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इतिहास

२२~वर्ष~की~प्रतीक्षा~और~जलियांवाला~का~प्रतिशोध~ अमर बलिदानी उधम सिंह की कहानी

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रक्त-रञ्जित स्मृति
13 अप्रैल 1919, बैसाखी का दिन, अमृतसर (Amritsar) का जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) का मैदान। वह मैदान जो चारों ओर से दीवार से घिरा हुआ था और अन्दर थी लगभग 20,000 लोगों की भीड़। निकलने के लिए मात्र एक द्वार। ईसाई शासक के अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल हेनरी डायर (Hennery Dyer) ने निकलने का रास्ता बन्द कर दिया और निहत्थे भारतीयों पर अन्धाधुन्ध गोलियां चलवा दीं। उस सभा में उपस्थित था अनाथालय से आया एक 19 वर्ष का लड़का जो सभा में लोगों को पानी पिला रहा था। इस लड़के ने यह नरसंहार अपनी आँखों से देखा। निर्ममता से मरते लोगों को देखकर लड़के ने नरसंहार का प्रतिशोध लेने का संकल्प ले लिया। यह लड़का था – क्रान्तिवीर उधम सिंह कम्बोज (Udham Singh)।


प्रतिशोध की ज्वाला
उधम सिंह का जन्म २६ दिसम्बर १८९९ को पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ। कम उम्र में ही माता-पिता का साया उठ जाने के कारण उन्हें अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधम सिंह १३ अप्रैल १९१९ को हुए जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड (Jallianwala Bagh Massacre) के प्रत्यक्षदर्शी थे। उन्होंने उसी समय इस नृशंस हत्याकाण्ड का बदला लेनी की प्रतिज्ञा ली। उधम सिंह इस घटना के बाद क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे और स्वतन्त्रता के इस संघर्ष में वह 'गदर' पार्टी से जुड़े। १९२७ में उधम सिंह को गदर पार्टी के मौलिक प्रकाशन, “गदर द गूञ्ज” को चलाने के लिए कर लिया गया। लाहौर जेल (Lahore Jail) में उनकी भेण्ट भगत सिंह (BHAGAT SINGH) से हुई। जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपना नाम परिवर्तित किया और विदेश चले गए।


दो दशक की प्रतीक्षा
उनके मन में जलियाँवाला नरसंहार का बदला लेने की ज्वाला २१ वर्षों तक सुलगती रही और अंततः १३ मार्च १९४० का वह दिन आ ही गया। लन्दन के काक्सटन हॉल (Caxton Hall) में एक बैठक चल रही थी जिसमें लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर वक्ता था, वही ओ डायर जिसकी जलियांवाला काण्ड में हेनरी डायर के साथ संलिप्तता थी। उधम सिंह उस बैठक में एक पुस्तक लेकर पहुंचे, जिसके पन्नों को काटकर उन्होंने रिवॉल्वर छिपा रखी थी। बैठक समाप्त होने के बाद अवसर मिलते ही उधम सिंह ने रिवॉल्वर से डायर के सीने में दो गोलियां उतार दी। डायर की घटनास्थल पर ही प्राण पखेरू हो गई। गोली चलाने के बाद भी उन्होंने भागने का प्रयास नहीं किया और अरेस्ट कर लिए गए। ब्रिटेन में ही उन पर वाद चला और ४ जून १९४० को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया। ३१ जुलाई १९४० को उन्हें पेंटनविले जेल (Pentonville Prison) में फांसी दे दी गई। उधम सिंह (UDHAM SINGH) के अन्तिम शब्द थे, ‘’अपनी मातृभूमि के लिए मरने से अधिक बड़ा सम्मान क्या हो सकता है? मुझे मृत्युदण्ड की चिन्ता नहीं। मैं मरने की चिन्ता नहीं करता। मैं इसे लेकर बिल्कुल भी चिन्तित नहीं हूँ। मैं एक उद्देश्य के लिए मर रहा हूं।“