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महाकुंभ में 1800 से अधिक साधु बनेंगे नागा, जूना अखाड़े में दीक्षा प्रक्रिया शुरू

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प्रयागराज। महाकुंभ 2025 के तहत मौनी अमावस्या से पहले अखाड़ों में 1800 से अधिक साधुओं को नागा संन्यासी बनने की दीक्षा दी जाएगी। यह प्रक्रिया जूना अखाड़े से आरंभ हो चुकी है। सभी सात शैव अखाड़ों और दो उदासीन अखाड़ों में यह प्रक्रिया सम्पन्न की जाएगी। नागा संन्यास की यह दीक्षा महाकुंभ का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुष्ठान है।

दीक्षा प्रक्रिया की शुरुआत -

जूना अखाड़े के महंत रमेश गिरि ने बताया कि दीक्षा प्रक्रिया 17 जनवरी को धर्मध्वजा के नीचे तपस्या से शुरू होगी।

तपस्या: साधुओं को 24 घंटे तक बिना भोजन और पानी के तपस्या करनी होगी।

गंगा स्नान: इसके बाद गंगा तट पर ले जाकर 108 डुबकी लगाने का अनुष्ठान किया जाएगा।

संस्कार: स्नान के बाद क्षौर कर्म, विजय हवन, और गुरु से दीक्षा लेकर साधुओं को नागा बनाया जाएगा।

नागा बनने की अहम प्रक्रियाएं -

नागा बनाने के दौरान दो महत्वपूर्ण क्रियाएं होती हैं:

1. चोटी काटना: चोटी काटकर गुरु शिष्य को सामाजिक बंधनों से मुक्त करते हैं। इस प्रक्रिया के बाद नागा साधु सामान्य सामाजिक जीवन में वापस नहीं लौट सकता।

2. तंगतोड़ क्रिया: यह नागा बनने की अंतिम और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें गुरु द्वारा दूसरे नागा साधुओं से यह क्रिया पूरी कराई जाती है।

नागा साधुओं की जिम्मेदारी -

•       नागा साधु अखाड़ों की प्रशासनिक और आर्थिक जिम्मेदारियां संभालते हैं।

नागा साधु बनने के बाद ही किसी साधु को अखाड़े में महामंत्री, महंत, सचिव, थानापति, कोतवाल, या पुजारी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया जाता है।

नागा बनने के लिए अखाड़ा की आंतरिक कमेटी साधु की कड़ी जांच-पड़ताल करती है।

सभी अखाड़ों में दीक्षा कार्यक्रम -

जूना अखाड़ा: नागा दीक्षा प्रक्रिया सबसे पहले जूना अखाड़े में शुरू हुई।

निरंजनी और महानिर्वाणी अखाड़ा: जूना के बाद इन अखाड़ों में दीक्षा प्रक्रिया सम्पन्न होगी।

उदासीन अखाड़े: मौनी अमावस्या से पहले उदासीन अखाड़ों में भी नागा साधुओं की दीक्षा होगी।

अमृत स्नान में शामिल होंगे नवदीक्षित नागा -

संस्कार पूरा होने के बाद सभी नवदीक्षित नागा मौनी अमावस्या पर अखाड़े के साथ अपना पहला अमृत स्नान करेंगे।

महाकुंभ के लिए नागा दीक्षा का महत्व -

नागा दीक्षा महाकुंभ का एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जो अखाड़ों के विस्तार और साधुओं के आध्यात्मिक उत्थान के लिए अनिवार्य प्रक्रिया मानी जाती है।