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हारिए मगर जीतने के लिए!

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अमेरिकी कवि जॉर्ज एडवर्ड वुडबेरी ने एक बार कहा था, "हार सबसे बड़ी असफलता नहीं है। कोशिश नहीं करना असली विफलता है।" जब आप वास्तव में हार जाते हैं, तभी आप कोशिश करना बंद कर देते हैं। जब आप हारते हैं, तो डिमोटिवेट महसूस करना और निराश होना आसान होता है। यही कारण है कि, आपको अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहने की आवश्यकता है, और उठकर फिर से प्रयास करने की आवश्यकता है।

हमने बचपन से सुना है फर्स्ट आओ, जीतो, आगे बढ़ते रहो, रेस में अव्वल रहो। जैसे जीतना ही जीवन ध्येय और मूल भाव है। सोचिए अगर प्रकृति ने सिर्फ जीत को महत्व दिया होता तो हार का अस्तित्व क्यों है? बिना महत्व के तो प्रकृति घास के तिनके को भी अनावश्यक घोषित कर देती है, मिटा देती है। जैसे जीवन के साथ मृत्यु अकाट्य सत्य है वैसे ही जीत के साथ हार भी अनिवार्य स्थिति है।

आज तरक्की और प्रगति के बीच के अंतर को हम भुला चुके हैं। तरक्की मतलब बड़े, भव्य, आलीशान घर, ब्रांडेड कपड़े, महंगी एसेसरीज, गैजेट और नए टॉप मॉडल की गाड़ियां। यही सफलता की आम धारणा बन चुकी है ज्यादातर लोग इसके इतर सोच ही नहीं पा रहे। बहुत देर से एहसास होता है कि हम किसी गलत होड़ में भाग रहे हैं और जाने–अंजाने अपने बच्चों को भी इसी दौड़ का हिस्सा बना बैठे हैं।

बेस्ट होने या बेस्ट दिखने का दबाव लगभग हर एक बच्चे के ऊपर है। किसी के ऊपर थोड़ा कम, किसी के ऊपर थोड़ा ज्यादा। लगता है कि हम सारे बच्चों को श्रेणियों में बांटने के लिए ही तत्पर बैठे हैं सर्वश्रेष्ठ बच्चे, औसत बच्चे और निम्न प्रदर्शन करने वाले बच्चे क्योंकि यही पैमाना समाज के बड़े तबके द्वारा शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर तय कर लिया जा रहा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 35 प्रतिशत छात्रों ने स्वीकार किया कि वह बेहतर अकादमिक प्रदर्शन के दवाब में रहते हैं और 37 प्रतिशत छात्रों में एंजायटी पाई गई।

कक्षा 9 से 12 के बच्चों के बीच इसी डर और तनाव को निकालने के लिए प्रधानमंत्री ने परीक्षा पर चर्चा की शुरुआत की। बोर्ड परीक्षा का महत्व हर छात्र जानता है लेकिन डर, तनाव और दवाब में छात्र का आत्मविश्वास लगभग हिल जाता है और उसके द्वारा किए गए सारे प्रयत्नों पर पानी फिर जाता है। परीक्षा के नतीजे उनके जीवन को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं और कम अंकों की वजह से अपमानित महसूस करते हताश,  दुखी छात्र कभी-कभी आत्महत्या जैसे भयावह निर्णय ले लेते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2014 से 2020 के बीच 12500 बच्चों ने आत्महत्या की, इसी रिसर्च के अनुसार भारत में लगभग हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है। जिसका एक महत्वपूर्ण कारण खराब परीक्षा परिणाम भी है।

 

शिक्षा हर व्यक्ति के लिए  महत्वपूर्ण है और इससे आगे के जीवन का निर्धारण होता है यानी जीवन में आप कितने सफल हैं कितने सशक्त हैं और किस हिसाब से समृद्ध हैं काफी कुछ शिक्षा के प्रभाव का नतीजा होता है परंतु अभिभावकों, शिक्षकों अथवा समाज की विभिन्न अपेक्षाओं के दबाव में छात्रों द्वारा परीक्षाओं को जीवन–मरण का प्रश्न बना लेना अपने आप में एक गंभीर और ध्यान देने वाली बात है। बेहतर प्रदर्शन तभी हो सकता है जब हम अपना मन शांत रखते हुए जो कुछ भी पढ़ा हुआ है उसे बेहतर तरीके से प्रदर्शित करने और लिखने पर ध्यान देते हैं।

ऐसी स्थिति में शिक्षकों का काम बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। हमें समझना होगा कि आज के छात्रों के जीवन की चुनौतियां बहुत अलग हो चुकी हैं। कोरोना काल के बाद से जो अलग-अलग तरीके से ध्यान भटकाने के साधन उन्हें उपलब्ध हो चुके हैं उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि काफी समय छात्र-छात्राओं का स्क्रीन के सामने गुजरता है जिसमें प्रोडक्टिव समय कम होता है। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की लत पढ़ाई पर फोकस करने में एक बड़ी बाधा सिद्ध हो रही है।

 

भारत में लगभग हर दिन लोग 6 घंटे का समय स्क्रीन पर बिताते हैं यह चिंताजनक है क्योंकि इससे बहुत समय व ऊर्जा खर्च होती है जिसका प्रयोग हम कुछ अच्छे, सकारात्मक कार्यों में भी कर सकते हैं। यह जरूरी है कि हम सब कम से कम हफ्ते में एक दिन गैजेट फ्री या गैजेट फास्टिंग की तरफ भी ध्यान दें। इस व्यापक समस्या से स्कूल और अभिभावक दोनों ही संघर्षरत हैं इससे ना सिर्फ स्कूल का परफॉर्मेंस बल्कि बच्चों का पारिवारिक और सामाजिक जीवन भी प्रभावित हो रहा है। ऐसी स्थिति में यह ध्यान रखना जरूरी है किस तरह से शिक्षक एक पुल की तरह माता-पिता और छात्रों के मध्य अपनी गंभीर भूमिका का निर्वाह करें। छात्रों को पूरे मनोयोग से उनकी रुचि के अनुसार धैर्य और मेहनत करने की क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करना होगा ताकि ज्यादा से ज्यादा समय परीक्षा की तैयारी में ईमानदारी और मेहनत से लगा सकें।ध्यान देने वाली बात यह है कि उनका कंप्टिशन खुद से है सारे प्रयास खुद की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए है।

भारत में शुरू किया गया परीक्षा पर चर्चा कार्यक्रम विश्व में एक ऐसा विशिष्ट प्रयास है जिसमें इतने बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री छात्रों की परीक्षा जैसे विषय पर गंभीरता से बात करता है, जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री  की इस पहल के बाद परीक्षा और  छात्र छात्राओं के प्रश्नों को सभी वर्गों ने गंभीरता से लिया है चाहे वह अभिभावक हों या शिक्षक।

जैसे जैसे बोर्ड परीक्षा और उसके रिजल्ट का मौसम करीब आता है एक अजीब सी बैचेनी माहौल में तारी होने लगती है। आज भी भारतीय परिवारों में बोर्ड के नंबर बच्चों के अलावा मां–बाप के लिए भी सफलता का एक पैमाना है।

 

ऐसे में एग्जाम फोबिया कोई काल्पनिक धारणा नहीं है।परीक्षा हर उम्र में घबराहट और बेचैनी निश्चित तौर पर पैदा करती है। मनोवैज्ञानिक भावनात्मक और शारीरिक दृष्टि से यह गहरा प्रभाव डालती है।

 ऐसी स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण चीज  है कि जब दिमाग दबाव में आता है तो हमारे शरीर की ऊर्जा उस तनाव से निपटने में लग जाती है और सीखने की पूरी प्रक्रिया बाधित हो जाती है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि हम अपनी उस सोच में व्यापक बदलाव लाएं जिसमें छात्र के नंबर और ग्रेड उसकी पूरी प्रतिभा,  पूरे व्यक्तित्व को तौलने का काम करती है।

यह जरूरी है कि एक व्यापक बदलाव समाज, परिवार और शैक्षणिक संस्थानों में भी हो जिसमें बच्चों को सिर्फ नंबर लाने की मशीन ना समझा जाए बल्कि उनके एकेडमिक या एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज को भी बराबरी से महत्व दिया जाए।

 

नई शिक्षा नीति में स्वरोजगार और स्किल डेवलपमेंट के लिए प्रयास किए जा रहे हैं इन प्रयासों को जमीनी हकीकत से जोड़ते हुए छात्रों को प्रशिक्षित करना जरूरी है।

छात्रों में आपस में तुलना करना एक बहुत बड़ी भूल है क्योंकि ईश्वर ने मानवीय क्षमता हर व्यक्ति में अलग अलग दी है। जरूरी है मां-बाप या शिक्षक होने के नाते हम उनकी क्षमताओं को उदार हृदय समझें और निखारने के लिए सतत प्रयास व सहयोग दें।

 

आवश्यक है कि हम अपने बच्चों को श्रम का सम्मान करना सिखाए।बताएं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि काम को जिम्मेदारी ,लगन और सूझबूझ से करने पर वह काम बड़ा हो जाता है और बड़े काम को भी लापरवाही और गैर जिम्मेदारी से करने पर वह काम अर्थहीन हो जाता है।समाज के प्रति अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए अपने शारीरिक और मानसिक श्रम एवं योग्यताओं का प्रयोग करना सदैव सभी के लिए शुभ होता है। बच्चों को सिखाएं कि जीवन का एकमात्र उद्देश्य धन कमाना नहीं है। इसके अतिरिक्त बहुत सारी चीजें अर्जित करना है जिसमें आत्मिक शांति , सम्मान उपयोगिता और सहयोगिता शामिल है।

किसी को भी जज करने के लिए उसके परीक्षा परिणाम को आधार मान लेना उसकी संपूर्ण प्रतिभा और व्यक्तित्व के साथ अन्याय है।आज के समय में जब एंटरप्रेन्योरशिप व स्वरोजगार को इतना बढ़ावा दिया जा रहा है तो ऐसे में सिर्फ नौकरी पाना करियर का उद्देश्य किसी भी तरीके से तर्क सम्मत और भविषोन्मुखी निर्णय नहीं हो सकता। हम यह ध्यान दें कि हमारे आने वाली पीढ़ी को हमें एक नए सिरे से करियर का अर्थ समझाना होगा जिसमें संतुलन सबसे आवश्यक तत्व है। यह जरूरी है कि आर्थिक दृष्टि से मजबूत होने के साथ-साथ शारीरिक,आध्यात्मिक,आर्थिक और मानसिक रूप से भी छात्र मजबूत बने, संतुलित रहे। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम उन्हें एक बेहतर जीवन की तरफ अग्रसर कर सकते हैं।यह न सिर्फ परिवार बल्कि समाज और देश की भी जिम्मेदारी है कि हम आने वाले समय के लिए अपनी नई पीढ़ी को तैयार कर सके और इसके लिए वर्तमान पीढ़ी को अपने सोच–विचार और क्रियान्वयन में मूलभूत परिवर्तन करना आवश्यक है।समाज और शिक्षा का ढांचा इस तरह से बदला व स्वीकार किया जाए कि   रोजगार के कई अवसर  स्वनिर्मित भी किए जा सके।इसके लिए बहुत जरूरी है कि बोर्ड परीक्षाओं का भय बच्चों के मन से निकाला जाए बल्कि उन्हें बेहतर और व्यवस्थित तरीके से अपनी ऊर्जा को एक लक्ष्य के साथ लगाने के लिए प्रेरित किया जाए। यह शिक्षा को रचनात्मक, समावेशी और सार्वभौमिक बनाने से ही संभव है।

परीक्षा पर चर्चा  में प्रधानमंत्री  ने अभिभावकों एवं शिक्षकों से मुखातिब होते हुए कहा कि बच्चों के स्वभाव को जानने की आवश्यकता है, उन्हें जीवन की भिन्न-भिन्न चीजों से जुड़ने देना चाहिए,लोगों से बातें करना चाहिए ना कि उन्हें अपने दायरे में बंद कर देना चाहिए।यह ध्यान देना जरूरी है कि उन्हें कोई खराब आदत न लगे। इसकी जिम्मेदारी शिक्षक और माता-पिता दोनों की है। इसके अलावा उन्होंने एक मूल्यवान बात कही कि भारत एक विविधता का देश है ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि बच्चों को उनकी संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान हो,उस पर गर्व हो।प्रयास किया जाए कि उनके रिजल्ट की वजह से उनके मन में  नकारात्मकता की भावना अगर आती है तो इस सच्चाई से उनको मुकाबला करने के लिए मजबूत बनाया जाए। तनाव किसी भी परिस्थिति में, किसी भी चीज का कोई हल नहीं है और कोई भी परीक्षा जीवन का अंत नहीं हो सकती।  ऐसे में यह पूरे  परिवार, समाज और देश की जिम्मेदारी है कि बच्चों को  परीक्षा के तनाव से मुक्त करने के साथ-साथ खराब रिजल्ट से निपटने के लिए भी तैयार किया जाए ।उन्हें आलोचनाओं का मुकाबला करना सीखना जरूरी है। कैसे यह समझें कि आलोचना करने वाले का मकसद क्या है? यदि आपके अपने आलोचना करते हैं तो यह आलोचना नहीं बल्कि करेक्शन है, सलाह है। जबकि जो लोग आपसे डायरेक्ट कनेक्ट नहीं है,  आपको जानते नहीं हैं यदि वह आपकी आलोचना करते हैं तो उन आलोचनाओं का कोई भी मतलब नहीं होता ।यह बहुत चतुराई से समझने की जरूरत है कि आलोचनाओं को एक शुद्धि यज्ञ की तरह अपने जीवन में इस्तेमाल करना है क्योंकि यह आप को बेहतर बनाने का प्रयास है।

टाइम मैनेजमेंट का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि सभी को जीवन में 24 घंटे मिले हैं। कितना समय,किस चीज के लिए दिया जाए इसका वर्गीकरण करना बहुत जरूरी है ।इससे आपको समझ में आएगा कि आप किस समय को व्यर्थ कर रहे हैं और किसको आप बेहतर तरीके से उपयोग कर रहे हैं। हमें स्वास्थ हेतु योग व ध्यान और स्ट्रेस मैनेजमेंट द्वारा फिट रहने पर भी ध्यान देना होगा। जीवन जीने के लिए यह जरूरी है कि अपने जीवन में खुश रहें इसके लिए कुछ हॉबीज होना जरूरी हैं।

 

यहां कहने का अर्थ यह नहीं है कि हमें जीतने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जीतना बहुत अच्छा है! लेकिन हार का स्वाद चखे बिना हम वास्तव में सफलता का आनंद नहीं उठा सकते। असफलताएं हमें एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने और अगली चुनौती के लिए तैयार होने में मदद करती हैं। इसलिए हमें पता होना चाहिए कि अपनी असफलताओं को गरिमापूर्ण ढंग से कैसे गले लगाया जाए और अपनी हार में अर्थ खोजा जाए।

जितना अधिक आप कार्य को टालेंगे, उतना ही अधिक आप अपनी क्षमताओं पर संदेह करेंगे। जीवन में सफलता प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका है कभी हार न मानना।

इसलिए, अपने प्रदर्शन का मूल्यांकन करें, योजना बनाएं और कार्रवाई करें। पिछली हार से आपने जो सीखा है उसका उपयोग खुद को बेहतर बनाने के लिए करें। इस तरह, आप जीवन में आने वाली छोटी-छोटी असफलताओं से निराश नहीं होंगे।

हताशा को खुद पर हावी न होने दें,अपनी हार का विश्लेषण करें,अपनी असफलताओं से सीख लें क्योंकि जीतने के लिए हारना भी जरूरी है।

लेखिका-


डॉ ऋतु दुबे तिवारी

शिक्षाविद् एवं साइबर एक्सपर्ट

लेखिका वर्तमान में निस्कॉर्ट मीडिया कॉलेज गाज़ियाबाद में प्राचार्या के पद पर कार्यरत हैं।



(नोट - यह लेखिका के निजी विचार हैं)