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जब बाबरी ढांचा गिरने पर कोई राग लपेट नहीं किया

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कल्याण सिंह: स्मृति शेष



अयोध्या में 6 दिसम्बर 1992 को ढाँचा ध्वंश हुआ। भारत की इस घटना को संसार के हर नीतिज्ञ, कूटचिन्तक, विचारक, लेखक ने अपनी धारणाओं के दर्पण में देखा था। कल्याण सिंह ने मुख्यमन्त्री पद से स्वतः त्यागपत्र दे दिया था। देश भर की भाजपा सरकारों को एक झटके में कांग्रेस की नरसिंहराव सरकार ने उखाड़ डाला था। किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति उन लोगों के लिए थी जो इस घटना पर झेंप रहे थे।

कल्याण सिंह के हृदय की धड़कन और धमनियों के रक्त की गति अन्य संकेत दे रही थी। उनके भीतर का नायकत्व क्लान्त नहीं था। ढाँचा विध्वंस के तीन दिन पश्चात् कल्याण सिंह ने पत्रकारों को सम्बोधित किया। जो प्रेस नोट पत्रकारों को दिया गया उसे पर लिखा था - जो ढाँचा ढहा वह कलंक का ढाँचा था, जिसे भारत के गौरव को मिटाने के लिए खड़ा किया गया था। उसके ध्वस्त होने पर मुझे गर्व है। कल्याण सिंह जी के आवास पर पत्रकारों का ऐसा बड़ा जमघट पहले किसी ने नहीं देखा होगा । उन तीन पँक्तियों में उन्होंने देश विदेश में रह रहे सहमे हिन्दू समाज को बड़ी संजीवनी दे दी थी । अनेक पीढ़ियां उनके साहस को सराहती रहेंगी।

कल्याण सिंह जी की जीवन यात्रा बड़े उतार चढ़ाव से होकर बढ़ी। वह अदम्य साहस के धनी थे। कहते थे मैं शिक्षक था। एक शाम गन्ने के खेत पर काम कर रहा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक जी आये और मुझसे अगले दिन अलीगढ़ चलने को कहा। तभी तय हुआ कि राजनैतिक पारी के लिए आगे बढ़ना है। कल्याण सिंह ने जीवन में अनेक साहसिक निर्णय किये। कुछ खट्टे तो अधिकांशतः मीठे अनुभव उन्हें हुए होंगे। पञ्च तत्व की काया धरा में छोड़ कर अनन्त में स्थिर हुए कल्याण सिंह जी को लोग दीर्घकाल तक एक प्रबल नायक के रूप में स्तुत्य मानते रहेंगे। उनकी अनेक स्मृतियां विलक्षणता के गुणों से भरी हैं। चन्द लोग उनके भीतर के विराट स्वरूप की निन्दा में माथा खपाएँगे । तथापि, ध्येयनिष्ठ स्वयंसेवक की उनकी छवि युगों तक अक्षुण्ण बनी रहेगी ।