मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
जब से मनुष्य ने पैदावार बढाने की चाहत में रासायनिक उर्वरकों का उपयोगकरना शुरू किया है तब से ही मिट्टी की गुणवत्ता तेजी से प्रभावित हुई है और रासायनिक उर्वरकों का दुष्प्रभाव मानव जीवन पर दिखने लगा है। किन्तु अब लोगों के साथ ही किसान भी जागरूक हो रहे हैं तथा ऑर्गनिक खेती को बढ़ावा मिलने लगा है। अब छोटे किसान भी खेती की परम्परागत तरीके को अपना रहे हैं। इसका एक उदाहरण है मैनपुरी के विकासखंड जागीर की ग्राम पंचायत मंछना के गांव नगला केल निवासी किसान मेघ सिंह चार साल पहले उन्होंने रासायनिक खेती को छोड़कर अपनी साढ़े तीन बीघा भूमि पर देशी गाय के पंचगव्य, गुड, नारियल पानी और पके केले से जैविक खाद तैयार कर इसका उपयोग शुरू किया। पहले साल पैदावार थोड़ी कम हुई केवल ढाई कुंतल ही मिली, लेकिन जैसे-जैसे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ी पैदावार चार कुंतल से ऊपर पहुंच गई। जहाँ रासायनिक खाद से उपजा गेहूं जहां 2000 से 2500 रुपये में बिकता है वहीं प्राकृतिक खेती वाला गेहूं तीन हजार से 3500 रुपये तक बिक जाता है। जहाँ रासायनिक खेती में एक बीघा पर 12000 रूपये खर्चा आता था वहीं अब प्राकृतिक पद्धति से उत्पादन लागत 8000 रूपये हो गयी। जिससे उनका लाभ भी बढ़ गया। मेघ सिंह ने देशी खाद बनाने की यह तकनीक मैनपुरी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र और कानपुर के चंद्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय से सीखी है। आज वे अपने क्षेत्र के दूसरे किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।



