नागपुर
महात्मा गांधी विद्यालय, जरीपटका, नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सदर भाग ने संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में “प्रमुख जन संगोष्ठी” का आयोजन किया। कार्यक्रम का मुख्य विषय “अपनी राष्ट्रीयता” तथा “पंच परिवर्तन से पुनरुत्थान” रहा और मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश (भय्याजी) जोशी उपस्थित रहे। मंच पर विदर्भ प्रांत सह संघचालक श्रीधर राव जी गाडगे, सदर भाग संघचालक अनिल जी भारद्वाज तथा सदर भाग सह संघचालक अतुल जी पिंगले मंचस्थ रहे।
संगोष्ठी का आरंभ दीप प्रज्ज्वलन तथा भारत माता, डॉक्टर जी और श्री गुरुजी के छायाचित्रों पर पुष्प अर्पण से हुआ। संघ शताब्दी वर्ष में समाज के विविध वर्गों के प्रतिनिधियों के साथ चिंतन और संवाद के उद्देश्य से संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
भय्याजी जोशी ने कहा कि समाज एक प्रवाहमान नदी की तरह है और हिन्दू समाज उस नदी का शुद्ध प्रवाह है जो युगों‑युगों से इस भूमि को जीवन देता आया है। समय‑समय पर संतों और महात्माओं ने इसे सही दिशा दी है और वर्तमान में यह दायित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निभा रहा है। उन्होंने स्वीकार किया कि इतिहास में बाल विवाह, सती प्रथा जैसी अनेक कुप्रथाएँ हिन्दू समाज के सामने चुनौती बनकर आईं, किंतु समाज ने आत्मचिंतन और सुधार के माध्यम से उन्हें दूर करने का प्रयास किया।
भय्याजी जोशी ने ब्रिटिश शासन की नीति पर प्रकाश डाला और कहा कि अंग्रेजों ने केवल शस्त्रबल से नहीं, बल्कि भारतीय समाज के मस्तिष्क पर प्रहार कर बौद्धिक स्तर पर विभाजन की रचना की। आर्य बाहरी आक्रमणकारी थे, भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा, संप्रदाय ही धर्म है, राष्ट्र केवल राज्य का नाम है तथा नागरिक ही राष्ट्रीयता का आधार है – ऐसे अनेक कुतर्कों ने समाज को भ्रमित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि नवीन वैज्ञानिक शोध यह सिद्ध करते हैं कि आर्य इसी भूमि के मूल निवासी हैं और कश्मीर से कन्याकुमारी तक का भूभाग अखंड भारत का हिस्सा है।
उन्होंने राष्ट्र, राज्य और देश के भेद को भी सरल रूप में समझाया। उन्होंने कहा कि विभाजन से राष्ट्रीयता नहीं बदलती – पाकिस्तान और बांग्लादेश की भूमि और लोग मूलतः भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्र के ही अंग हैं। अन्य समाजों की भाँति हिन्दू समाज में भी विषमताएँ मौजूद हैं, परंतु इन्हीं असमानताओं को दूर करने का सतत प्रयास ही समाज को जीवंत बनाता है।
संगोष्ठी में उपस्थित चार्टर्ड अकाउंटेंट, न्याय क्षेत्र, विज्ञान, उद्योग‑व्यवसाय, बिल्डर, वास्तुकार, होटल व्यवसाय, दुकानदार संगठन, बैंकिंग, वैद्यकीय एवं औषधालय, सामाजिक संगठन, साहित्य व कला, क्रीड़ा, धार्मिक क्षेत्र, सरकारी अधिकारी, श्रमिक, सफाई कर्मी, नाई, फल‑सब्जी विक्रेता, शैक्षणिक क्षेत्र, जिम तथा योग से जुड़े कुल बाईस श्रेणियों के प्रमुख नागरिकों ने सहभागिता की। सभी ने अपने‑अपने क्षेत्र से जुड़े प्रश्न रखे और राष्ट्रीय जीवन के विविध पहलुओं पर भय्याजी जोशी से मार्गदर्शन प्राप्त किया।
प्रश्नों का उत्तर देते हुए भय्याजी जोशी ने स्पष्ट किया कि किसी भी समाज के उत्थान और पतन के लिए स्वयं समाज ही उत्तरदायी होता है और यदि समाज जागरूक हो तो कोई बाहरी शक्ति उसे कमजोर नहीं कर सकती। विश्व व्यवस्था के संतुलन और संचलन के लिए भारत का अस्तित्व अनिवार्य है, क्योंकि केवल भारत ही ऐसा राष्ट्र है जो समस्त मानवता को साथ लेकर चलने की जीवन दृष्टि रखता है। भारत के पास शस्त्र‑बल के साथ‑साथ शास्त्र‑बल भी है और इन्हीं दोनों के संतुलन से वह विश्व का नेतृत्व कर सकता है।
समाज को संचालित करने वाले केंद्र बिंदु शिक्षा, उद्योग, कला, धर्म और कर्तव्य‑बोध हैं, जिन्हें सुदृढ़ किए बिना किसी भी राष्ट्र की प्रगति संभव नहीं। उन्होंने आह्वान किया कि वे स्वयं को गर्व से हिन्दू कहें, चाहे उनकी जाति, पंथ या संप्रदाय कोई भी हो, क्योंकि हिन्दू शब्द इस भूभाग की सांस्कृतिक पहचान और समान मूल्यों का प्रतीक है। धर्म का अर्थ केवल पूजा‑पाठ नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों और मानवीय मूल्यों का पालन है; इसी मूल अर्थ को समझकर ही समाज में समरसता और अनुशासन स्थापित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य वास्तव में स्वावलंबी नहीं, बल्कि परस्परावलंबी है, इसलिए समाज के प्रत्येक घटक को साथ लेकर चलना होगा। अहं से “वयं” की ओर यात्रा कर, नारी सम्मान को सुनिश्चित कर और भ्रष्टाचार जैसे दुर्व्यसनों से दूर रहकर ही स्वस्थ समाज की रचना संभव है। पंच तत्वों और प्रकृति के संरक्षण को उन्होंने अत्यंत आवश्यक बताते हुए कहा कि हम उन्हीं पंच तत्वों से निर्मित हैं, अतः पर्यावरण‑रक्षा वास्तव में आत्म‑रक्षा का ही रूप है।
भय्याजी जोशी ने उपस्थित नागरिकों से आग्रह किया कि वे अपने-अपने क्षेत्र में नैतिकता, परिश्रम और राष्ट्रीय चेतना को व्यवहार में उतारने का संकल्प लें। केवल नीतियों और घोषणाओं से समाज नहीं बदलता, बल्कि व्यक्ति के आचरण में आया परिवर्तन ही राष्ट्रीय जीवन को नई दिशा देता है। प्रत्येक नागरिक यदि अपने परिवार, कार्यस्थल और समाज में सत्य, संवेदनशीलता और कर्तव्यनिष्ठा को अपनाए, तो भारत स्वयं‑स्फूर्त रूप से विश्व के लिए आदर्श बन सकता है।



