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इतिहास

त्याग की प्रतिमूर्ति~स्वामी लक्ष्मणानन्द, वनवासियों के मार्गदर्शक

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हत्यारों की बन्दूकें आग उगलती हैं और ८४ वर्ष के एक वृद्ध सन्यासी की जान ले ली जाती है! उड़ीसा (Orissa) के जलेशपटा (Jalespata) कन्याश्रम में पढ़ रही जनजाति वर्ग की बालिकाओं की आंखों के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। जिनके त्याग (sacrifies) और साधना के कारण उनके जैसी जनजाति वर्ग की बालिकाओं को पढ़ने का मौका मिला है, उन पितामह समान स्वामी जी को भला कोई क्यों मारेगा? क्या अपराध था इस वृद्ध सन्यासी का?
ये सन्यासी थे समाजसेवी, गरीबों, पिछड़ों और वनवासियों के संरक्षक, मार्गदर्शक पूज्य स्वामी लक्ष्मणानन्द जी महाराज (Swami Lakshamanand)

वनवासियों के विकास का उठाया बीड़ा
स्वामी लक्ष्मणानंद (Swami Lakshamanand) ने ‘नर सेवा, नारायण सेवा’ को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।स्वामी लक्ष्मणानन्द (Swami Lakshamanand)
45 वर्ष वनवासियों (Tribal) के बीच चिकित्सालय (Hospitals), विद्यालय (Scools), छात्रावास (Hostels), कन्याश्रम आदि प्रकल्पों के माध्यम से सेवा कार्य कर रहे थे। युगदृष्टा स्वामी जी ने समाज के समग्र विकास का चिन्तन किया और कंधमाल (Kandhmal) जैसे सर्वाधिक पिछड़े वनवासी क्षेत्र (Tribal area) में अपनी इस कल्पना को मूर्त रूप दिया।
कंधमाल जिले के जलेशपटा (Jalespata) में स्वामी जी ने बालिकाओं के लिए शंकराचार्य कन्याश्रम नामक एक आवासीय विद्यालय खोला। इस कन्याश्रम में वनवासी, गरीब व पिछड़े समाज की बालिकाओं (Girls) को शिक्षा (Education) दी जाती है। इन बालिकाओं के लिये आश्रम में निशुल्क आवास व भोजन की व्यवस्था भी की जाती है।
स्वामी जी ने शिक्षार्थियों को न मात्र दर्शन अपितु उन्नत खेती, पशुपालन तथा बागवानी की भी शिक्षा दी। प्रौढ़ शिक्षा (Adult education) तथा रात्रिकालीन विद्यालय आरम्भ किया। उनके इस कार्य से वनवासीयों के शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ। जीवनपर्यन्त वे गौ हत्या का विरोध करते रहे।


वनवासियों को मूल से जोड़ा
क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों (Christians) द्वारा किये जा रहे मतांतरण (conversion) से निपटने के लिए उन्होंने नियमित यज्ञ व धर्मसभा, परावर्तन, शुद्धि यज्ञ कार्यक्रम, संकीर्तन मंडलियों का गठन आदि कार्यक्रम प्रारम्भ किये और मतांतरित हुए लोगों को मुख्य धारा में जोड़ा।


मिशनरियों को दी चुनौती
स्वामी जी (Swami Lakshamanand) ने वनवासियों में हिन्दुत्व की अलख जगाई। एक हजार से भी अधिक गाँवों में श्रीमद्भागवत गीता की स्थापना की। 1986 में उन्होंने इस क्षेत्र में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली, जो धर्म व संस्कृति जागरण के लिए युगान्तकारी रही। इस रथ यात्रा के दौरान हजारों लोग हिन्दू धर्म में लौट आये।

इस प्रकार ईसाई मिशनरियों के 50 साल (50 years) के षड्यन्त्र को स्वामी जी (Swami Lakshamanand) ने नष्ट कर दिया। अब उनके लिए वनवासियों को उनकी जड़ों से काटना मुश्किल था। स्वामी जी इसाई मिशनरियों की आँखों की किरकिरी बनते जा रहे थे और इसी के चलते स्वामी जी पर नौ बार हमले किए गए, उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश की गई। 23 अगस्त, 2008 को जन्माष्टमी पर्व पर रात में लगभग 30-40 क्रूर चर्चवादियों ने नकाब पहनकर जलेशपट्टा कन्याश्रम में हमला बोल दिया और देवतातुल्य स्वामी लक्ष्मणानन्द (Swami Lakshamanand) को गोली मारी। कुल्हाड़ी से उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। स्वामी जी (Swami Lakshamanand) की निर्मम ह्त्या कर दी गई, परन्तु स्वामी जी की वर्षों की तपस्या और बलिदान व्यर्थ नहीं गया। स्वामी जी के शिष्यों तथा अनेक सन्तों ने हिम्मत न हारते हुए सम्पूर्ण उड़ीसा में हिन्दुत्व के ज्वर को और तीव्र करने का संकल्प लिया|