन श्री काशी विद्वत्परिषद् के राष्ट्रीय महामन्त्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने किया। स्वागत भाषण उत्तर प्रदेश नागकूप शास्त्रार्थ समिति के अध्यक्ष प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने किया।