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हिन्दुत्व पूजा पाठ नहीं, विचारों का प्रवाह – इंद्रेश कुमार

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हिन्दुत्व पूजा पाठ नहीं, विचारों का प्रवाह – इंद्रेश कुमार

- मकर संक्रांति के माध्यम से धर्म व समाज को अनुकूल रहने का प्रशिक्षण मिलता है। यह पर्व मिलकर रहने का संदेश देता है। महाशिवरात्रि, शिव की उपासना का पर्व है, इसके माध्यम से हम सारी विष रूपी बुराइयां शिव को अर्पित कर देते हैं

- कुम्भ भी मन के विकारों को दूर करने का माध्यम है। मानव मानव रहे, राक्षस ना बने, इसके लिए ही कुम्भ आयोजित होते हैं। राम और रावण में कई दृष्टियों से समानता थी, जैसे दोनों राजा, दोनों शिव भक्त, दोनों चारों वेदों के ज्ञाता थे

जोधपुर, । प्रयागराज महाकुम्भ में स्नान करके आए श्रद्धालुओं के लिए राष्ट्रीय जनचेतना न्यास ने महाकुम्भ हिन्दुत्व का विराट दर्शन कार्यक्रम आयोजित किया। प्रताप नगर आदर्श विद्या मंदिर स्कूल में मंगलवार शाम को सैनाचार्य अचलानंद गिरि जी महाराज के सान्निध्य, समाजसेवी सुरेश राठी की अध्यक्षता में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि कुम्भ दुनिया की प्राचीन व्यवस्था व परंपरा है। मकर संक्रांति से लेकर महाशिवरात्रि तक का समय कुम्भ का रहता है। मकर संक्रांति के माध्यम से धर्म व समाज को अनुकूल रहने का प्रशिक्षण मिलता है। यह पर्व मिलकर रहने का संदेश देता है। महाशिवरात्रि, शिव की उपासना का पर्व है, इसके माध्यम से हम सारी विष रूपी बुराइयां शिव को अर्पित कर देते हैं। कुम्भ भी मन के विकारों को दूर करने का माध्यम है। मानव मानव रहे, राक्षस ना बने, इसके लिए ही कुम्भ आयोजित होते हैं। राम और रावण में कई दृष्टियों से समानता थी, जैसे दोनों राजा, दोनों शिव भक्त, दोनों चारों वेदों के ज्ञाता थे। लेकिन अंतर आचरण व चरित्र में था, राम आचरण व चरित्र की श्रेष्ठता के कारण पूजे गए। राम ने शबरी के बेर खाकर समरसता का संदेश दिया था।

उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व केवल पूजा पाठ नहीं, बल्कि इसके माध्यम से अच्छे कर्म करने की प्रेरणा है। भक्ति मनुष्य को महापुरुष बनाती है। अगर संतों जैसी धर्म की भक्ति  होती है तो सनातन संस्कृति प्रबल होती है।

ब्रह्मांड के चार तत्वों में पृथ्वी तत्व जोड़कर संसार का निर्माण वर्ष प्रतिपदा को हुआ। साथ ही मानव की उत्पत्ति भी वर्ष प्रतिपदा को हुई, इस अर्थ में वर्ष प्रतिपदा पृथ्वी दिवस भी है, सृष्टि दिवस भी है। हमारे यहां जननी व जन्मभूमि को सबसे श्रेष्ठ मानने की परंपरा रही है, राम का उदाहरण देते हुए कहा कि जन्म भूमि को महान व स्वर्ग से भी बेहतर बताया गया है।

इस अवसर पर महाकुम्भ से आए भक्तों का भगवा अंगवस्त्र पहनाकर सत्कार किया गया।