"राहुल" नहीं, दानिश था वो – प्रेम की आड़ में 9 साल का मजहबी कैदखाना
उत्तर प्रदेश पीलीभीत,वो प्रेम नहीं, एक जाल था… और उस जाल में फँसी एक मासूम हिंदू युवती की पूरी जिंदगी दाव पर लग गई। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में ‘दानिश’ नामक युवक ने खुद को ‘राहुल’ बताकर युवती से दोस्ती की, फिर प्रेम का ढोंग रचाया। वर्ष 2019 में उसने विवाह का प्रस्ताव रखा। युवती ने उसे हिंदू समझकर हाँ कर दी। लेकिन जब वह बताए गए स्थान पर पहुंची तो वहाँ मौलवी को बैठा देखकर उसे शक हुआ। उस वक्त दानिश ने खुद को मुस्लिम बताते हुए कहा कि अगर निकाह नहीं किया तो वह आत्महत्या कर लेगा और सभी को फंसा देगा। डर और सामाजिक बदनामी की आशंका में युवती चुप रही और वहीं मौलवी ने जबरन निकाह पढ़वा दिया। यही नहीं, युवती का नाम बदलकर ‘अर्शी’ रख दिया गया और इस तरह एक हिंदू बेटी की पहचान, आस्था और स्वतंत्रता को मजहब की दीवारों में कैद कर दिया गया।
सिलसिला यहीं नहीं थमा ... युवती को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया गया, नमाज पढ़ने और इस्लामी रिवाजों को अपनाने के लिए मानसिक रूप से कुचला गया। दानिश की माँ ‘मुन्नी’ और पूरा परिवार उसके जीवन को नियंत्रित करने लगा। उसे घर से बाहर जाने नहीं दिया जाता था, ताकि वह किसी को अपनी सच्चाई न बता सके। पीड़िता ने बताया कि उसके दो बच्चे हुए एक बेटा और एक बेटी लेकिन उन बच्चों की परवरिश से अधिक चिंता इस्लामी रीति-रिवाजों की जबरन थोपने की थी। उसे कई बार जबरदस्ती गौमांस खिलाया गया। सबसे घिनौनी बात तब सामने आई जब पता चला कि दानिश का बड़ा भाई नाजिम भी लगातार उसका शारीरिक शोषण करता रहा। यह सब कुछ एक ‘निकाह’ की आड़ में चलता रहा — जिसमें मजहब, परिवार और झूठी पहचान के नाम पर इंसानियत को रौंदा गया।
पूरे 9 वर्षों तक युवती इस मजहबी जेल में कैद रही, न घर लौट सकती थी, न चीख सकती थी, न न्याय मांग सकती थी। अपने स्वजनों से कट चुकी, सामाजिक दबाव में घिरी इस बेटी के लिए निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा था। मगर कहते हैं न, अंततः सत्य ही जीतता है। 30 जून 2025 को वह किसी तरह उस नरक से भागने में सफल हुई और अब जाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कर पाई। पीड़िता की एफआईआर में मतान्तरण, दुष्कर्म, मारपीट और झूठी पहचान जैसी गंभीर बातों का जिक्र किया गया है। इंस्पेक्टर का कहना है कि मतान्तरण जांच के बाद केस बढ़ाई जाएगी — मगर प्रश्न यह है कि जब साक्ष्य इतने स्पष्ट हैं, तो देर किस बात की?
इस घटना को केवल एक आपराधिक केस समझना बहुत बड़ी भूल होगी। यह एक मानसिकता है, जो वर्षों से सुनियोजित तरीकों से काम कर रही है। एक सोची-समझी रणनीति के तहत हिंदू नाम रखकर हिंदू बेटियों को प्रेम के जाल में फंसाया जाता है, फिर मतान्तरण और निकाह के नाम पर उन्हें मानसिक, शारीरिक और सांस्कृतिक गुलामी के लिए मजबूर किया जाता है। यह लव जिहाद नहीं, अपितु हिंदू समाज के विरुद्ध मजहबी आक्रमण का नया रूप है जिसमें हर बार शिकार होती है कोई मासूम बेटी।
अब समय आ गया है कि समाज इस "राहुल नहीं दानिश है" जैसे षड्यंत्र को पहचानें। यह व्यक्तिगत अपराध नहीं है — यह सनातन संस्कृति पर हमला है। यह घटना एक चेतावनी है हर उस परिवार के लिए जो अपनी बेटियों को स्वतंत्रता तो देता है, मगर सतर्कता नहीं सिखाता। अब आवश्यकता है जागरूकता की, धार्मिक पहचान की रक्षा की और उन बेटियों की सुरक्षा की, जो प्रेम की आड़ में अपने अस्तित्व से हाथ धो बैठती हैं।