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मूल्यों के बिना आदर्श समाज की कल्पना नहीं की जा सकती – सुरेश सोनी जी

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इंदौर। विश्व संवाद केंद्र के साहित्योत्सव नर्मदा साहित्य मंथन ‘अहिल्या पर्व’ का शुक्रवार को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय सभागृह में शुभारंभ हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी जी ने मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन कर आयोजन का श्रीगणेश किया। देश के जाने-माने चिंतकों, विचारकों और साहित्यकारों ने पहले दिन विभिन्न समसामयिक विषयों पर अपनी बात रखी।

सुरेश सोनी जी ने कहा कि समाज में मूल्य प्रणाली को स्थापित करने के लिये विमर्श गढ़ने और उसे प्रसारित करने की आवश्यकता है। हमारी सनातनी संस्कृति वैसे भी मूल्य आधारित ही रही है, लेकिन समय-समय पर नए विमर्श गढ़ने की जरूरत है। इस अवसर पर पद्म पुरस्कार के लिये चयनित निमाड़ के साहित्यकार जगदीश जोशीला का सम्मान भी किया गया।

तीन दिवसीय नर्मदा साहित्य मंथन के प्रथम दिवस का आरंभ मां नर्मदा के जलपूरित कलश की स्थापना एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। सुरेश सोनी जी ने ‘विचार खंडन-मंडन की भारतीय परंपरा’ विषय पर अपने विचार रखे। श्री सोनी ने कहा, राष्ट्र निर्माण में आचार, विचार और अनुभूति की आवश्यकता होती है। अनुभूति के माध्यम से विचार और विचार के माध्यम से आचार को पुष्ट करना होगा। शास्त्रार्थ करते हुए सभी विचारों पर चर्चा होनी चाहिए, जिसमें से राष्ट्रीय विचारों की पुष्टता होनी चाहिए। भारत महापुरूषों की धरती है और इसकी आचार-विचार की अपनी एक महान सनातनी परंपरा रही है। आज भी भारत में सनातनी परंपरा विकसित और स्थापित है। समय-समय पर विचारों पर आक्रमण होते रहते हैं। ऐसे में हमें अपने विचारों को शुद्ध करने की जरूरत होती है। विचार शुद्धिकरण के लिये विचारों का खंडन-मंडन जरूरी है। विचार में अदिति, बोध, अभ्यास, प्रयोग और प्रसार होना चाहिये। वास्तव में यही विचारों का खंडन-मंडन है। समाज में मूल्य स्थापित होना ही चाहिये, मूल्यों के बिना आदर्श समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है और इसके लिये विमर्श गढ़ने ही होंगे।

उद्घाटन सत्र में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलगुरू राकेश सिंघई ने कहा, मां नर्मदा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि एक पूरी सभ्यता है। उसी तरह मां अहिल्या केवल एक नारी नहीं है, बल्कि वह नारी शक्ति का प्रतीक है। मां नर्मदा जीवनदायिनी है तो मां अहिल्या संस्कृति और नारी शक्ति की प्रतीक है। दोनों हमारे लिये पूज्यनीय और प्रेरणादायी हैं। साहित्यकार जगदीश जोशीला ने मां अहिल्या को महान नारी बताते हुए कहा कि मां अहिल्या वास्तव में नारी शक्ति की मिसाल है। उनके जीवन का हर एक भाग आदर्श स्थापित करते हुए प्रेरित करता है। आज के समय में उनका आदर्श चिंतन और भी ज्यादा प्रासंगिक है।

प्रखर वक्ता, चिंतक और साहित्यकार श्याम मनावत ने विश्व कल्याण में रामराज्य की भूमिका विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हमारे आस-पास ही ऐसे लोग होते हैं, जो हमारे विरोध में काम करते हैं। लेकिन इसके बीच ही हमें अपना रास्ता निकालना होता है। जो रास्ता निकाल लेते है, उनकी ही पहचान होती है और बाद में समाज का नेतृत्व करते है। भगवान राम के चरित्र को देखें तो भी यही बात सामने आती है। मंथरा के कारण श्री राम को वन जाना पड़ा और रामराज्य की स्थापना में देरी हुयी, लेकिन श्री राम अपने कर्तव्य पथ पर चले और लम्बे समय बाद ही सही लेकिन राम राज्य की स्थापना की। आज भी आप अच्छा काम करने जाते हैं तो मंथरा आती है। मंथरा तो हर जगह है और वही राम राज्य की एक बार फिर से स्थापना में बाधक है, लेकिन उस बाधा को हमें दूर करना होगा। विश्व कल्याण की परिकल्पना को यदि स्थापित करना है तो रामराज्य को स्थापित करना होगा, जो संभव है। जब राजा और प्रजा की सोच में ज्यादा अंतर नहीं रह जाता है, वही वास्तव में राम राज्य की स्थापना हो जाती है। रामराज्य के लिए प्रजा को भी राजा की तरह त्यागी और मर्यादित होना चाहिए।

भारती ठाकुर ने कहा, मां अहिल्या का जीवन पूरी तरह से सामाजिक आदर्श स्थिति का रहा है। उनके सामने कई चुनौतियां आयीं, लेकिन उन्होंने पूरी ताकत के साथ उनका सामना किया। मां अहिल्या की आंखों के सामने ही उनके परिजनों का एक के बाद एक निधन होता चला गया, लेकिन उन्होंने अपना मार्ग नहीं छोड़ा। अपनों के लगातार निधन के बाद राज्य को चलाना एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन पूरी निष्ठा से उन्होंने यह काम किया। वास्तव में देखा जाए तो मां अहिल्या का जीवन मानव शास्त्र का भी एक बड़ा विषय है। अहिल्यादेवी के जीवन दर्शन में एक भी पक्ष ऐसा नहीं है, जो आदर्श से परे हो। उन्होंने कहा, मां अहिल्या अपने निर्णयों में दृढ़ होकर कहती थी कि जो भी वस्तु हमने स्वयं बनाई हो, उसे किसी भी स्थिति में टूटने नहीं देना चाहिए। मां अहिल्या नारी शक्ति का प्रतीक है और उनकी दृढ़ता ही उनका परिचय है।


हिन्दू विस्थापन पर क्षमा कौल ने कहा, कश्मीरी पंडितों ने ऐसा उत्पीड़न सहन किया है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कश्मीरी पंडितों की अपनी व्यथा है, जिसे पूरे भारतीय समाज को समझना होगा। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में विकास तो हो रहा है, लेकिन वह मशीनी विकास है, जबकि वहां आज मानवीय विकास की जरूरत है। मानवीय विकास के बिना कश्मीर में विकास नहीं हो सकता है, जो केवल भारतीय समाज ही कर सकता है। 370 हटने के बाद कश्मीर में बदलाव आ रहा है। भारतीय समाज को कश्मीर के लोगों का दर्द समझना होगा और उन्हें पुनर्वास में सहायता करनी होगी, तभी हालात तेजी से सुधरेंगे। कश्मीरी हिन्दुओं की वापसी के बिना कश्मीर भारत का नहीं होगा।

वास्तव में हिन्दुओं में इच्छा शक्ति की कमी है, जिसके कारण आज भी यह कहना गलत होगा कि आज भी कश्मीर पूरी तरह से हमारा है। हिन्दू समाज की इच्छा शक्ति की कमी का ही प्रभाव है कि पूरे भारत में कई जगहों पर छोटे-छोटे पाकिस्तान बन गये हैं।

मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक विकास दवे ने मंचीय कविता का वर्तमान परिदृश्य – चिंताएं और समाधान विषय पर बात रखते हुए समूह परिचर्चा की। शाम में पुण्यश्लोका नृत्यनाटिका का मंचन हुआ।

आरंभ में मां अहिल्या के जीवन पर आधारित चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन मालवा प्रांत के संघचालक प्रकाश शास्त्री और दिलीप सिंह जाधव ने किया। मां अहिल्या की मूर्ति पर माल्यार्पण कर प्रदर्शनी का श्रीगणेश हुआ। अपूर्वा गुप्ता और उनके सहयोगियों ने नर्मदाष्टकम कत्थक नृत्य की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर मालवा प्रांत की प्रसिद्ध पत्रिका जागृत मालवा के विशेषांक का विमोचन भी किया गया।