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बनारस की महिलाएं आत्मनिर्भर बन गढ़ रहीं हैं सफलता की कहानी

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बनारस की गलियों में बनारसी साड़ियों की चमक के साथ महिलाओं की आत्मनिर्भरता की खुशबू भी बिखर रही है। उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बने प्रेरणा और आकांक्षा मार्ट इस बदलाव की सबसे बड़ी मिसाल हैं। यहाँ ग्रामीण महिलाएं अपने हाथों से बने प्रोडक्ट बेच रही हैं अचार से लेकर अगरबत्ती तक, गोबर पेंट से लेकर बनारसी सूट तक।

मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल बताते हैं कि सबसे पहले इंटेंसिव सोशल मोबिलाइजेशन के जरिए गाँव-गाँव जाकर पिछड़ी, आर्थिक रूप से कमजोर और काम की तलाश में बैठी महिलाओं को एकजुट किया गया। इन्हें स्वयं सहायता समूह से जोड़ा गया, फिर धीरे-धीरे 1.38 लाख महिलाएं इस मिशन का हिस्सा बन गईं। सरकार ने इन समूहों को रिवॉल्विंग फंड, आजीविका निधि और बैंक क्रेडिट लिंकेज से पूँजी दिलवाई।

मार्ट में मिल रहा सामान.

यही पैसा महिलाओं ने छोटे-छोटे कामों में लगाया और अपने उत्पाद बनाए। गाँव की चीजें सीधे बाजार तक पहुँचने लगीं। आज जिले में 32 प्रेरणा मार्ट और 1 आकांक्षा मार्ट चल रहा है। प्रेरणा मार्ट की औसत बिक्री 50000 रुपये प्रति माह है और आकांक्षा मार्ट की औसत बिक्री 1.5 लाख रुपये प्रति माह। इन मार्ट्स में पूजा सामग्री, अचार, मुरब्बा, हर्बल साबुन, वर्मी कम्पोस्ट, जूट बैग, बनारसी साड़ियाँ तक बिकती हैं।

खास बात ये है कि मार्ट की संचालक भी स्थानीय महिलाएं ही हैं। यानी उत्पाद से लेकर प्रबंधन तक सबकुछ नारी शक्ति के हाथों में। इस मॉडल से हर गाँव, कस्बा और शहर के लोग ये सीख सकते हैं कि छोटे-छोटे समूह बनाइए 10-12 लोग मिलकर पूंजी इकट्ठा करें। लोकल प्रोडक्ट पर फोकस कीजिए जैसे गाँव की दाल, अचार, हस्तशिल्प, साड़ियाँ या कोई सेवा। मार्केटिंग का नया तरीका अपनाइए।  ब्रांडिंग, पैकेजिंग और ऑनलाइन बिक्री से आमदनी कई गुना बढ़ सकती है। सरकारी योजनाओं का लाभ लीजिए। आजीविका मिशन या स्थानीय योजनाओं से पूंजी और प्रशिक्षण आसानी से मिल सकता है।