राष्ट्र के प्रति
समर्पण का स्वयम करें आकलन - श्री गुरुजी
राष्ट्र को तेजस्वी, वैभवशाली, शक्तिसंपन्न बनाने के लिए समष्टि में रहनेवाले व्यक्ति को मानवता का परिपूर्ण विकास करने में सक्षम होना चाहिए । आग्रहशून्य, परस्पर स्नेहमय व्यवहार निर्माण होना चाहिए। यह आवश्यकता प्रतीत होनी चाहिए। इस बारे में हमने क्या प्रगति की है, कितनी सफलता प्राप्त की है-इसका अपने ही अंतःकरण में निर्णय करें।
श्री गुरूजी
समग्र, खंड-2, प्रथम संस्करण, सुरुचि प्रकाशन, पृष्ठ 34-35




