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इतिहास

जानिए - "ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी" तुलसी दास जी द्वारा रचित इस पंक्ति का अर्थ

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प्रेम में व्याकुल रामबोला कड़ी मेहनत कर जब पत्नी से मिलने पहुंचे तो उनकी पत्नी ने उन्हें प्रेम और भक्ति का वो मार्ग दिखाया जिसे अपनाने के बाद रामबोला गोस्वामी तुलसीदास बन गए।


पत्नी की बातों का मान रखने वाले इन्ही गोस्वामी तुलसीदास जी पर नारी और शूद्रों के अपमान का ठप्पा बार-बार लगाया जाता है।जिनकी काव्य शैली और लोकमानस से जुड़ाव पूरी दुनिया में लोकप्रिय है, उन्हीं की लेखनी से लिखीं एक चौपाई आएदिन जोरदार बहस पकड़ लेती है।


 ‘ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी ये वही चौपाई है जिसके अर्थ का अनर्थ कर कुछ लोग सनातन राष्ट्र और राजनीति से लेकर आध्यात्मिक चेतना पर भी कुठाराघात करने से नहीं चूकते।


परन्तु क्या आपने कभी सोचा है?

श्रीरामचरितमानस के पांचवें कांड सुंदरकांड जिसमें राम भक्त हनुमान जी माता सीता का पता लगाने श्रीलंका पहुंचते हैं तुलसीदास जी ने मां सीता के उत्तम चरित्र का वर्णन किया हैं,जिसमें रावण की पत्नी मंदोदरी की विवेकशीलता का अत्यन्त मार्मिक और गरिमापूर्ण चित्रण है।उसी काव्य पाठ में गोस्वामी जी भला माता स्वरूप नारी का अपमान क्यों करने लगेउन्होंने नारी को श्रद्धा, भक्ति और त्याग का प्रतीक माना है


गोस्वामी जी ने माता सीता के माध्यम से पतिव्रता धर्म, अनसूया के माध्यम से स्त्री-शिक्षा और तारा के माध्यम से विवेकशीलता का परिचय दिया है। उनके ग्रंथों में पुरुष से पहले स्त्री के नाम को स्थान दिया गया है, ‘राम-सीता’ नहीं, बल्कि ‘सीताराम’ अथवा ‘सियाराम’ का उल्लेख किया गया है।उन्होंने अपनी रचनाओं तक नारी सम्मान नहीं रखा, बल्कि उनके साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए? ये भी समझाने की कोशिश की।


‘बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाईं’।।

ये चौपाई राजा दशरथ और उनकी रानियों के बीच संवाद है। जिसमें राजा दशरथ कह रहे हैं- पुत्रवधुएं पराये घर से आयी हैं। उनका इस तरह से ध्यान रखना, जैसे नेत्रों की पलकें रखती हैं। बहुओं के प्रति यदि यही भाव प्रत्येक सास-ससुर रखें, उन्हें अपनी बेटी के समान स्नेह एवं प्रेम दें तो पारिवारिक जीवन कितना सुखद हो जाएगा।


नारी सम्मान के अतिरिक्त उनकी रचनाओं में समरसता का प्रवाह भी देखने को मिलता है। शबरी एक भील जाति की वृद्धा हैं, जो स्वयं को बार-बार ‘अधम’ अर्थात् सामाजिक दृष्टि से निम्न कहती हैं। परन्तु भगवान राम उनके द्वारा प्रेमपूर्वक अर्पित किए गए कंद, मूल और फल अत्यंत आत्मीयता से ग्रहण करते हैं।


जब गोस्वामी तुलसीदास जी ऐसी सुंदर रचना लिख रहे थे, तब विदेशी आक्रमणकारी भारतवर्ष को तहस-नहस करने में जुटे थे। मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा था, गुरुकुलों को समाप्त किया जा रहा था और भारतीय ज्ञान-परम्परा को नष्ट करने की कुटिल चाल चली जा रही थी। ऐसे में उन्होंने न केवल सनातन परम्परा के शाश्वत मूल्यों की रक्षा की... बल्कि समाज को जोड़ने के लिए रामराज्य की कल्पना भी की। परन्तु क्या ऐसी कल्पना करने वाले तुलसीदास जी एक चौपाई से अपने पूरे चिंतन को नष्ट करने का प्रयास करेंगे?


बिल्कुल नहीं, क्योंकि जिस चौपाई पर बहस होती है.. उसमें ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी के लिए एक शब्द का प्रयोग हुआ है, ताड़ना जिसका अर्थ सभी अपनी बुद्धि अनुसार लगाते हैं।तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में पूरी कृति को लिखा है ऐसे में ताड़ना का अर्थ देखभाल, अनुशासन, शिक्षण और संरक्षण से है।


अर्थात ढोल को कसने, गंवार और शुद्र को शिक्षित और मार्गदर्शन जबकि पशु को उचित देखभाल और नियंत्रित करने की आवश्यकता है। वहीं नारी को शिक्षा और सम्मान का अधिकारी बताया है। उनकी इस चौपाई में सबका साथ सबका विकास का भाव है। ऐसे प्रखर आध्यात्मिक चिंतक और समरसतामूलक समाजद्रष्टा गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन