श्रद्धा पर आर्थिकता का
मापदण्ड कितना उचित? गोहत्या पर श्री गुरुजी
का चिंतन
गोहत्या को लेकर चिंतन
करते हुए एक लेख में श्री गुरुजी लिखते हैं, "आजकल बड़े-बड़े विद्वान, ख्यातनाम सज्जन भी गोहत्या का आर्थिक दृष्टि से समर्थन करते
हुए दिखाई देते हैं, गोहत्या-निषेध से चर्म
व्यापार से होने वाली आर्थिक डॉलर प्राप्ति रुक जाएगी आदि अनेक आक्षेप खड़े करते
हुए भी दिखाई देते हैं। गोहत्या निषेध के विचार को वायुमण्डल में प्रेषित करने के
उपरांत अनेक विद्वानों ने इन सब आक्षेपों का सांगोपांग विवेचन करने का निश्चय किया
है। इसके पूर्व भी अनेक विद्वानों ने इस सम्बन्ध में आंकड़ों द्वारा इन आक्षेपों
का खोखलापन सिद्ध किया हुआ है।
परन्तु मैं समझता हूँ कि श्रद्धा के
विषय में आर्थिकता का मापदण्ड लगाना अनुचित है। उदाहरण के लिए अपने राज्य का ध्वज
है, कोई उसे उतारकर तोड़-फोड़
दे तो कौन सी बड़ी हानि होगी? एक डंडा, कुछ थोड़ा सा कपड़ा, इतना ही आर्थिक दृष्टि से उसका स्वरूप है। परन्तु यदि कोई
आक्रमणकारी इस अपने राज्य ध्वज को अपमानित करने के लिए दल बल सहित सजकर आता है तो
आर्थिक दृष्टि से अत्यल्प मूल्य के उस वस्त्र के निमित्त अपना अपरिमित धन, असंख्य लोगों के प्राण आदि उस पर न्यौछावर कर
उसकी मानमर्यादा सुरक्षित करना, यही अपना कर्तव्य होता
है। राष्ट्र को एकत्रित कर उसमें चैतन्य फूंकने वाला वह मान बिन्दु, कितना भी धन-जन का मूल्य क्यों न देना पड़े,
सर्वथा रक्षणीय है।"
।। श्री गुरूजी
व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा,
पृष्ठ – 75 ।।