प्रयागराज ,यूपी
आज के समय में अक्सर सरकारी स्कूलों को केवल साधारण सुविधाओं और कम पढ़ाई के माहौल से जोड़ा जाता है, लेकिन कुछ स्कूल अपनी मेहनत, नई सोच और आधुनिक तकनीक से एक नई पहचान बना रहे हैं। यह स्कूल यह सिद्ध कर रहे हैं कि सही दिशा में किए गए प्रयासों से सरकारी विद्यालय भी प्राइवेट स्कूलों से बेहतर सुविधाएँ पेश कर सकते हैं। इसी बदलाव का उदाहरण है प्रयागराज का कंपोजिट स्कूल राजापुर। जी हां यहां शिक्षा का तरीका बिल्कुल नया है। यहां स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल टेक्स्टबुक्स और खेल-खेल में सीखने की पद्धति ने इस स्कूल को अहम बना दिया है। यहां के छात्र न केवल पढ़ाई में होशियार हैं, बल्कि अपनी रचनात्मकता और कला के दम पर भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान पा रहे हैं। बताते चलें कि इस स्कूल की कक्षाएं स्मार्ट और डिजिटल टेक्नोलॉजी से लैस हैं।
बच्चे खुद विषय से जुड़े क्यूआर कोड तक जेनरेट कर लेते हैं। वही सहायक अध्यापक और कक्षा प्रथम की इंचार्ज अनुरागिनी सिंह के मार्गदर्शन में बच्चों ने हरे पत्तों से मछली, चिड़िया और चूहे जैसी सुंदर आकृतियां बनाकर अपनी कला और कल्पनाशक्ति का अद्भुत प्रदर्शन किया है। बेसिक एजुकेशन डिपार्टमेंट ने इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर शेयर कर स्कूल के शिक्षकों की तारीफ भी की, जिसके बाद यह स्कूल चर्चा में आ गया। अनुरागिनी सिंह बताती हैं कि पत्तियों की मदद से बच्चों को चूहे, एयरोप्लेन, कुत्ता, बिल्ली, शेर और भालू जैसी आकृतियां बनाना सिखाया गया। इससे बच्चों में एकाग्रता, रंगों की समझ और रचनात्मक सोच का विकास होता है। इन गतिविधियों से बच्चे क्लासरूम में ज्यादा जुड़ते हैं और टेक्स्टबुक पढ़ने में भी उनकी रुचि बढ़ती है। इंचार्ज प्रधानाध्यापक अमानुल्लाह बताते हैं कि बच्चों को प्रेरित करने के लिए समय-समय पर पुरस्कार दिए जाते हैं। कभी नियमित स्कूल आने वाले बच्चों को सम्मानित किया जाता है, तो कभी प्रतियोगिताओं के विजेताओं को गिफ्ट्स और पाठ्य सामग्री दी जाती है। इस बार “स्टूडेंट ऑफ द ईयर” और “स्टूडेंट ऑफ द मंथ” की घोषणा की गई है। विजेताओं का स्वागत स्कूल में किसी सेलिब्रिटी की तरह किया जाएगा, ताकि अन्य बच्चे भी बेहतर करने के लिए प्रेरित हों। स्कूल में बच्चों को सेल्फ डिफेंस, जूडो-कराटे और विभिन्न हॉबी क्लासेस जैसे डांसिंग, पेंटिंग, क्राफ्ट और टॉय मेकिंग भी सिखाई जाती हैं। इन गतिविधियों से न केवल बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है, बल्कि उनका संपूर्ण विकास भी होता है। यह प्रयास समाज के लिए काफी प्रेरणादायक है, अगर हर सरकारी स्कूल में ऐसे प्रयास किए जाए तो अभिभावक अपने बच्चो को सरकारी स्कूल में भेजने में संकोच नहीं करेंगे और लोगो की सोच भी बदलेगी सरकारी स्कूलो को लेकर