नई दिल्ली. संस्कार भारती, दिल्ली प्रान्त द्वारा ‘कला संकुल’ में कला एवं साहित्य को बढ़ावा देने के क्रम में आयोजित मासिक नाट्या संगोष्ठी का कार्यक्रम संपन्न हुआ. ‘आधुनिक रंग-लेखक में भारतीय दृष्टि एवं चुनौतियां’ विषय पर बात करने लिए बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक चितरंजन त्रिपाठी और प्रसिद्ध नाट्य समीक्षक अनिल गोयल उपस्थित रहे.
चितरंजन त्रिपाठी ने भारतीय संस्थाओं पर बात करते हुए लेखन सामग्री में कमी को दोष दिया. समाज को गलत तरीके से पेश करने वाले नाट्य लेखनों को जवाब देने के लिए सही नजरिये पर काम नहीं किया गया. उन्होंने आज के लेखकों से भारत को समझने के लिए महाभारत को पढ़ने पर भी जोर दिया क्योंकि कला और अपने इतिहास को बेहतर समझ पाएंगे. आज का युवा नाटक देखना चाहता है, उसमें रूचि भी रखता है. लेकिन उसके लिए लेखन भारतीय दिशा में रखना बहुत आवश्यक है.
हम जब लोक को समझ जाएंगे तो नाट्य को बेहतर करना सीख जाएंगे. लोक नाट्य लोगों के बीच तैयार होता है, लोगों के लिए तैयार होता है, उन्हीं के बीच में चल रहे व्यवहार को ध्यान में रखकर लोक नाट्य लिखे जाते हैं और इसे केवल लोक ही जीवित रख सकता है.
वरिष्ठ नाट्य समीक्षक अनिल गोयल ने कहा कि 90 के दशक में कई नाट्यकारों ने भारतीय इतिहास को गलत तरीके से पेश करने का काम किया. उन्होंने आज की सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर भारत में युवा रंग लेखन में कमी को बताया. नाट्य जगत को हमेशा अच्छे लेखकों की कमी महसूस हुई है. फिल्म क्षेत्र को बेहतर लेखक मिले, मगर नाट्य जगत में इसकी कमी देखी गई. 1962 और 71 की लड़ाई पर फिल्मों का लेखन हुआ, मगर किसी ने इस पर प्रभावी नाटक नहीं तैयार किया. पॉलिटिकल करेक्ट बनने की कोशिश में हमने सदैव कड़े विषयों को नाटक क्षेत्र से दूर रखा है.
संगोष्ठी के उद्घाटन में संस्कार भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अभिजीत गोखले, चितरंजन त्रिपाठी, अनिल गोयल, कुलदीप शर्मा जी उपस्थित रहे.