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औरंगजेब की ऐतिहासिक हवेली समेत चार धरोहरें ध्वस्त, संरक्षण पर उठे सवाल

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- 1868 के नक्शे और 1871 में एसी कार्लाइल की रिपोर्ट में इसका विस्तृत उल्लेख मिलता है

- यह यमुना किनारे के रिवरफ्रंट गार्डन का हिस्सा थी, जिसमें 17 बाग और 28 हवेलियां शामिल

आगरा। मुगलकालीन दौर की ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने में लापरवाही के चलते बीते तीन महीनों में आगरा में चार महत्वपूर्ण धरोहरें ध्वस्त हो चुकी हैं। इनमें मुबारक मंजिल (औरंगजेब की हवेली), छीपीटोला का शाही हम्माम, यमुना किनारे जोहरा बाग और दिल्ली हाईवे की लोदीकालीन मस्जिद शामिल हैं। राजा जयसिंह के 17वीं सदी के नक्शे में दर्ज मुबारक मंजिल को संरक्षित करने की अधिसूचना जारी होने के बाद भी इसे ध्वस्त कर दिया गया।  

मुबारक मंजिल: इतिहास का एक अध्याय मिटा - 

मुबारक मंजिल, जिसे ऑस्ट्रियाई इतिहासकार एब्बा कोच ने "आलमगीर की हवेली" बताया था, मुगल शासकों शाहजहां, शुजा और औरंगजेब के लिए महत्वपूर्ण स्थान रही। यह यमुना किनारे के रिवरफ्रंट गार्डन का हिस्सा थी, जिसमें 17 बाग और 28 हवेलियां शामिल थीं। 1868 के नक्शे और 1871 में एसी कार्लाइल की रिपोर्ट में इसका विस्तृत उल्लेख मिलता है।  

ब्रिटिश काल में इसे नमक दफ्तर, कस्टम हाउस और रेलवे के माल डिपो के रूप में उपयोग किया गया। 1902 में लॉर्ड कर्जन ने इसे तारा निवास का नाम दिया और मुस्लिम समुदाय के पूजा के दावे को खारिज कर दिया।  

अन्य धरोहरें भी संकट में - 

तीन मुगल शहंशाहों की वास्तुकला समेटे इस संरक्षित धरोहर की तीन मंजिलें दिवाली पर गिर गईं। 1620 में अल्लावर्दी खां द्वारा निर्मित यह संरचना पिछले महीने तोड़ी जाने लगी, लेकिन हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। बाबरी मस्जिद की शैली में बनी यह धरोहर एडॉप्ट हेरिटेज योजना में थी, लेकिन अक्टूबर में इसका गुंबद गिर गया।  

सरकारी लापरवाही और प्रशासन की प्रतिक्रिया -  

राज्य पुरातत्व विभाग ने मुबारक मंजिल को संरक्षित करने की अधिसूचना जारी की थी और आपत्तियां मांगी गई थीं। हालांकि, अंतिम अधिसूचना जारी होने से पहले ही इसे बुलडोजर से गिरा दिया गया। पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी राजीव त्रिवेदी का कहना है कि यह धरोहरें तोड़ी नहीं जा सकतीं और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।  

धरोहरों के संरक्षण की जरूरत -  

आगरा सिविल सोसाइटी के राजीव सक्सेना का कहना है कि ये धरोहरें इतिहास की जीती-जागती तस्वीर हैं। इनकी सुरक्षा के लिए पुरातत्व विभाग को ठोस कदम उठाने चाहिए।  

मुगलकालीन धरोहरों को इस तरह नष्ट किया जाना इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के प्रति उदासीनता का परिचायक है। यह समय है कि सरकार, स्थानीय प्रशासन और समाज मिलकर इन धरोहरों के संरक्षण के लिए ठोस नीतियां बनाएं। ऐसा न करना आने वाली पीढ़ियों को इतिहास के इस अमूल्य खजाने से वंचित कर देगा।