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इतिहास

सेवा की प्रतिमूर्ति-शिव साधिका

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सेवा की प्रतिमूर्ति-शिव साधिका 

लेखिका - अनुपमा अग्रवाल 


सेवा की प्रतिमूर्ति और सनातन संस्कृति की रक्षक भारतीय वीरांगना अहिल्याबाई होलकर का इंदौर राज्य के संस्थापक महाराजा मल्हारराव होलकर के पुत्र खांडेराव के साथ 1737 को विवाह संपन्न हुआ। महाराजा मल्हारराव के जीवनकाल में ही उनके पुत्र खांडेराव का निधन हो गया अतः बाद में मल्हारराव की मृत्यु के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य के शासन का कार्यभार संभाला। सन 1767 से 1795 तक मालवा पर शासन करने वाली अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल को समावेशी और सामाजिक सद्भाव के अनुकरणीय काल के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपने शासनकाल में समाज के कल्याण के लिए अनेक सेवा कार्य किए, जिनमें धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में किए गए कार्य शामिल हैं। उनके द्वारा कराए गए सेवा कार्य उनकी परोपकारी भावना, धार्मिक आस्था और जनकल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। 

धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण और विकास: अहिल्याबाई होलकर धार्मिक स्थलों के प्रति गहरी आस्था रखती थीं अतः उन्होंने देश के विभिन्न तीर्थस्थलों पर मंदिरों का निर्माण कराने के साथ-साथ अनेक प्राचीन मंदिरों का जीर्णाेद्धार भी कराया। उनके द्वारा कराए गए निर्माण कार्य न केवल धार्मिक सेवा के रूप में जाने जाते हैं, बल्कि समाज को एकता और सांस्कृतिक जुड़ाव भी प्रदान करते हैं। वाराणसी में स्थित प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होलकर के प्रयासों से ही हुआ, जो आज भी उनकी सनातन धर्म में आस्था और भक्ति का प्रतीक है वहीं गुजरात में स्थित प्राचीन सोमनाथ मंदिर को भी अहिल्याबाई के सहयोग से फिर से बनाया गया। उन्होंने अपनी नवीन राजधानी महेश्वर में भी कई मंदिरों का निर्माण कराया और इसे एक प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया। अन्य तीर्थस्थल जैसे गया, हरिद्वार, प्रयाग, अयोध्या, उज्जैन, वृन्दावन, पुष्कर, द्वारका, जगन्नाथपुरी समेत लगभग सभी तीर्थस्थलों पर मंदिरों, धर्मशालाओं और नदी किनारे घाटों का निर्माण करवाया। इन निर्माण कार्यों से तीर्थयात्रियों को सुविधाएं मिलीं और धार्मिक स्थलों का संरक्षण भी हुआ।

धर्मशालाओं और विश्राम गृहों का निर्माण: पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए अहिल्याबाई ने विभिन्न स्थानों पर धर्मशालाओं और विश्रामगृहों का निर्माण करवाया। ये स्थल न केवल श्रद्धालुओं को आवास प्रदान करते थे, बल्कि समाज के असहाय, गरीब और जरूरतमंद लोगों को सुरक्षित आश्रय भी देते थे। धर्मशालाओं में भोजन, विश्राम और अन्य आवश्यक सुविधाओं की निःशुल्क व्यवस्था भी गई थीं, जिससे हर वर्ग के लोग लाभान्वित हो सकें।

 सार्वजनिक जलाशयों और कुओं का निर्माण: मालवा क्षेत्र में पानी की समस्या को ध्यान में रखते हुए अहिल्याबाई होलकर ने कई सार्वजनिक जलाशयों, तालाबों, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया। इससे कृषि में तो सुधार हुआ ही साथ ही पानी की उपलब्धता से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्र को लाभ हुआ। उनके जल संरक्षण और प्रबंधन के कार्यों ने न केवल तत्कालीन समय में बल्कि आज भी कई क्षेत्रों में लोगों को जल संकट से राहत दिलाई है।

शिक्षा और समाज सुधार: अहिल्याबाई होलकर ने अपने शासनकाल में शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए उन्होंने आक्रांताओं के आक्रमण से ध्वस्त हो चुके शिक्षण संस्थानों व मठों के निर्माण हेतु दिल खोलकर अनुदान दिया तथा विद्वानों के रहने और अध्यवसाय के लिए आश्रमों व गुरुकुलों का पुनर्निर्माण कराया ताकि शिक्षा का प्रसार-प्रचार सुचारू रूप से चलता रहे व समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता रहे। उन्होंने महिलाओं को भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया और महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कई कदम उठाए। राहगीरों, गरीबों, विकलांगों, साधु-संतों, पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं का भी रानी अहिल्याबाई पूरा ध्यान रखती थीं यहां तक कि अपने सैनिकों व कर्मचारियों को समय पर वेतन तथा शौर्यपूर्ण कार्य करने वाले स्वामिभक्त सैनिकों को पुरस्कृत भी करती थीं।

 स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं का प्रबंध:  प्रजा की स्वास्थ्य सेवाओं की ओर भी अहिल्याबाई ने पूरा ध्यान रखा। प्रजा के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को सुलभ बनाने हेतु उन्होंने नवीन चिकित्सालयों का निर्माण करवाया। उस समय चिकित्सा सेवाओं का विस्तार अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था बावजूद इसके अहिल्याबाई ने समाज के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखते हुए राज्य में वैद्यों की सुलभता और रोगियों के उपचार हेतु जरूरी आयुर्वेदिक दवाओं की उपलब्धता में भी अहम भूमिका निभाई।

अन्न वितरण और भंडारों का आयोजन: अकाल और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय अहिल्याबाई होलकर राज्य में अन्न वितरण और भंडारे का आयोजन करवाया करती थीं। उन्होंने अपने शासनकाल में सुनिश्चित किया कि उनके राज्य में कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे तथा भंडारों में सभी वर्गों के लोग समान रूप से भोजन ग्रहण करें। उन्होंने गरीबों के लिए अन्नसत्र खुलवाए जहां लोगों को प्रतिदिन भोजन मिलता था। यह कार्य उनकी समाज सेवा और मानवता के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। रानी अहिल्याबाई होलकर ने सेवा  कार्यों को संचालित करने के साथ राज्य में अनेक कल्याणकारी योजनाओं को चालू किया तथा राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया।

सड़क और आवागमन का विकास  अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में व्यापार और आवागमन को सुगम बनाने के लिए सड़कों का तो विधिवत निर्माण कराया ही साथ ही कई पुलों का भी निर्माण करवाया, ताकि लोग आसानी से यात्रा कर सकें और व्यापार में भी वृद्धि हो सके। इन सड़कों और पुलों ने न केवल उनके राज्य में बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में भी आवागमन को सरल बना दिया।

नारी उत्थान के कार्य: अहिल्याबाई ने समाज में नारियों के प्रति सहानुभूति और समानता का संदेश दिया। वे विधवाओं के पुनर्विवाह की समर्थक और नारी शिक्षा को बढ़ावा देने वाली थीं। उन्होंने समाज में विधवा महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए, उस वक्त के बनाये गए इस कानून में बदलाव किया कि अगर कोई महिला विधवा हो जाए और उसके कोई पुत्र न हो तो उसकी पूरी संपत्ति सरकारी खजाने या फिर राजकोष में जमा कर दी जाती थी लेकिन अहिल्याबाई ने इस कानून में परिवर्तन कर विधवा महिलाओं को अपने पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाया साथ ही उन्होंने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए भी भरसक प्रयास किए, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने नारी शक्ति का महत्व समझते हुए महिलाओं की एक सेना तैयार कर उन्हें हथियार चलाने, रण में चक्रव्यूह रचने का विधिवत प्रशिक्षण दिया।

कृषि सुधार और आर्थिक प्रगति के प्रयास: अहिल्याबाई ने कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई। उनके शासनकाल में किसानों की सहायता के लिए सिंचाई योजनाएं बनाई गईं और उन पर करों में छूट दी साथ ही किसानों का लगान कम किया। उन्होंने राज्य की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने के लिए व्यावसायिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहन दिया, जिससे लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठा।

अहिल्याबाई होलकर ने अपने शासनकाल के दौरान कभी भी सेवा, सौम्यता, सरलता और सादगी जैसी अपनी विशेषताओं का परित्याग नहीं किया बल्कि उन्होंने अपने समय में जो सेवा कार्य किए, वे आज भी प्रासंगिक और अनुकरणीय हैं। उन्होंने उस दौर में सत्ता संभाली थी जब किसी महिला के लिए शासन चलाने का सोच पाना भी मुश्किल था। उन्होंने समाज के हर वर्ग का ध्यान रखते हुए अपने जनकल्याण कार्यों से एक आदर्श शासक का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके द्वारा कराए गए निर्माण कार्य, समाज सुधार, धार्मिक स्थलों का विकास और जनसेवा के प्रयास भारतीय इतिहास में उनकी सेवा भावना को अमर बनाते हैं। अपने चारित्रिक गुणों और सेवाकार्यों के कारण वे लोकमाता कहलाईं। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने यह सिखाया कि एक शासक का कर्तव्य केवल शासन करना नहीं है, बल्कि समाज की सेवा और लोगों की भलाई करना भी है। उन्होंने विदेशी आक्रान्ताओं के कारण ढह रही भारतीय सनातन संस्कृति और सभ्यता को फिर से बचाने और सहेजने का सफल प्रयास किया। उनके कार्यों से प्रेरणा लेकर आज भी लोग सेवा और परोपकार का पथ अपनाते हैं।