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धर्म परिवर्तन कराने के दोषी ईसाई दंपती को पांच वर्ष की सजा

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- विशेष न्यायाधीश राम विलास सिंह ने यह फैसला सुनाया। यह मामला 23 जनवरी 2023 को दर्ज हुआ था, जिसमें अब कोर्ट ने अपना निर्णय दिया है।  

- मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के पिपरिया बैंक कॉलोनी निवासी जोस पापाचन और उनकी पत्नी शीजा एएमएन पर आरोप था कि वे अंबेडकरनगर के शाहपुर फिरोज गांव की दलित बस्ती में तीन महीने से सक्रिय थे।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर में एससी-एसटी कोर्ट ने धर्म परिवर्तन कराने के दोषी पाए गए ईसाई दंपती को पांच-पांच वर्ष की जेल और 25-25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। विशेष न्यायाधीश राम विलास सिंह ने यह फैसला सुनाया। यह मामला 23 जनवरी 2023 को दर्ज हुआ था, जिसमें अब कोर्ट ने अपना निर्णय दिया है।  

क्या है मामला?

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के पिपरिया बैंक कॉलोनी निवासी जोस पापाचन और उनकी पत्नी शीजा एएमएन पर आरोप था कि वे अंबेडकरनगर के शाहपुर फिरोज गांव की दलित बस्ती में तीन महीने से सक्रिय थे। भाजपा नेता चंद्रिका प्रसाद की शिकायत के अनुसार, दंपती गरीब परिवारों को बरगलाकर धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रहे थे।  

चंद्रिका ने यह भी आरोप लगाया कि 25 दिसंबर 2022 को दंपती ने दलित बस्ती में बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा कर धर्म परिवर्तन कराने का प्रयास किया। इसके बाद, पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दंपती को शाहपुर फिरोज गांव से गिरफ्तार किया और उनके पास से ईसाई धर्म से जुड़ी सामग्री बरामद की।  

कोर्ट का फैसला -

मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने दंपती को धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के तहत दोषी ठहराया। शीजा को 18 जनवरी और जोस को 22 जनवरी को जेल भेज दिया गया। दोनों को पांच-पांच वर्ष की सजा के साथ 25-25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।  

विशेष अदालत का रुख -

विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि धर्म परिवर्तन के ऐसे प्रयास न केवल कानून का उल्लंघन हैं, बल्कि समाज की स्थिरता को भी प्रभावित करते हैं। अदालत ने इस प्रकार के अपराधों के प्रति सख्त संदेश देने के लिए सजा का निर्धारण किया।  

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया -

मामले को लेकर स्थानीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। भाजपा नेता चंद्रिका प्रसाद ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे न्याय की जीत बताया। वहीं, दंपती के वकील ने फैसले को चुनौती देने की बात कही है।  

यह फैसला धर्म परिवर्तन से जुड़े मामलों में सख्ती का उदाहरण प्रस्तुत करता है और समाज में विधि-व्यवस्था को बनाए रखने का संदेश देता है।