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इतिहास

सन्त नामदेव, गुरु नानक से पहले जिन्होंने बताई निर्गुण उपासना

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सन्त नामदेव (Saint Namdev) का जीवन परिचय
महाराष्ट्र (Maharashtra) के 5 प्रमुख सन्तों में जिनका नाम शामिल है, पण्ढरपुर के विट्ठल मन्दिर (Vithal Mandir) के प्रवेश द्वार की प्रथम सीढ़ी जिनके नाम से जानी जाती है। ऐसे महान सन्त का नाम है- सन्त नामदेव (Sant Namdev)। उनका जन्म कार्तिक शुक्ल एकादशी को विक्रम सम्वत 1327 में महाराष्ट्र के परभनी जिले के नरसी बामनी स्थान पर हुआ था। वैसे तो सन्त नामदेव के गुरु बिसोवा खेचर थे। परन्तु उन्हें ज्ञान की अनुभूति सन्त ज्ञानेश्वर जी से प्राप्त हुई।



पंजाब बनी कर्मभूमि
नामदेव जी (Sant Namdev) जब 20 वर्ष के थे तब उनकी भेंट सन्त ज्ञानेश्वर (Sant Gyaneshwar) से हुई थी। सन्त ज्ञानेश्वर जी स्वयं उनसे मिलने पण्ढरपुर गए थे। सन्त ज्ञानेश्वर (Sant Gyaneshwar) के कहने पर ही वे गुरु विसोबा खेचर (Guru Visoba khechar) से मिले और उन्हें अपना गुरु माना। गुरु विसोबा (Guru Visoba Khechar) बेसुध रहते। नामदेव जी से गुरु विसोबा ने कहा- ‘विश्व को भगवन्नाम से भर दो’। तब से ही सन्त नामदेव देशभर में भागवत धर्म का प्रचार करने लगे। सन्त नामदेव ने सबसे अधिक समय पंजाब (Punjab) में व्यतीत किया। वह सदैव भक्तिभाव में लीन रहते। करतार और मधुर स्वर में अभंग गाते फिरते। सन्त नामदेव पंजाब में लगभग 20 वर्षों तक रहे और यहीं इन्होंने देह त्यागी। पंजाब के घुमाण नाम के स्थान पर बाबा नामदेव (Baba Namdev) के नाम पर आज भी गुरुद्वारा है। इनके शिष्यों को नामदेवियां कहा जाता है।



गुरुग्रन्थ साहिब में सन्त नामदेव
सन्त नामदेव गुरुनानक देव से 200 वर्ष पूर्व ही निर्गुण उपासना का सूत्र विश्व को दे चुके थे।
वे कहते- सर्वभूतों में हरि यही एक सत्य। सर्व नारायण देखते हरि॥
अर्थात् 'सभी जीवों में ईश्वर ही सत्य है। प्रभु सभी को देख रहे हैं।'

श्री गुरुग्रन्थ साहिब में भी सन्त नामदेव के 60 शबद यानि भजन शामिल किए गये
हैं। एक उदाहरण देते हुए वे समझाते हैं:
एकल माटी कुंजर चींटी भाजन हैं बहु नाना रे॥
असथावर जंगम कीट पतंगम घटि-घटि रामु समाना रे॥
एकल चिन्ता राखु अनंता अउर तजह सभ आसा रे॥
प्रणवै नामा भए निहकामा को ठाकुरु को दासा रे॥ (श्रीगुरु ग्रन्थसाहिब, पृ. 988)

वे कहते हैं कि 'हाथी और चींटी दोनों एक ही मिट्टी के वैसे ही बने हैं जैसे एक ही मिट्टी के बर्तन अनेक प्रकार के होते हैं। एक स्थान पर स्थित पेड़ों में, दो पैरों पर चलने वालों में तथा कीड़े-पतंगों के घट-घट में वह प्रभु ही समाया है। उस एक अनन्त प्रभु पर ही आशा लगाए रखो तथा अन्य सभी आशाओं का त्याग कर दो ।
सन्त नामदेव विनती करते हुए कहते हैं कि ‘हे प्रभु ! अब मैं निष्काम हो गया हूँ इसलिए अब मेरे लिए न तो कोई मालिक है और न कोई दास है।'
सन्त नामदेव जी की वाणी में सरलता है जो ह्रदय को बांधे रखती है। उनके भक्ति भरे भावों एवं विचारों का प्रभाव पंजाब के लोगों पर आज भी है। वहीं उन्हें निर्गुण भक्ति काव्य का आदिकवि भी माना जाता है।