- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाला यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है, बल्कि यह सनातन धर्म की महान परंपरा और आध्यात्मिक जीवंतता का प्रतीक भी है।
- महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी को प्रयागराज के संगम तीर्थ पर हुई। इस दौरान लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं।
प्रयागराज। भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति में कुंभ पर्व का महत्व अनादि काल से रहा है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाला यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है, बल्कि यह सनातन धर्म की महान परंपरा और आध्यात्मिक जीवंतता का प्रतीक भी है। महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी को प्रयागराज के संगम तीर्थ पर हुई। इस दौरान लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं।
कुंभ में होने वाले पवित्र स्नान को प्राचीन ग्रंथों में ‘अमृत स्नान’ और ‘राजसी स्नान’ कहा गया है। यह नाम समुद्र मंथन की उस कथा से जुड़ा है, जिसमें अमृत कलश के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच संघर्ष हुआ था। मान्यता है कि अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक—पर गिरीं और इन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन होने लगा।
शाही स्नान’ का नामकरण : मुगल प्रभाव की छाया -
हिंदू धर्मग्रंथों में ‘शाही स्नान’ का उल्लेख नहीं मिलता। प्राचीन ग्रंथ धर्मसिंधु में इसे ‘अमृत स्नान’ और ‘राजसी स्नान’ कहा गया है। हालांकि, मुगल शासन के दौरान भारत की परंपराओं और संस्कृति पर फारसी और उर्दू भाषाओं का गहरा प्रभाव पड़ा। उस समय नागा साधु और अन्य संत भव्य ठाट-बाट के साथ कुंभ स्थल पर आते थे। यह दृश्य राजा-महाराजाओं के दरबार जैसा प्रतीत होता था। मुगलों ने इस भव्यता को देखकर इसे ‘शाही स्नान’ नाम दिया, क्योंकि फारसी में ‘शाही’ का अर्थ ‘रॉयल्टी’ होता है।
विशेषज्ञ संस्कृत शिक्षक और अधिकारी विशालभाई राज्यगुरु बताते हैं कि मुगल काल में कई भारतीय परंपराओं के नामों को बदलने का प्रयास किया गया। ‘शाही स्नान’ शब्द उसी दौर की देन है, जिसे साधु-संतों ने लंबे समय तक स्वीकार नहीं किया।
योगी सरकार का ऐतिहासिक कदम : मूल नाम की पुनर्स्थापना -
‘शाही स्नान’ शब्द को बदलने की माँग साधु-संतों द्वारा कई दशकों से की जा रही थी। उनका मानना था कि यह नाम हमारी प्राचीन परंपराओं का अपमान है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस पवित्र अनुष्ठान का मूल सम्मान वापस लाने के लिए पहल की। साधु-संतों से सुझाव माँगे गए, जिन्होंने ‘अमृत स्नान’ और ‘राजसी स्नान’ जैसे नाम सुझाए।
योगी सरकार ने इन सुझावों को स्वीकार कर ‘शाही स्नान’ का नाम बदलकर ‘अमृत स्नान’ और ‘राजसी स्नान’ रखा। यह निर्णय न केवल सनातन परंपरा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने का भी बड़ा उदाहरण है।
सनातन परंपरा और सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना -
कुंभ पर्व जैसे आयोजनों का उद्देश्य केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति के महान गौरव का प्रतीक भी है। ‘शाही स्नान’ का नाम बदलकर ‘अमृत स्नान’ और ‘राजसी स्नान’ करना योगी सरकार का ऐसा ऐतिहासिक कदम है, जो हमारी सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जीवित करता है।
इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक भारत अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए अपनी प्राचीन और पवित्र परंपराओं को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है।