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विशेष

बुद्ध से टकराता विक्षिप्त जिहाद

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भारतीय उपमहाद्वीप पर अनवरत पाश्विक इस्लामी आक्रमण का विस्तार है तालिबान


जब बुद्ध मुस्कराते थे

बामियान के बुद्ध के बारे में पूरा संसार जनता है, किन्तु क्या आप जानते हैं कि ये विशालकाय प्रतिमा स्वर्ण परत से मढ़ी थी जो कि नौवीं शताब्दी तक वैसी ही रही. उस पर अमूल्य रत्न सुशोभित थे और बुद्ध की ५५ मीटर से ऊँची यह प्रतिमा एक हिन्दू राजा ने बनवाई थी. यह राजा थे चन्द्रवंशी नरेन्द्र आदित्य.

रेशमी मार्ग (जिसे हम सिल्क रूट के नाम से भी जानते हैं) ने पूर्व को पश्चिम से मिलवाया. चीन से आरम्भ होकर उत्तर भारत के उस क्षेत्र से होकर जिसे अब हम अफगानिस्तान के रूप में जानते हैं, यह मार्ग मध्य एशिया से होते हुए यूरोप तक जाता था. रेशम और कागज से लेकर, वैज्ञानिक अविष्कारों का आदान-प्रदान, समकालिक दर्शन, धर्म, संस्कृति, कला, बुद्ध, बारूद और प्लेग जैसी महामारी का वाहक बना यह मार्ग इस्लाम के आने से पहले शताब्दियों तक सांस्कृतिक और व्यापारिक यात्राओं का साक्षी बना रहा.

बौद्ध धर्म की की महायान शाखा का विस्तार भी भारत से मध्य एशिया और चीन तक इस मार्ग से हुआ. कालान्तर में बामियान के भीमकाय बुद्ध पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वालों को विश्राम का समय देते थे. यहाँ एक नहीं बल्कि तीन विशाल बुद्ध प्रतिमा थी – दो ऊर्ध्वाधर और एक लेटी हुई, विश्राम की मुद्रा में – जो सनातन संस्कृति की वास्तु शिल्प, गणित और विज्ञान का २०वीं शताब्दी तक स्वमेव उद्घोषक रही. जिन्हें बर्बर, पाश्विक और विक्षिप्त मजहबी कट्टरता ने नष्ट कर दिया.

राजा नरेन्द्र आदित्य ने अफगानिस्तान के गार्डेज में एक भव्य गणेश मन्दिर का भी निर्माण करवाया. अब वहाँ मन्दिर नहीं बचा है। हालाँकि, गणेश की प्रतिमा को गार्डेज से हटा दिया गया है और अब वह काबुल के उसी पीर रतन मन्दिर में रखी है जहाँ के पुजारी पण्डित राजेश कुमार ने तालिबान के आने के बाद भी मन्दिर छोड़ने से मना कर दिया. पण्डित राजेश कुमार अफगानिस्तान में अन्तिम हिन्दू हैं.


रक्ताम्बर और श्वेताम्बर बुद्ध
जब वर्ष ६२९ में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग बामियान पहुंचा तो बुद्ध पूरे वैभव के साथ खड़े थे। ह्वेन त्सांग विस्मयकारी बुद्ध का वर्णन इस प्रकार करता है - "१५० फीट से अधिक ऊँची और चमकीले सुनहरे रंग से मढ़ी यह प्रतिमा मूल्यवान रत्नों के अलंकरणों से दीप्तिमान है"

इस अवधि के दौरान, बुद्ध के कपड़े बहुत चमकीले रंग के थे। बड़े बुद्ध रक्ताम्बर (लाल कपड़े) के और छोटे बुद्ध श्वेताम्बर (श्वेत कपड़े) वस्त्र धारण किये हुए थे. मूर्तियों के ये रंग पिछली शताब्दी तक बने रहे. यही कारण है कि मुसलमानों ने बड़े बुद्ध को "सुर्ख बुत" (लाल मूर्ति) और छोटे को "खिंग बुत" नाम दिया.

अफगानिस्तान के मिस ऐनक में संरक्षित दीपांकर बुद्ध की प्रतिमा से हम अनुमान लगा सकते हैं कि मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त होने से पहले बामियान बुद्ध कैसे दिखते होंगे


मूर्तिभञ्जक जिहादी
जैसा की ऊपर वर्णन किया कि बामियान में तीन विशाल बुद्ध प्रतिमा थी. तीसरी, लेटे हुए बुद्ध की प्रतिमा १,००० फीट लम्बी थी. ह्वेन त्सांग ने अपनी पुस्तक में लिखा है, “नगर के पूर्व में एक मठ है जहाँ १,००० फीट से अधिक लम्बी बुद्ध की एक मूर्ति है जो परिनिर्वाण की मुद्रा में है.”

तो फिर बुद्ध की इस तीसरी प्रतिमा का क्या हुआ? ताजिकस्तान के अजिना तेपे में बने दुशाम्बे संग्रहालय में बुद्ध की इसी प्रकार की एक प्रतिमा संरक्षित है जो परिनिर्वाण की मुद्रा में है. बामियान की तीसरी प्रतिमा भी ठीक इसी प्रकार की थी.

सम्भव है तीसरी प्रतिमा को मूर्तिभञ्जक मुस्लिमों ने पहले ही नष्ट कर दिया था क्योंकि एक खड़ी मूर्ति की तुलना में बुद्ध की लेटी हुई मूर्ति को नष्ट करना अधिक सरल था. और सम्भावना यह भी है कि बुद्ध की इस प्रतिमा को मूर्तिभञ्जक मुस्लिमों से बचाने के लिए बामियान में किसी गुप्त स्थान पर छिपा दिया गया हो.

बामियान को पहली बार ८७१ में इस्लामिक सेनाओं ने अपने आधीन कर लिया था और फिर बौद्धों पर लगातार आक्रमण और अत्याचार हुए. तालिबान ने तो मात्र अन्तिम प्रहार किया, वास्तव में उनके पूर्ववर्ती १,२०० वर्षों तक बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने का अनवरत जिहाद करते रहे.

सफारीद शासक याकुब ने वर्ष ८७१ में बामियान पर आक्रमण कर कई मूर्तियों को नष्ट कर दिया किन्तु बामियान बुद्ध को नष्ट करना सरल नहीं था इसलिए इन प्रतिमाओं को विरूपित कर दिया गया.



अखण्ड भारत का भाग था बामियान
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि तब "अफगानिस्तान" का कोई अस्तित्व नहीं था और यह पूरा भूभाग भारत की सीमा में ही आता था, जिसकी पुष्टि उस समय के मुस्लिम लेखकों ने भी की.

उदाहरण के लिए, १०वीं शताब्दी के अरबी विद्वान अल नदीम ने लिखा है कि बामियान "भारत की सीमा में था." साथ ही वह यह भी बताता है कि बामियान तपस्वियों और भक्तों की स्थली है और यहाँ मूल्यवान रत्नों से जड़ी सोने की विशालकाय मूर्तियाँ हैं"

अल नदीम ने यह भी उल्लेख किया है कि भारत के कोने-कोने से लोग बामियान की तीर्थयात्रा पर आते हैं.

महमूद गजनवी के दरबारी कवि अंसारी (10वीं शताब्दी) ने बामियान बुद्ध पर एक कविता लिखी है। कविता का नाम है "खिंग बुत व सुर्ख बुत" (लाल मूर्ति और श्वेत मूर्ति).

अंसारी ने अपनी कविता में बड़ी प्रतिमा को पुरुष और छोटी वाली को महिला बताते हुए दोनों के प्रेम के विषय में लिखा है. यह विषय इतना लोकप्रिय हो गया कि आज भी अफगानिस्तान में स्थानीय लोग बड़े बुद्ध को पुरुष प्रेमी के रूप में और छोटे को उनकी प्रेमिका के रूप में देखते हैं.

औरंगजेब और नादिर शाह ने भी अपने तोपखानों के बल पर बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने का प्रयास किया किन्तु वे मूर्तियों को पूरी तरह से नष्ट करने में विफल रहे, किन्तु उनके मानस पुत्र तालिबान ने यह कर दिखाया.

विशेष आभार: @BharadwajSpeaks