कैप्टेन अमरिन्दर सिंह को जिस प्रकार अपमानित कर मुख्यमन्त्री के पद से हटाया गया उस पूरे खेल में यदि सर्वाधिक क्षति स्वयं कांग्रेस की ही हुई है. पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे देश में उनके जैसा दूसरा नेता पार्टी के पास नहीं है. वास्तव मे प्रताप सिंह कैरो के बाद कैप्टेन ही एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे. यह उनके बस की ही बात थी जो 2014 के लोकसभा चुनाव मे अरुण जेटली जैसे लोकप्रिय भाजपा नेता अमृतसर से पराजित हुए.
2017 का विधानसभा चुनाव भी कैप्टेन ने बिना गांधी परिवार के बलबूते कांग्रेस को जिताया था. वैसे 1984 में भी हर मन्दिर साहिब में सेना भेजने के विरोध में कैप्टेन ने कांग्रेस छोड़कर अकाली दल का दामन थाम लिया था. लम्बे समय तक वे कांग्रेस से दूर रहे. फिर अकालियों का साथ छोड़कर उन्होंने अकालीदल (पन्थक) बनाया. बाद मे उसका विलय कांग्रेस में किया.
जीसटी जैसे नीतिगत विषय पर वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से एकदम भिन्न मोदी सरकार का समर्थन पहले ही कर चुके हैं. वास्तव में देशहित के मामले में कैप्टेन अमरिन्दर ने सदा स्वतन्त्र लाइन ली है. बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दे पर वे राहुल-सोनिया के विपरीत सेना और मोदी को खुलकर सपोर्ट प्रदान कर चुके हैं.