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इतिहास

“विजयति~सः~पुरुषोत्तमः”~अर्थात~जो~जीता~वह~पुरुषोत्तम, वामपन्थी चाटुकारों ने इतिहास के साथ लोकोक्तियों को भी कलुषित किया

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लोकोक्ति है कि लोकोक्तियाँ असत्य नहीं होती। परन्तु भारत (Bharat) में भारतीयता के विरोधी कतिपय इतिहासकारों (Historian) ने एक सत्य लोकोक्ति को ही पलट दिया। वर्तमान पाकिस्तान (Pakistan) में झेलम (Jhelum) और सिन्धु (Sindhu) दो महान नदियों के बीच एक छोटा राज्य था, पुरुवास। यहीं के प्रतापी राजा थे वीरवर पुरुषोत्तम। इन्हें महावीर राजा पुरु (Puru) और पोरस (Poras) नाम से भी उल्लिखित किया गया है । इनके राज्य पर यूनान (Greece) के क्रूर और धोखेबाज सिकन्दर (Alexander) ने आक्रमण किया था। राजा पुरुषोत्तम इस युद्ध में जीते थे। सिकन्दर को उसके अंगरक्षक (bodyguard) घायल अवस्था में लेकर भाग खड़े हुए थे। इसी युद्ध की घातक चोटों से इराक पहुँचकर सिकन्दर के प्राण पखेरू हो गए। तब लोकोक्ति बनी थी “विजयति, सः पुरुषोत्तम” अर्थात जो जीता वह पुरुषोत्तम, जिसे भारत के कुछ इतिहासकारों ने पलट दिया - जो जीता वह सिकन्दर। परन्तु यह प्रमाणित तथ्य है कि एलेक्जेंडर भारत में बुरी तरह मात खाकर अन्ततः घावों से अधिक ग्लानि से मर गया था । राजा पुरुषोत्तम तो इस युद्ध के बाद तक सिंहासन पर आरूढ़ रहे । पोरस का कार्यकाल ईसा पूर्व ३४० में प्रारम्भ हुआ था। तब वह १६ वर्ष के थे। उन्होंने ३५ वर्ष शासन किया । ईसा पूर्व ३१५ में उन्होंने ४१ वर्ष की आयु में सत्ता छोड़ दी थी। उन्होंने ३० वर्ष की अवस्था में सिकन्दर का सामना किया था। सिकन्दर का कार्यकाल ईसा पूर्व ३३६ से ईसा से ३२३ तक रहा। वह अपने भाइयों और निकट सम्बन्धियों को मार कर मेसेडोनिया (Macedonia) वर्तमान इटली (Italy) के अन्तरगत एक राज्य का राजा बना था। उसका लक्ष्य विश्व विजेता बनने का था पर भारत आना उसके लिए जानलेवा सिद्ध हुआ। भारत की सीमा में घुसने से पहले सिकन्दर ने पारसी साम्राज्य (Zoroastrian Empire) पर विजय पायी थी। यह साम्राज्य वर्तमान ईरान (Iran) में था जिसे पारसी या फारसी साम्राज्य कहा जाता था। भारत के कथित इतिहासकारों और फिल्मों, धारावाहिकों के निर्माताओं ने उन तथ्यों को ही सत्य मान लिया जो यूनान के इतिहासकारों ने लिख दिया। यूनानियों ने तो अपने राजा एलेक्जेंडर यानि सिकन्दर को महान बताने के लिए उसे हारा हुआ नहीं बताया। सिकन्दर के मरने के बाद यूरोपीय इतिहासकारों ने झूठ के आधार पर उसकी गाथा लिखी जबकि ईरान के प्रसिद्ध इतिहासकारों ने ईरानी शाहनामा (Shahnameh) में खुलकर यह स्वीकारा है कि क्रूरतम यूनानी आक्रान्ता एलेक्जेंडर ने ईरान यानि पहले के पारस के सौम्य पारसी राजा (Persian king) से साथ सन्धि करके घात किया था। उसने जो युद्ध जीत लिया वह घात किये बिना सम्भव नहीं होता। भारत के इतिहासकार भला सत्य को क्यों स्वीकारते। इन्होंने तो वही कहा जो एलेक्जेंडर के पक्षधर कह रहे थे