लखनऊ।
- सरकार्यवाह जी ने कहा कि जब संघ का गणवेश बदला तो हमने देखा कि वह भी बदला हुआ गणवेश पहनकर तैयार हैं। मैंने उन्हें सदैव धोती पहने ही देखा था।
- स्वांत रंजन जी ने कहा कि एक लम्बा कालखं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बिताया। उनकी उपस्थिति मात्र से ही कार्यक्रम अनुशासित हो जाया करते थे। उनकी जीवन की प्रत्येक स्मृति से ही स्वयंसेवकों को जीवन जीने का आदर्श प्राप्त होता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश के सह क्षेत्र संघचालक रहे स्व. रामकुमार जी की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि रामकुमार जी के लिये संघ का निर्णय ही सर्वोपरि था। वे संघ के हर कार्य को बड़ी निष्ठा के साथ करते थे।
लम्बी बीमारी से जूझ रहे रामकुमार जी का निधन 19 फरवरी को हुआ था। निराला नगर स्थित सरस्वती शिशु मंदिर के सभागार में शुक्रवार को आयोजित श्रद्धांजलि सभा में सरकार्यवाह जी ने कहा कि जो जन्म लेता है, उसे मरना ही होता है। मगर जन्म से लेकर मृत्यु तक वह कैसी यात्रा करता है, दूसरों के लिए क्या छोड़कर जाता है, यह जानना व समझना बहुत आवश्यक है। यहां बोलने वाले लोगों ने रामकुमार जी के व्यक्तित्व के विभिन्न अनुभव प्रस्तुत किये। लोगों को उनके साथ रहने का पर्याप्त अवसर मिला था, लेकिन मेरा लखनऊ केन्द्र बनने के बाद उनसे मिलना-जुलना अधिक हुआ। वे अत्यधिक अनुशासन प्रिय स्वयंसेवक थे। जब साथी कार्यकर्ता अपने साथ वाले कार्यकर्ता की चिंता करते हैं तो वह सीखने वाला पाठ बन जाता है। रामकुमार जी जैसे तपस्वी कार्यकर्ताओं से ही संघ बना है। उनके समान कार्यकर्ताओं ने ही संघ को बनाया है। देशभर में ऐसे ही श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं ने अपनी गृहस्थी चलाते हुए संघ कार्य किया है। संघ में एक गीत गाया जाता है, जिसकी पंक्ति है कि दिव्य ध्येय की ओर तपस्वी साधक बन कण-कण गलता है….गीत जैसे साधक बनकर रामकुमार जी ने अपने जीवन को कण-कण गलाया क्योंकि उन्होंने ऐसा शाश्वत व्रत लिया था।
सरकार्यवाह जी ने कहा कि जब संघ का गणवेश बदला तो हमने देखा कि वह भी बदला हुआ गणवेश पहनकर तैयार हैं। मैंने उन्हें सदैव धोती पहने ही देखा था। ऐसे में मैंने उनसे पूछा कि आपने इतनी आसानी से पैंट स्वीकार कर लिया, जबकि कई पुराने कार्यकर्ता पैंट नहीं पहनना चाह रहे थे। ऐसे में रामकुमार जी ने कहा कि संघ ने कहा है तो करना है।
बाबा साहेब आप्टे जिन्हें संघ का पहला प्रचारक कहा जाता था, वे कभी चाय नहीं पीते थे। जबकि श्री गुरूजी बिल्कुल गर्म चाय पीते थे। किसी कार्यकर्ता ने आप्टे जी से पूछा कि यदि श्री गुरूजी ने चाय पीने के लिये कह दिया तो क्या करेंगे, तब आप्टे जी ने कहा कि श्री गुरूजी कहेंगे तो मैं खुशी-खुशी जहर भी पी लूंगा। संघ जो भी कहेगा, वह मैं करूंगा। ऐसे ही कार्यकर्ता थे रामकुमार जी। एक बार वे मुझे अपने पारिवारिक विवाह का निमंत्रण देने के लिये आए। उसी तिथि पर मेरा सुदूर प्रांत में प्रवास था। मैं चाहकर भी नहीं आ सकता था। अतः मैं संकोच में था। मगर मैं कुछ कह नहीं पाया। ऐसे में उन्होंने मेरा संकोच भांप लिया और कहा कि यदि आप प्रवास पर हैं तो निश्चिंत होकर जाएं। संघ कार्य ही सबसे पहले करना है।
उन्होंने बताया कि वे संघ को जीवन में जीने वाले एक आदर्श कार्यकर्ता थे। इतने वर्ष संघ कार्य करने के बाद भी मुझे क्या मिलेगा, ऐसा विचार उनके मन में कभी नहीं आया। संघ कार्य यज्ञ में जीवन समिधा देने वाले रामकुमार जी की यादें हर कार्यकर्ता के लिये प्रेरक मार्गदर्शक एवं ऊर्जा भरने का कार्य करेंगी। भगवान से प्रार्थना करूंगा कि ऐसा अभिभावक सभी को मिलता रहे।
अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वांत रंजन जी ने कहा कि एक लम्बा कालखं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बिताया। उनकी उपस्थिति मात्र से ही कार्यक्रम अनुशासित हो जाया करते थे। उनकी जीवन की प्रत्येक स्मृति से ही स्वयंसेवकों को जीवन जीने का आदर्श प्राप्त होता है। रामकुमार जी का जीवन एक आदर्श स्वयंसेवक के नाते सभी के लिये अनुकरणीय है। उनका पूरा जीवन संघ कार्य को ही समर्पित था। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक संघ के लिये समर्पित रहे।
क्षेत्र कार्यवाह डॉ. वीरेंद्र जायसवाल जी ने कहा कि एक बार एक कार्यक्रम में जाने के लिये मुझे सूचना दी गयी। उसी समय मेरे करीबी का विवाह था। मैंने सोचा कि एक बार रामकुमार जी से निवेदन करके अवकाश मांग लूं। ऐसा सोचकर मैं उनके पास गया, मगर मैंने देखा कि रात 11 बजे भी वह अपने कार्य में तल्लीनता से लगे हुए थे। ऐसे में मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि मैं उनसे छुट्टी मांग सकूं। रामकुमार जी का आचरण ही ऐसा था कि उन्हें देखकर ही स्वयंसेवकों को राह मिल जाती थी। मुझे चिंता में देखकर वे कहते थे कि वीरेंद्र जी एकदम चिंता मत कीजिये, सब हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि आज रामकुमार जी हम सबके मध्य नहीं हैं। मगर वे सदा हम सब द्वारा याद किये जाएंगे। उनकी जीवन यात्रा बहुत लम्बी है। उन्होंने अपने जीवन से हम सबको बहुत कुछ सिखाया है। उनका सिखाया आज भी हम सबके लिये प्रासंगिक है। मैं एक स्वयंसेवक के रूप में उनके जीवन आदर्शों के अनुरूप जीने का संकल्प लेता हूं।
संयुक्त क्षेत्र के कुटुम्ब प्रबोधन प्रमुख ओमपाल जी ने कहा कि रामकुमार जी के विषय में मैं यही कहूंगा कि उनका जीवन एक पुस्तक के समान है। उस पुस्तक को मैं तीन-चौथाई पढ़ चुका हूं। एक बार संघ के कार्य से सुबह से उनके साथ अपनी मोटरसाइकिल से जा रहा था। दोपहर के समय मैंने उनसे पूछा कि आपने तो आज कहीं भोजन की व्यवस्था ही नहीं करवाई तो वे बोले ग्रामीण क्षेत्र में ही सारे कार्यक्रम थे। ऐसे में यदि कहीं भी भोजन की व्यवस्था की जाती तो ग्रामीण परिवेश के अनुसार वहां कई लोगों का भोजन बनता, काफी समय बीत जाता। संघ का कार्य होना आवश्यक है। अतः मैंने भोजन की व्यवस्था नहीं करवाई।
गृहस्थ कार्यकर्ता होने के साथ ही अखण्ड प्रवासी
भारतीय मजदूर संघ से अनुपम जी ने श्रद्धांजलि देते हुये कहा कि बौद्धिक एवं बातचीत में भी उनकी निडरता स्पष्ट झलकती थी। रामकुमार जी की संघ प्रार्थना कभी नहीं छूटती थी। वे गृहस्थ कार्यकर्ता होने के साथ ही अखण्ड प्रवासी थे। वे सदा कठोर अनुशासन में जीते थे। हम सब उनका सामना करने से पहले यही सोचते थे कि वे कुछ भी पूछ सकते हैं। ऐसे में हम सारी तैयारी करने के बाद ही उनका सामना करते थे। वे सदैव हम सबको देश के प्रति समर्पित होकर जीने की शिक्षा देते रहे।
एबीवीपी के अध्यक्ष राजशरण शाही जी ने कहा कि एक कार्यकर्ता को कुछ भी सिखाने के लिये अच्छा उदाहरण थे। वे हर कार्य बड़ी गम्भीरता के साथ करते थे। हर कार्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और निष्ठा हम सबके लिये एक सीख होती थी। उनका जाना विचार संगठन के लिये अपूर्णनीय क्षति है।
राष्ट्रधर्म पत्रिका के निदेशक एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोजकान्त जी ने कहा कि रामकुमार जी से मेरा सम्पर्क 1996 में हुआ था। उसके बाद से मेरा निरंतर सम्पर्क रहा। वे जब भी मिलते तो मुझसे एबीवीपी के बारे में सारी सूचना लेते थे। वे संघ के सभी आनुषांगिक संगठनों की भी पूरी चिंता करते थे। जब भी वे किसी बौद्धिक में सम्मिलित होने के लिये जाते तो पूरी तैयारी करते थे। जब मैं उनसे कहता कि आपको तो सब ज्ञात है, ऐसे में आपको इतनी तैयारी की क्या आवश्यकता। वे उत्तर देते कि मैं एक शिक्षक हूं। इसीलिये मैं सदैव तैयारी के साथ ही कहीं बोलने जाता हूं।
वे शिक्षक जैसे ही डांटते भी थे। अभिभावकत्व उनमें भरा पड़ा था। उनका जोर था कि हर चीज ठीक से लिखी-पढ़ी जाए। राष्ट्रधर्म पत्रिका के सम्बंध में काफी चिंतित रहते थे। सीतापुर में उनके ही प्रयास से राष्ट्रधर्म पत्रिका की काफी प्रतियां जाती थीं। वे हर काम को बड़ी गम्भीरता से करते थे। राष्ट्रधर्म पत्रिका के निदेशक के रूप में जब भी मैं वहां जाता तो मुझसे पत्रिका के संदर्भ में किसी को कोई शिकायत नहीं होती थी। यह उनके निष्ठापूर्ण कार्य करने के कारण ही सम्भव था। आपातकालीन चिकित्सा में भी वे मानसिक रूप से सक्रिय थे। यह उनकी आंतरिक शक्ति का प्रमाण है। उनका जीवन पाथेय हम सबकी प्रेरणा बना रहेगा।
सह संगठन मंत्री इतिहास संकलन योजना के संजय श्रीहर्ष जी ने कहा कि मैं सदैव उन्हें मास्टर साहब ही कहा करता था। वह मुझे हर छोटी-बड़ी बात के लिये टोकते और कार्य सिखाते थे। मैं उनसे बिना किसी संकोच के हर कार्य के लिये कहता और वे उसे कर भी देते। एक बार सीतापुर में एक खंड में कार्य नहीं हो पा रहा था। मैंने इसकी चिंता उनसे प्रकट की। उन्होंने उक्त खंड मुझसे मांग लिया और देखते ही देखते ही उस खंड में अटके पड़े सभी कार्य सम्पन्न कर दिये। वे स्वयंसेवकों को पीड़ा में देखकर उसका निदान करने में देरी नहीं करते थे। वे हर कार्यकर्ता के बारे में सारी सूचना रखते थे। वे भले ही सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, मगर आज भी हम सबको अपना आशीर्वाद दे रहे हैं।