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मेरठ का MBA फूल वाला

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मेरठ, उत्तर प्रदेश 

एक नौजवान, जिसने MBA किया हो, जिसके पास शहर में नौकरी हो, महीने के बंधी बंधाई सैलरी हो, लेकिन फिर भी दिल खाली-खाली लगे। यही हाल था मेरठ के शेखर चौहान का। कॉरपोरेट की चकाचौंध में रहते हुए भी उन्हें अपने गाँव की मिट्टी की खुशबू याद आती थी और तभी उन्होंने ऐसा फैसला लिया जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी। 2017 में नौकरी छोड़कर शेखर अपने गाँव मदारपुरा लौटे और खेती को नया आयाम देने का संकल्प लिया। उन्होंने सबसे पहले 2000 वर्ग मीटर का पॉलीहाउस बनाया और गुलाब की खेती शुरू की। फिर उन्होंने दूसरा पॉलीहाउस तैयार किया और उसमें जरबेरा फूल लगाए।

शेखर चौहान के पॉली हाउस में लगे सफेद जरबेरा के फूल.

आज नतीजा सामने है, शेखर के पास दो आधुनिक पॉलीहाउस हैं। अब आप सोच रहे होंगे पॉलीहाउस क्या है? तो आपको बता दें की यह पॉलीहाउस एक पारदर्शी ढांचा है, जिसमें पौधों को मौसम के असर से बचाकर उगाया जाता है। अंदर का तापमान, नमी और रो शनी पूरी तरह नियंत्रित रहती है। स्प्रिंकलर और ड्रिप इरिगेशन से पानी और खाद सीधे पौधे की जड़ तक पहुँचता है और कीट या रोग से फसल सुरक्षित रहती है। यानी धूप बहुत तेज हो या बरसात ज्यादा, पौधों की सुरक्षा पूरी रहती है और सालभर फूल या सब्जियां उगाई जा सकती हैं। सबसे अच्छी बात यह है की पॉलीहाउस खेती बड़े निवेश की चीज नहीं है। सिर्फ 250–300 वर्ग मीटर का छोटा पॉलीहाउस बनाकर शुरुआत की जा सकती है। इसकी कुल लागत लगभग 2–3 लाख रुपये आती है, लेकिन सरकार की 50–70% सब्सिडी मिलने पर किसान को केवल 60–80 हजार रुपये ही खर्च करने पड़ते हैं। इतना छोटा पॉलीहाउस भी सालाना 1–1.5 लाख रुपये तक कमाई दिला सकता है। धीरे-धीरे मुनाफा बढ़ाकर पॉलीहाउस का आकार बड़ा किया जा सकता है।  शेखर गाँव के 6 युवाओं को पक्का रोजगार दे रहें है साथ ही दर्जनों महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं।

शेखर चौहान के पॉली हाउस में लगे लाल जरबेरा के फूल.

हर महीने खर्च घटाने के बाद भी 1 लाख रुपये से ज्यादा आमदनी यानी सालाना करीब 15 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं। खास बात यह है कि यह मॉडल सिर्फ शेखर का नहीं, बल्कि हर आम आदमी अपना सकता है। थोड़ी जमीन, सरकारी सब्सिडी की मदद और सही पौधों का चुनाव करके कोई भी किसान या नौजवान इस काम को शुरू कर सकता है। गन्ना या गेहूँ की खेती जहाँ सालभर में मुश्किल से 40-50 हजार देती है, वहीं फूलों की खेती लाखों की आमदनी करा सकती है। शेखर की तरह मार्केट से सीधे जुड़कर, शहरों में शादियों और वैलेंटाइन जैसी डिमांड का फायदा उठाकर हर कोई अपने गाँव में रहकर आत्मनिर्भर बन सकता है। शेखर मुस्कुराकर कहते हैं 'नौकरी में तनख्वाह थी, लेकिन सुकून नहीं। मिट्टी से जुड़ा तो जिंदगी महक उठी।' उनकी यह कहानी हर उस आम आदमी को राह दिखाती है, जो शहर की भागदौड़ से थककर गाँव की मिट्टी में नया भविष्य खोजना चाहता है। 

शेखर चौहान के पॉली हाउस के अलग-अलग रंग के फूल.