युद्ध की सच्चाई: श्री गुरुजी का कड़ा सच
संघ संस्मरण
भारत-चीन युद्ध के समय
श्री गुरुजी 'युद्ध एक दैवी विधान'
नामक लेख में लिखते हैं, “इसे दुर्भाग्य मानें या सौभाग्य पर वस्तुस्थिति
यह है कि इस जगत में जो बलवान है वह निर्बल पर आक्रमण किए बिना नहीं रहता। पंचशील
और सहअस्तित्व के हम चाहे जितने भी नारे लगाएं पर दुर्बल और बलवान के बीच
सह-अस्तित्व की रम्य कल्पना सत्य सृष्टि में आज तक तो परिणत नहीं की जा सकी। हमारे
पूर्वजों ने मनुष्य स्वभाव के दोष को ध्यान में रखते हुए कहा कि संसार में संघर्ष
अटल है। वे कल्पना जगत में विचरण करने वाले लोग नहीं थे। जीवन के कठोर तथ्यों का
विचार और अनुभव कर उन्होंने कहा कि 'जीवो जीवस्य जीवनम्' का न्याय अटल है। इसलिए
जो व्यक्ति या राष्ट्र स्वयं को जीवित रखना चाहता है उसे स्वयं बलवान बनकर खड़ा
रहना चाहिए जिससे कोई दूसरा उसे भक्ष्य बनाने का दुस्साहस न कर सके'
।। श्री गुरूजी
व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा,
पृष्ठ – 83 ।।