बागपत, जो महाभारत काल के उन पांच प्रमुख गाँवों में से एक है जिसे पांडवों को देने से दुर्योधन ने मना कर दिया था। तब इसका नाम बाघप्रस्थ था। इसी बागपत ने इतिहास के पन्नो एक बार फिर खोल दिया है, ऐसा हम इसलिए कह रहें हैं क्योंकि बागपत के तिलवाड़ा गाँव के लोगों को धरती में दबे हुए कुछ पुरातात्विक अवशेष मिल रहे हैं जिसे ग्रामवासियों ने ASI को सौंपा और इसी के साथ प्रारम्भ हुई इतिहास की परतें खुलने की रोमांचक यात्रा की...
हाल ही में तिलवाड़ा गाँव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने उत्खनन किया जिसने देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह कोई आम खुदाई नहीं थी… यहाँ 4000 वर्ष पुरानी सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।
ये अवशेष ताम्रपाषाण काल के हैं वो युग, जब मनुष्य तांबे के औजार और मिट्टी के बर्तन बनाना सीख चुका था। खुदाई में मिट्टी और तांबे के बर्तन, माला के मनके, नक्काशीदार वस्तुएं और एक ताबूत जैसी आकृति मिली है।
आपको बता दें यह गाँव पास ही के सिनौली से जुड़ा हुआ है जहाँ 2005 में रथ, मुकुट और हथियारों की ऐतिहासिक खोज हुई थी। कहना गलत नहीं होगा सिनौली की तरह, तिलवाड़ा में भी यह खोज भारत के प्राचीन इतिहास, उस समय की जीवनशैली और सांस्कृतिक परंपराओं पर नया प्रकाश डालेगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन अवशेषों को मेरठ ले जाया जा रहा है, जहाँ देश के नामी पुरातत्वशास्त्री इस पर गहन शोध करेंगे। यह खोज हमें उस समय की सभ्यता, संस्कृति और रीतियों को उजाले में लाकर भारत के उस इतिहास की पुष्टि करेगी जिन्हें अंग्रेजपरस्त इतिहासकारों ने झुठला दिया था।