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गांवों में मछली पालन बना आर्थिक सशक्तिकरण का जरिया

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तालाब से तरक्की की राह : गांवों में मछली पालन बना आर्थिक सशक्तिकरण का जरिया 

जब खेती के साथ आय के अन्य स्रोतों की जरुरत महसूस हुई, तब कुछ लोगों ने गांव की मिट्टी और पानी में ही तरक्की का रास्ता खोज लिया। उत्तर प्रदेश के कई छोटे-छोटे गांवों से आज ऐसी कहानियाँ निकल रही हैं, जो दिखाती हैं कि मछली पालन अब सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि गांवों की आर्थिक समृद्धि और रोजगार का मजबूत जरिया बन रहा है। वाराणसी के पिंडराई गांव के विक्रांत पाठक ने एक हेक्टेयर में मछली पालन से शुरुआत की। शुरुआत में चुनौतियाँ थीं, लेकिन सरकारी सहयोग और मत्स्य विभाग की वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से उन्होंने आज 40 हेक्टेयर में मछलियों का विस्तृत उत्पादन शुरू कर दिया। वह हर साल लगभग 1.5 करोड़ रुपये की आय अर्जित कर रहे हैं और 150 किसानों को अपने साथ जोड़कर 30 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार दे रहे हैं। वहीं, जौनपुर की मीरा सिंह ने 2020 में एक एकड़ के तालाब से मछली पालन की शुरुआत की और अब 25 एकड़ भूमि में सालाना 1400 कुंतल मछली उत्पादन कर रही हैं। उन्होंने मछली बीज हैचरी भी शुरू की है और आस-पास के गांवों में बीज सप्लाई कर रही हैं। विक्रांत और मीरा जैसे प्रयास यह दिखाते हैं कि यदि सही मार्गदर्शन, सरकारी योजनाओं की मदद और स्थानीय संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग हो — तो ग्रामीण भारत न केवल आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि दूसरों को भी रोजगार देने वाला बन सकता है। मछली पालन आज खेती का पूरक बनकर गांवों में आर्थिक उन्नति की नई लहर ला रहा है।