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800 साल से जीवित " कल्पवृक्ष ": गंगा की उर्वराशक्ति का प्रतीक हिंदुओं आस्था का केंद्र

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800 साल से जीवित " कल्पवृक्ष ": गंगा की उर्वराशक्ति का प्रतीक हिंदुओं आस्था का केंद्र  

- दक्षिण अफ्रीका के सवाना क्षेत्र से आए बाओबाब (वानस्पतिक नाम: एडनसोनिया डिजिटाटा) की यह प्रजाति आमतौर पर भारत में नहीं पाई जाती

- वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. एचपी पांडेय के अनुसार, गंगा की उर्वराशक्ति और जलवायु ने इस वृक्ष को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाई

प्रयागराज: प्रयागराज के पुरानी झूंसी क्षेत्र में स्थित 800 साल पुराना कल्पवृक्ष, जिसे स्थानीय लोग "बूढ़ा बाबा" के नाम से जानते हैं, सदियों से आस्था और गंगा की शक्ति का जीवंत प्रमाण बना हुआ है। दक्षिण अफ्रीका के सवाना क्षेत्र से आए बाओबाब (वानस्पतिक नाम: एडनसोनिया डिजिटाटा) की यह प्रजाति आमतौर पर भारत में नहीं पाई जाती, लेकिन गंगा की उपजाऊ मिट्टी और विशेष जलवायु के कारण यह वृक्ष सदियों से हरा-भरा बना हुआ है।  

गंगा की उर्वराशक्ति से जीवित अद्भुत वृक्ष-  

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) की वैज्ञानिक डॉ. आरती गर्ग के अनुसार, इस वृक्ष की उम्र का पता रोमानिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रो. एड्रियन पैट्रट के साथ किए गए शोध में चला। वर्ष 2020 में जर्नल प्लॉस वन में प्रकाशित शोध पत्र "रेडियोकॉर्बन डेटिंग ऑफ टू ओल्ड बाओबाबस फ्रॉम इंडिया" के अनुसार, वृक्ष की उम्र  800 वर्ष से अधिक पाई गई।  

वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. एचपी पांडेय के अनुसार, गंगा की उर्वराशक्ति और जलवायु ने इस वृक्ष को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाई। गर्मी के मौसम में जब सूर्य की किरणें रेत पर पड़ती हैं, तो यह वृक्ष खुद को दक्षिण अफ्रीका के सवाना क्षेत्र जैसा वातावरण महसूस कराता है, जिससे इसकी उम्र बढ़ती जाती है।  

भारत में कैसे पहुंचा यह वृक्ष? 

इस वृक्ष के भारत आने का इतिहास स्पष्ट नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि अरबी, डच और पुर्तगाली व्यापारियों के माध्यम से यह वृक्ष भारत पहुंचा होगा। सदियों से यह वृक्ष हिंदुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है।  

*कल्पवृक्ष और जीवन संघर्ष की शक्ति- 

डॉ. पांडेय बताते हैं कि किसी भी पेड़ की आनुवंशिक संरचना में मौजूद जीन में से केवल 15-20% ही सक्रिय रहते हैं, जबकि 80% सुषुप्त अवस्था में होते हैं। लेकिन जब पेड़ को जीवन संकट का सामना करना पड़ता है, तो सुषुप्त जीन सक्रिय हो जाते हैं, जिससे इसकी उम्र लंबी हो जाती है। यही कारण है कि बाओबाब वृक्ष हजारों साल तक जीवित रह सकते हैं।  

गंगा के कारण बना हुआ है कल्पवृक्ष का अस्तित्व-  

वैसे तो बाओबाब वृक्ष की उम्र स्वाभाविक रूप से लंबी होती है। दक्षिण अफ्रीका में इस प्रजाति का वृक्ष 2000 साल तक जीवित पाया गया है। झूंसी के इस कल्पवृक्ष को भी गंगा का जल ही जीवन देता आया है। बाराबंकी के पारिजात वृक्ष की तरह ही, झूंसी का यह वृक्ष भी गंगा की नमी और पोषण से फलता-फूलता रहा है।  

ऐसे अन्य पौराणिक वृक्ष-  

भारत में कई अन्य स्थानों पर भी ऐसे प्राचीन वृक्ष मौजूद हैं, जो धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं:  

- बाराबंकी का पारिजात वृक्ष – उम्र 800 वर्ष  

- देवदुर्ग, रायचुर स्थित कल्पवृक्ष – उम्र 500 वर्ष 

- गोलकुंडा फोर्ट का एलिफेंट ट्री – उम्र 450 वर्ष  

गंगा की महिमा का प्रतीक "बूढ़ा बाबा"-  

झूंसी का यह कल्पवृक्ष न केवल अपनी उम्र, बल्कि आस्था और पर्यावरणीय महत्व के कारण भी खास है। यह वृक्ष गंगा की उर्वराशक्ति और जलवायु के प्रभाव का जीता-जागता उदाहरण है। यह हमें बताता है कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि जीवनदायिनी शक्ति है।