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इतिहास

भारत की पहली महिला पत्रकार हेमन्त कुमारी देवी चौधरानी

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·         हिन्दी साहित्य इतिहास में पहली स्त्री संपादिका


·         कुशल पत्रकार, संपादक, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रधानाचार्य और कुशल प्रशासक


·         स्त्री शिक्षा में अहम योगदान  


·         ‘वनिता बुद्धि प्रकाशनी सभा’ की स्थापना


·         ‘आदर्श माता’, ‘माता और कन्या’ और ‘नारी पुष्पावाली’ लिखकर स्त्री और हिन्दी की सेवा की

 

विद्या और साध्विता के भूषण से जब नारी अलंकृत होती है तब मैं उसे अंलकृता समझती हूँ; सोने से भूषिता होने से ही अंलकृत नही होती”- हेमन्त कुमारी देवी चौधरानी

विद्या और साध्विता के भूषण से जब नारी अलंकृत होती है तब मैं उसे अंलकृता समझती हूँ; सोने से भूषिता होने से ही अंलकृत नही होती”। विद्या और नारीत्व के गुण को परिभाषित करती ‘सुगृहिणी’ पत्रिका की ये टैगलाइन भारत की पहली महिला पत्रकार हेमन्त कुमारी देवी चौधरानी की है, जिसने उस समय पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया जब नारी शिक्षा का अभाव था और देश अंग्रेजों का गुलाम था। ऐसे समय मे जब देश अंग्रेजी हुकूमत के फंदे में था और तब किसी महिला का आगे बढ़कर ना केवल पत्रकारिता में अपनी मजबूत दखल बनाना बल्कि संपादक की जिम्मेदारी तक पहुंच जाना मायने रखता है।

वर्ष 1888 में हेमन्त कुमारी देवी ने ‘सुगृहिणी’ नामक स्त्री पत्रिका नागरी भाषा में निकाली थी। हिन्दी नवजागरण काल के इतिहास में किसी स्त्री द्वारा संपादित ‘सुगृहिणी’ पहली पत्रिका और श्रीमती हेमन्त कुमारी देवी हिन्दी साहित्य इतिहास में पहली स्त्री संपादिका है। ऐसा इसलिये कहा जा रहा है कि श्रीमती हरदेवी की पत्रिका ‘भारत भगिनी’ सन 1889 में निकली थी। ‘सुगृहिणी’ पत्रिका का पहला अंक फरवरी 1888 में निकला था। नवजागरण कालीन यह पत्रिका सुखसंवाद प्रेस, लखनऊ में पण्डित बिहारी लाल के द्वारा मुद्रित होती थी। इस पत्रिका में कुल बारह पृष्ठ होते थे। ‘सुगृहिणी’ का पहला और आखिरी पृष्ट रंगीन होता था।

19वीं सदी के नवजागरण काल की यह बहुत बड़ी घटना थी कि किसी गैर हिंदी भाषी स्त्री ने स्त्रियों के दुख दर्द को सामने लाने के लिये पत्रिका निकाली थी। यह नवजागरण कालीन लेखकों और संपादकों के लिए आश्चर्य की बात थी कि किसी स्त्री ने स्त्रियों के लिए पत्रिका निकाली है।

सुगृहिणी’ पत्रिका के संबंध में भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध लेखक बाबू राधाकृष्ण दास ने बड़ी मार्मिक टिप्पणी की है- ‘स्त्री शिक्षा विषयक दूसरी पत्रिका ‘‘सुगृहिणी’’ थी। इसे लाहौर के बाबू नवीनचंद्र राय की पुत्री श्री हेमन्त कुमारी देवी सम्पादित करती थीं। इसका जन्म सन् 1888 ई में हुआ। यह बात हिन्दी के लिये नई थी कि एक स्त्री वह भी बंगालिन एक हिन्दी पत्रिका की संपादिका हो। इसके लेख ब्रह्म समाज के ढंग पर विशेष होते थे।’ राधा बाबू कृष्णदास ने ‘बालाबोधिनी’ को स्त्रियों की पहली पत्रिका माना है। स्त्रियों की तीसरी पत्रिका हरदेवी की ‘भारतभगिनी’ को माना है।

 इस कुशल पत्रकार, संपादक, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रधानाचार्य और कुशल प्रशासक हेमंत कुमारी चौधरी का जन्म लाहौर में वर्ष 1868 में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबू नवीन चंद्र राय था। जब वह मात्र 7 साल की थी तो उनकी माता का देहांत हो गया था। उनके पिता ने अपनी बेटी को मां की कमी कभी महसूस नहीं होने दी। बाबू नवीन चंद्र राय भी हिंदी के बड़े लेखक और समाज सुधारक थे वह स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे। बाबू नवीन चंद्र राय 19वीं शताब्दी का एक जाना माना नाम है। पंजाब में स्त्री शिक्षा का बीज बोने का श्रेय बाबू नवीन चंद्र राय को ही दिया जाता है। स्त्रियों के लिए नॉर्मल फैमिली स्कूल उन्होंने ही खोला था। हेमन्त कुमारी देवी की शिक्षा-दीक्षा लाहौर, आगरा एवं कोलकाता में हुई। उनका विवाह सिलहट के रामचंद्र चौधरी से 2 नवंबर 1885 में हुआ जो रतलाम रियासत की नौकरी के सिलसिले में रतलाम आ गए थे। उन्हीं के साथ हेमंत कुमारी भी रतलाम आ गई थी। वह मूलतः बांग्ला भाषी थीं परंतु हिंदी भाषा से उन्हें अतिरिक्त अनुराग था। वे रतलाम रियासत की तत्कालीन महारानी को हिंदी पढ़ाने भी जाया करती थीं। उस समय आसपास की महिलाओं की स्थिति को देखकर उन्हें ऐसी पत्रिका की जरूरत महसूस हुई, जो उन्हें जागरूक कर सके। जिस समय उन्होंने पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था उस समय उनकी आयु मात्र 20 वर्ष थी। इसके दृष्टिगत उन्हें देश की सबसे कम उम्र की महिला संपादक भी कह सकते हैं।

 ‘सुगृहिणी’ के प्रथम अंक में उन्होंने संपादकीय में एक विशेष संवाद लिखा था जो महिलाओं के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। जो इस प्रकार है- “ओ मेरी प्रिय बहन, अपने दरवाजें को खोलो और देखो कि कौन आया है? यह आपकी बहन ‘सुगृहिणी’ है। यह आपके पास इसलिए आई है क्योंकि आप पर अत्याचार हो रहा है, आप अशिक्षित हो और एक बंधन में बंधी हो... इसका स्वागत करो और इसे आशीर्वाद दो। मां तुम्हारी और सुगृहिणी की सहायता करें।”

हेमंत कुमारी देवी अपनी पत्रिका सुगृहिणी में स्त्रियों की समस्याओं से संबंधित लेख छापती थी। सुगृहिणी में ‘अवियार चरित्र’  शीर्षक से एक लेख छपा था। इस लेख में अवियार नामक विदुषी स्त्री का उदाहरण देकर बताया गया था कि स्त्रियां बौद्धिक दृष्टि से मजबूत अवस्था में थी इसलिए हमें यह भी कहा गया कि अवियार एक विदेशी महिला थी जो कम्बन के समकालीन थी। उसका जन्म नीच कुल में दक्षिण भारत के किसी गांव में हुआ था। हेमंत कुमारी ने शायद यह लेख स्त्रियों को प्रेरणा देने के लिए लिखा होगा इसके अलावा सुगृहिणी में ‘गृह चिकित्सा’ ‘फोटोग्राफी’ नाम के दो कॉलम चलते थे। कॉलम में स्त्रियों की बीमारियों और उनके निदान के लिए दवाई बताई जाती थी।

पत्रिका में स्त्रियों से संबंधित समाचार छापे जाते थे। सन् 1988 में हेमंत कुमारी देवी ने ‘यथार्थ लज्जा’ लेख लिखकर घूंघट और पर्दा प्रथा का जबरदस्त विरोध किया था। उनका मानना था कि स्त्रियों को पर्दे और घूँघट में बिल्कुल नहीं रखा जाना चाहिए। वो अपनी पत्रिका में लिखती है कि ‘नाना अलंकारों से भूषित बालक भी यदि पापाचारी हो जाए तो उसकी सुंदरता नहीं रहती। जिसका हृदय पाप पूर्ण है बाहर के सुंदर कपड़े और घूंघट से उसे क्या फायदा? वह मुंह में अमृत और पेट में विष से भरा हुआ होता है। शारीरिक दोष जिसके संयमित है, इंद्रियां जिसके वश में है, चित्तवृत्ति जिसकी निरुग और मन जिसका प्रसन्न है उसे घूँघट से मुह ढकने का क्या प्रयोजन ? इस लेख में आगे लिखा गया कि जो स्त्री अपने आप की रक्षा करती है, सुरक्षित है, नहीं तो घूंघट काढ़कर घर में बंद रहने से भी वह सुरक्षित नहीं है। इस प्रकार अगर देखा जाए तो हेमंत कुमारी देवी जहां एक ओर सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात कर रही थी, वही दूसरी ओर स्त्री की स्वतंत्रता की लड़ाई भी लड़ रही थी। हेमंत कुमारी देवी की चिंता थी कि स्त्रियों को कैसे शिक्षित किया जाए। वो इस बात को भलीभांति समझ चुकी थी कि स्त्रियों की स्वतंत्रता शिक्षित होने में ही निहित है। इस निमित्त जब हेमंत कुमारी कलकत्ते के वेथुन स्कूल से अपनी शिक्षा प्राप्त कर लाहौर लौटी तब उन्होंने श्रीमती हर देवी के साथ मिलकर ‘वनिता बुद्धि प्रकाशनी सभा’ की स्थापना की। उन्होंने इस सभा के द्वारा स्त्री शिक्षा के प्रश्न को बड़े जोरदार ढंग से उठाया था। वहीं 1886 में भगिनी समाज की स्थापना भी की और बालिकाओं के लिए एक पुस्तकालय भी खुलवाया। इतना ही नहीं जब हेमंत कुमारी विक्टोरिया कन्या महाविद्यालय की प्रिंसिपल थीं तो वह घर घर जाकर माता-पिता को समझाती थीं कि अपनी कन्याओं को स्कूल के लिए भेजें। हेमंत कुमारी देवी के स्त्री शिक्षा के योगदान में इसी कॉलेज के अध्यापिका ने 1927 में एक लेख लिखा, जिसमें वह कहती है कि ‘इस विद्यालय को 1906 में स्थापित किया गया था इस विद्यालय वाटिका में 500 बालिकाएं अठखेलियां करती है विद्यालय के कार्यकर्ता भी प्रसन्न होते हैं।

हेमंत कुमारी देवी का शिक्षा में कितना बड़ा योगदान था इसका अंदाजा राम शंकर शुक्ल रसाल एम ए की इस बात से लगाया जा सकता है कि ‘‘जिस प्रकार भारतेंदु बाबू के समय से खड़ी बोली के गद्य और पद्य में नवीन उत्थान प्रारंभ होता है उसी प्रकार स्त्री साहित्य में हेमंत कुमारी देवी चौधरानी नवोउन्नति का प्रारंभ देखते है। स्त्री शिक्षा की जागृति  और उन्नति का श्रेय  पंजाब प्रांत में यदि किसी न किसी महिला रत्न को मिल सकता है तो वह इन्ही को है।’’

इन्होंने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे बड़ा कार्य किया कि सरकार से प्रार्थना करके हिंदू कन्याओं के लिए सिलहट में बड़े यत्न के बाद एक विद्यालय खुलवाया जो अभी तक है और जिसमें हर साल कन्याएं परीक्षा पास करती हैं। इतना ही नहीं हेमंत कुमारी देवी ने स्त्रियों के स्वास्थ्य को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की और शिलांग में एक पृथक स्त्री चिकित्सालय स्थापना की मांग की उस समय आप सोच सकते हैं कि प्रथम महिला अस्पताल की मांग करना हेमंत कुमारी देवी के लिए कितना कठिन रहा होगा और इस अस्पताल के लिए उन्हें अंग्रेजों के विरोध का भी सामना करना पड़ा परंतु हेमंत कुमारी देवी ने हार नहीं मानी और स्वयं आसाम के चीफ कमिश्नर की पत्नी के साथ जाकर सारा वृत्तांत निवेदन करके उनसे सहायता मांगी उनके प्रयास से वहां पर स्त्रियों के लिए एक पृथक चिकित्सालय खोला गया।

स्त्री संबंधित समस्याओं के अतिरिक्त सुगृहिणी में समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों पर कुठाराघात करने का कार्य किया गया। सुगृहिणी के उन्नत नारी जीवन (1888) लेख में पुरोहितों और पुजारियों के पाखंड का प्रबल विरोध किया गया इस लेख में लिखा गया कि ”रामदेई जाने की तो मेरी भी इच्छा है पर मैं उन दिनों नॉर्मल स्कूल की औरतों को भूगोल पढ़ाती थी इसलिए ना जा सकी। जहां प्रकृति की शोभा और महान जन बसते हों ऐसे तीर्थों पर जाने से धर्म का लाभ तो निश्चय है। पर पुराने तीर्थाे में जो हमारे पंडे रहते हैं वो यात्रियों को बड़ी दिक्कत करते हैं मेरी समझ में इन सड़े, आलसी पंडो को दान करना मूर्ख ब्राह्मणों के दान से अधिक हानिकारक है।’’ समाज की कुरीतियों पर इससे ज्यादा कुठाराघात और क्या हो सकता है।

हेमंत कुमारी देवी का हिंदी भाषा से बेहद लगाव और अनुराग था। वो अपनी पत्रिका में हिंदी भाषा के पक्ष में माहौल तैयार करती दिखाई देती थी। जब सन् 1888 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रशासन ने बड़ा अजीबोगरीब निर्णय लिया कि एंट्रेंस की परीक्षा हिंदी और उर्दू की जगह अंग्रेजी भाषा में होगी, तब यूनिवर्सिटी के इस फैसले की चर्चा पूरे देश में हुई थी। हेमंत कुमारी देवी के प्रशासन द्वारा हिन्दी भाषा को हटाए जाने का विरोध किया गया था। इन्होंने कहा था कि हिंदी भाषा में ही यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा कराई जानी चाहिए, क्योंकि स्त्रियों को अंग्रेजी भाषा नहीं आती है, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान ना होने के कारण स्त्रियां प्रवेश पाने से वंचित हो जाएंगी। इस प्रकार हेमन्त कुमारी देवी नवजागरणकाल की महत्वपूर्ण लेखिका और संपादिका थी। इन्होंने स्त्री वैचारिकी की जमीन तैयार कर स्त्री स्वतंत्रता का रास्ता तैयार किया था। ‘सुगृहिणी’ नवजागरण काल का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस पत्रिका से पहले हिन्दी में कोई ऐसी पत्रिका नहीं थी जिसका संपादन कोई स्त्री करती हो। सुगृहिणी ऐसी पत्रिका थी जो पुरुषवादी सिविल संहिता के खिलाफ लड़ रही थी। यह पत्रिका स्त्रियों को उनकी परम्परा से भी जोड़ती है।

आप सोचिए हेमन्त कुमारी देवी के लिए वह दौर कितना कठिन रहा होगा जब हिन्दी में बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी, राधाचरण गोस्वामी और पंडित देवी सहाय जैसे विद्वान पत्रिका निकाल रहे थे। इन संपादकों के बीच हेमन्त कुमारी देवी ने स्त्रियों की बेहतरी के लिए सुगृहिणी पत्रिका निकाल कर स्त्री वैचारिकी की जमीन तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। हेमन्त कुमारी देवी ने ‘सुगृहिणी’ का चार-पांच साल तक लगातार संपादन किया था। इन्होंने अंतःपुर (बंग भाषा) पत्रिका का भी तीन साल तक संपादन कार्य किया था। इन पत्रिकाओं के द्वारा इन्होंने घर के भीतर कैद स्त्री की पीड़ा को बाहर लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके अलावा हेमन्त कुमारी देवी ने ‘आदर्श माता’, ‘माता और कन्या’ और ‘नारी पुष्पावाली’ किताब लिखकर स्त्री और हिन्दी की सेवा की। आज इस नवजागरण कालीन महान लेखिका के चिंतन और योगदान को सामने लाने की जरूरत है।

(लेखिका किसान पी. जी कॉलेज सिम्भावली हापुड़ (चौ.चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ उत्तर प्रदेश में अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष  हैं)